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धर्म-अध्यात्म

परमात्मा को कैसे प्राप्त करें या उसकी अनुभूति कैसे करें?

परमात्मा कहाँ पर है?
परमात्मा को कैसे प्राप्त करें या उसकी अनुभूति कैसे करें?
परमात्मा की अनुभूति प्राप्त करने के लिए एक द्रष्टा कैसे बनें?

पश्वा न तायुं गुहा चतन्तं नमो युजानं नमो वहन्तम््।
सजोषा धीराः पदैरनुग्मन्नुप त्वा सीदन्वश्वे यजत्राः।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.65.1 (कुल मन्त्र 748)

(पश्वा) दृष्टा (न) जैसे कि (तायुम्) सबका पोषण करने वाला, परमात्मा (गुहा) गुफा में (हृदय) (चतन्तम्) गति करता है, व्याप्त होता है (नमः) नमन (युजानम्) उसके साथ जुड़कर (नमः) नमन (वहन्तम््) उसे प्राप्त करते हुए (सजोषाः) अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हुए (धीराः) धैर्यवान लोगों को धारण करने वाला (पदैः) विवेकशीलता के शब्द (अनुग्मन्न) प्राप्त करता है (उप) निकट (त्वा) आपको (सीदन्) स्थापित किया गया (विश्वे) सभी (यजत्राः) यज्ञों के द्वारा।

व्याख्या:-
परमात्मा कहाँ पर है?
परमात्मा को कैसे प्राप्त करें या उसकी अनुभूति कैसे करें?

एक द्रष्टा की तरह (सर्वत्र विद्यमान और सबको देखता हुआ) परमात्मा सबके पालन-पोषण का ध्यान रखता है। परमात्मा द्रष्टाओं के हृदय अर्थात् गुफाओं में व्याप्त होता है। हम उसके साथ जुड़ते हुए और उसे प्राप्त करते हुए नमन करते हैं।
गहरे और धैर्यशील लोग विवेकशील शब्दों के साथ अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हैं और यज्ञ कार्य करते हुए अर्थात् सबके कल्याण के लिए कार्य करते हुए स्वयं को परमात्मा के निकट स्थापित करते हुए उसे प्राप्त करते हैं।
जिस प्रकार कोई पालतू पशु के गुफा में छिप जाने के बावजूद भी लोग उसके पद्चिन्हों को खोजकर उनका अनुसरण करते हुए उसे प्राप्त कर लेते हैं। इसी प्रकार त्यागशील लोग परमात्मा के पद्चिन्हों का अनुसरण करते हुए अपनी हृदय गुफा में छिपे हुए उस परमात्मा को खोज लेते हैं।

जीवन में सार्थकता: –
परमात्मा की अनुभूति प्राप्त करने के लिए एक द्रष्टा कैसे बनें?

परमात्मा सर्वोच्च द्रष्टा है। हमें भी एक द्रष्टा बनने का प्रयास करना चाहिए, अधिक न बोलते हुए, शिकायतकर्त्ता न बनते हुए, सभी परिस्थितियों को केवल देखते हुए, विवेकशील शब्दों के साथ अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हुए। कर्त्तव्य यज्ञ की तरह सम्पन्न किये जाने चाहिए अर्थात् सबके कल्याण के लिए, अपने स्वार्थी उद्देश्यों के लिए नहीं।
परमात्मा के बारे में सर्वत्र संदेह और नासमझ व्याप्त है। परन्तु यह मन्त्र स्पष्ट करता है कि द्रष्टा की तरह एक साधारण तरीके से परमात्मा को महसूस करना, विश्वास करना और उसकी अनुभूति करना कठिन नहीं है।


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