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दीपावली पर्व शुद्ध रूप से सामाजिक एवं भौगोलिक पर्व है। इसको द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण पांडव कौरव सब मनाया करते थे। त्रेता युग में भगवान राम और राम के पूर्वज भी मनाया करते थे और इससे पहले भी सतयुग में भी उसको मनाया जाता था।
🌷 दीपावली का वास्तविक नाम है “शारदीय नवसस्येष्टि पर्व” जिसका अर्थ है “शरद ऋतु में आई हुई फसल का यज्ञ” शरद् ऋतु में उत्पन्न नयी फसल के अन्न द्वारा किया जाने वाला यज्ञ। इस अवसर पर खरीफ की फसल का अन्न घर में आता है तथा रबी की फसल की बुवाई प्रारम्भ होती है। ये दोनों फसलें आर्य्यावर्त (भारत) की मुख्य फसलें हैं। भारतीय वैदिक संस्कृति में भोजन ग्रहण करने से पहले उसे यज्ञ में आहुत करने की परम्परा रही है। इसी के साथ दीपक जलाकर, मिष्ठान्न आदि वितरण द्वारा प्रसन्नता प्रदर्शन करने की भी परम्परा रही है। यह पर्व शरद् ऋतु के समापन एवं हेमन्त ऋतु के आगमन के संगम के काल में आता है। इस समय अनेक रोगों का संक्रमण भी होने की पूरी आशंका रहती है। इस कारण भी इस पर्व पर बड़े-बड़े सामूहिक यज्ञ की भी परम्परा रही है। यद्यपि ऋषियों ने प्रत्येक घर में नित्य अग्निहोत्र (हवन) को अनिवार्य कर्त्तव्य बताया है।
💐पर्यावरण शोधन का यज्ञ से अधिक उत्तम अन्य कोई वैज्ञानिक उपाय नहीं है। काश! देश व विश्व के पर्यावरणवेत्ता इस विषय में कुछ सोच पाते। देशी गाय के घृत, नव-अन्न एवं अनेक जड़ी-बूटियों से निर्मित हवन सामग्री एक विशुद्ध आयुर्वेदिक रासायनिक प्रक्रिया है। दुर्भाग्य से इसे केवल हिन्दुओं का कर्मकाण्ड समझ लिया गया। इस में जलाई जाने वाली कौन सी वस्तु केवल हिन्दुओं की है? इसमें बोले जाने वाले वेदमंत्र ब्रह्माण्ड में व्याप्त सूक्ष्म तरंगों का बैखरी रूप हैं। तब यज्ञ कहाँ साम्प्रदायिक रहा? वैज्ञानिक बुद्धि से शून्य संकीर्ण मस्तिष्क वाले कथित प्रबुद्ध यज्ञ को साम्प्रदायिक दृष्टि से देखते हैं।
इसी दिन इस युग के महान् वेदवेत्ता, समाज सुधारक एवं स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम प्रणेता महर्षि दयानन्द सरस्वती का निर्वाण हुआ था।
बन्धुओं एवं भगिनियो! आइये, दीपावली पर…..
१. अपने घरों में गोघृत व सामग्री से यज्ञ करके पर्यावरण संरक्षण में अपना सहयोग करें।
२. मोमबत्ती के स्थान पर सरसों के तेल अथवा सम्भव हो तो गोघृत के दीपक जलाकर रोगों के कीटाणुओं को नष्ट करने में सहयोग करें।
३. घर पर बने शुद्ध मिष्ठान्न व पकवान परस्पर प्रीतिपूर्वक खाएं व खिलाएं।
४. किसी निर्धन के घर भोजन पहुंचाएं अथवा उसे पर्व मनाने हेतु दान करें।
५. स्वस्थ व सात्विक मनोरंजन एवं सन्ध्याकाल में ईश्वर उपासना करें। ऋषि दयानन्द के जीवन से प्रेरणा लें।
क्या न करें…..
१. वायु में खतरनाक विष घोलने वाले तथा अनेकत्र आग लगने के कारण पटाखों का प्रयोग भूलकर भी न करें। ध्यान रहे कि हानिकारक परम्पराएं चाहे वे कितनी ही पुरानी हों, त्याज्य ही होनी चाहिए।
२. मदिरा आदि मादक पदार्थों व जुआ आदि दुर्व्यसनों से बचें और अपने परिचित जनों को बचाने में सहयोग करें।
ध्यान रहे कि आज भगवान् श्रीराम जी महाराज के लंकाविजय के पश्चात् अयोध्या आगमन की किंवदन्ती है, यह सत्य नहीं। भगवान् श्रीराम जी वाल्मीकि रामायण के अनुसार चैत्र शुक्ला पंचमी को अयोध्या पधारे थे। कोई भी विद्वान् स्वयं वाल्मीकि रामायण देख सकता है। इस विषय में भगवान् वाल्मीकि ऋषि से बढ़कर कोई अन्य प्रमाण नहीं हो सकता।
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