Categories
इतिहास के पन्नों से

एक महान देशभक्त नायक : सरदार वल्लभभाई पटेल

आज हम अपने महान इतिहास नायक सरदार वल्लभभाई पटेल जी की 149वीं जयंती मना रहे हैं। कृतज्ञ राष्ट्र उनके प्रति नतमस्तक है। अपने जीवन काल में उन्होंने देश की एकता और अखंडता के लिए जिस प्रकार महान कार्य किये उनके समक्ष उनका समकालीन कोई भी नेता कहीं दूर-दूर तक भी टिकता हुआ दिखाई नहीं देता। इसके उपरांत भी उनके साथ इतिहासकारों ने छल किया। तत्कालीन सत्ता सरकार ने छल किया। देश के राष्ट्रपिता ने छल किया। उनके साथ हुए इस प्रकार के अन्याय और अत्याचार को देखकर ह्रदय चीत्कार कर उठना है और कहता है कि :-
हाय ! पटेल हम क्यों ना हुए!!!
हम होते तो आपके साथ अन्याय न होने देते।
देर तक देश के लोगों को इस बात की पता नहीं चलने दी कि सरदार वल्लभभाई पटेल के साथ भी कहीं कोई अन्याय हो गया है। धीरे-धीरे परतें खुलने लगीं तो देश के लोगों को सच की जानकारी खोले लगी। यह प्रसन्नता का विषय है कि आज देश के अधिकांश लोग इस बात को समझ गए हैं कि देश की एकता अखंडता को बचाए बनाए रखने में जिस प्रकार सरदार वल्लभभाई पटेल ने अथक और गंभीर प्रयास किये उसके दृष्टिगत उन्हें इतिहास में समुचित स्थान नहीं दिया गया।
वे नेहरू और गांधी की साजिश का शिकार हुए थे ! गांधी जी सरदार वल्लभभाई पटेल की स्पष्टवादिता को तनिक भी पसंद नहीं करते थे। गांधी जी की दोगली बातों का सरदार वल्लभभाई पटेल जिस प्रकार जमकर विरोध करते थे वैसा काम कोई भी कांग्रेसी नहीं करता था। अपने स्वभाव से जिद्दी महात्मा गांधी ने सरदार वल्लभभाई पटेल को हर स्थान पर उपेक्षित करने का प्रयास किया । इसके पीछे कारण केवल एक था कि वह अपनी तानाशाही को निर्विवादित बनाए रखना चाहते थे। गांधी जी के बाद उनके द्वारा डाली गई इसी परंपरा को नेहरू ने यथावत जारी रखा। यही कारण था कि पटेल को नेहरू एवं तत्पश्चात कांग्रेस की अन्य सरकारों ने भी उचित सम्मान नहीं दिया।

सरदार पटेल : एक महान देशभक्त योद्धा

सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को खेड़ा गुजरात तत्कालीन नडियाद जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम झबेर भाई पटेल और माता का नाम लाडवा देवी था। वह अपने माता-पिता की चार संतानों में सबसे छोटे थे। उनके पिता एक जमींदार थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा भारत में ही संपन्न हुई पर उन्होंने बार एट लॉ की उपाधि इंग्लैंड से प्राप्त की थी। उनका पूरा नाम वल्लभ भाई झबेर भाई पटेल था । उन्होंने अहमदाबाद गुजरात को ही अपने विधि व्यवसाय के लिए चुना । उनका विवाह 16 वर्ष की अवस्था में सन 1891 में झबेर बेन पटेल से हुआ । 1903 में उन्हें मणि बेन पटेल नामक पुत्री संतान के रूप में प्राप्त हुई और 1905 में दाहया भाई पटेल पुत्र पैदा हुए।
1909 में उनकी पत्नी का देहांत हो गया। इसके उपरांत भी उन्होंने देश सेवा के अपने महान संकल्प को ढीला नहीं होने दिया ।वह निरंतर देश सेवा करते रहे और भारत की स्वाधीनता के संग्राम में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते रहे। जब देश आजाद हुआ तो वह देश के पहले गृहमंत्री बनाए गए । देश के पहले गृहमंत्री रहते हुए ही 15 दिसंबर 1950 ‌‌को उन्हें दिल का दौरा पड़ने से सुबह 3:00 बजे वे बेहोश हो गए, 4 घंटे बाद उनकी मृत्यु हो गई।

राष्ट्रहित के कार्य–

सरदार वल्लभभाई पटेल संकल्प शक्ति के धनी थे। एक बार निर्णय लेने के पश्चात वे पीछे हट कर देखना उचित नहीं मानते थे। अपने जीवन काल में उन्होंने ऐसे अनेक उतार चढ़ाव देखे जब उनकी संकल्प शक्ति के सामने शत्रु को दांतों तले उंगली दबानी पड़ी थी। आजादी के बाद भारत की तत्कालीन 562 रियासतों का एकीकरण करके नवीन भारत का निर्माण बिना किसी खून खराबा के करने वाले, भारत को एक सूत्र में पिरोने वाले अनुपम शिल्पी, नेहरू की इच्छा के विपरीत हैदराबाद के ऑपरेशन पोलो के लिए सेना भेज कर भारत में विलय करने वाले, जूनागढ़ रियासत को भारत में सम्मिलित करने में सफलता प्राप्त करने वाले , राजनीतिक,प्रशासनिक ,
रणनीतिक कुशलता के धनी, एक त्वरित व अडिग निर्णय लेने वाले, दृढ़ इच्छा शक्ति और अदम्य साहस वाले समर्पित इतिहास पुरुष, कूटनीति, दूरदर्शिता और चतुराई के आधार स्तंभ,भारतीय गणराज्य के संस्थापक पिता, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता, स्वतंत्रता के लिए देश के संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाने वाले, 26 अक्टूबर 1947 को भारत-पाकिस्तान के युद्ध में पाकिस्तान की कमर तोड़ने वाले,
खेड़ा आंदोलन में किसानों से अंग्रेज सरकार को कर‌ न देने के लिए प्रेरित करने और अंत में सरकार को झुकाने तथा किसानों को राहत दिलवाने वाले, बारडोली सत्याग्रह की बागडोर उचित प्रकार से संभालने वाले, इसी आंदोलन के आधार पर सरदार की उपाधि प्राप्त करने वाले,
सोमनाथ मंदिर का नेहरू की इच्छा के विपरीत पुनरुद्धार कराने वाले, मंदिर के उद्घाटन में तत्कालीन स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को नेहरू द्वारा रोकने के बावजूद भी बुलाकर लोकार्पित कराने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल का व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभाओं का केंद्र था। उन्होंने नेहरू की उस प्रत्येक गलत नीति का विरोध किया जो उस समय नेहरू के दोगलेपन को उजागर कर रही थी या राष्ट्रहित के विपरीत जा रही थी। उन्होंने नेहरू गांधी का विरोध झेलने के साथ-साथ कई मुद्दों पर ब्रिटिश सरकार का भी विरोध झेला । वह नाम के ही नहीं काम के भी सरदार थे। यही कारण था कि उन्होंने प्रत्येक प्रकार के विरोध को झेलने के उपरांत भी अपने निर्णय पर अडिग रहने का साहस दिखाया।

स्वतंत्र भारत के 16 प्रदेशों की कांग्रेस कार्य समिति में से 13 कांग्रेस कार्य समिति के प्रस्ताव प्रथम प्रधानमंत्री बनाए जाने के संबंध में पारित करने के बावजूद भी गांधी की इच्छा पर प्रधानमंत्री की कुर्सी को ठुकरा कर देश हित में कार्य करने वाले, कठोर परिश्रम, कठिन पुरुषार्थ करके लौह पुरुष की उपाधि प्राप्त करने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल ने त्याग करने में कभी किसी प्रकार की देर नहीं की। उनके लिए राष्ट्र सर्वप्रथम था और इसी दृष्टिकोण से वह जीवन यापन करते रहे। वह सत्ता के कभी सौदागर नहीं बने और ना ही सत्ता स्वार्थ की प्राप्ति के लिए अपने व्यक्तित्व के साथ समझौता किया।
जब देश आजाद हुआ तो सरदार वल्लभ भाई पटेल स्वतंत्र भारतवर्ष के प्रथम गृहमंत्री ,उप प्रधानमंत्री, सूचना एवं रियासत के मामलों के मंत्री बने। इन सभी मंत्रालयों में रहकर भी उन्होंने अपनी कार्य नीति की अमिट छाप छोड़ी। बात उस समय की है जिस समय कश्मीर में सेना भेजने में नेहरू आनाकानी कर रहे थे ।तत्कालीन बड़े अधिकारी भी नेहरू के साथ मिलकर डरी हुई सी बातें कर रहे थे। तब तत्कालीन भारत के सी अध्यक्ष के साथ मिलकर उन्होंने कश्मीर समस्या पर विचार विमर्श किया और भरी सभा में नेहरू के मत से असहमत होकर वहां सेना भेजने का तत्काल प्रबंध किया। उसी का परिणाम था कि जो कश्मीर आज हम भारत के साथ देख रहे हैं वह 26 अक्टूबर 1947 को भारत के साथ विलय करने पर सहमत हुई।
हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2014 में भाजपा नीति सरकार का निर्माण करने के बाद 31 अक्टूबर को एकता दिवस के रूप में मनाने का संकल्प लिया तथा केवड़िया कॉलोनी के पास सरदार सरोवर बांध से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर नर्मदा नदी के तट पर साधु बेट टापू पर गुजरात में सरदार वल्लभ भाई पटेल की सबसे ऊंची 182 मी० की मूर्ति स्थापित कराई। जिसको शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन द्वारा आठ अजूबों की लिस्ट में सम्मिलित किया गया है। आज सारा देश अपने इस महानायक के प्रति सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करता है और उन्हें ‘ एक भारत’ के निर्माता के रूप में अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि नेहरू ने अपने आप को तो भारत रत्न की उपाधि दी थी लेकिन लेकिन सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे महानायक को इस उपाधि को देने के बारे में उन्होंने या उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने कभी नहीं सोचा। वास्तविक भारत रत्न सरदार वल्लभभाई पटेल को यह उपाधि वर्ष 1991 में दी गई थी।
जब तक सूरज चांद रहेगा।
पटेल तेरा नाम रहेगा।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version