अखिल भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्याम सुंदर पोद्दार का कहना है कि गांधी न तो देश को आज़ाद कर सके, न देश का बंटवारा रोक सके । लोग मुझसे पूछते हैं कि इतने लम्बे समय तक कांग्रेस पर एक छत्र का नियन्त्रण होने के बावजूद क्या कारण हैं कि वे कुछ नही कर सके ?
गॉधी की असफलता का कारण है अंग्रेज़ों की कृपा के चलते वे ४६ वर्ष की उम्र मे दक्षिण अफ्रिका से भारत आये और अपने आप से बड़े व पुराने नेताओं को पीछे धकेल कर कांग्रेस पर एक छत्र नियन्त्रण स्थापित करने में सफल हो गए । क्योंकि तिलक-लाला लाजपतराय वग़ैरह को अंग्रेज़ों ने मरवा दिया। सुभाष बाबू के अनुसार तिलक की इतनी कम उम्र में मृत्यु नही होती , यदि उन्हें ६ वर्ष के लम्बे समय के लिये बर्मा के मन्दाला जेल मे नही रक्खा जाता। लाला लाजपत राय की अंग्रेज़ों ने सरे आम हत्या की, वहीं ब्रिटिशनिष्ठ गॉधी को राजमहलों के ठाठ बाट के साथ अंग्रेज़ आगा खान महल में रखते थे। गॉधी के भारत अागमन की कहानी बड़ी रोचक है। कांग्रेस की स्थापना अंग्रेजों ने ब्रिटिशनिष्ट भारतीय नेताओं की फ़ौज खड़ी करने के लिये की थी। ताकि ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ कोई आवाज़ न उठ सके और वे लम्बे समय तक निर्विघ्न शासन कर सके। ब्रिटिशनिष्ठ नेताओं का स्पष्ट विचार था – अंग्रेज़ों का शासन अपने ऊपर रखते हुये भारत के लोगों की उन्नति करना।
कालान्तर में कांग्रेस में लोकमान्य तिलक के नेतृत्व में कांग्रेस में ब्रिटिश विरोधी बड़ा ग्रुप उभर कर सामने आया। जिनका स्पष्ट कहना था कि स्वतन्त्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। कांग्रेसी इतिहासकारों ने दोनों ग्रुप के ज़मीन आसमान के अन्तर को नरम दल – गरम दल मे बदल कर मामूली अन्तर बना दिया। नरम दल के नेता थे बालकृष्ण गोखले व गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक। गोखले का स्वास्थ्य ख़राब रहने लगा। कॉंग्रेस में नरम दल में कोई भारतीय नेता इतना बड़ा नही था जिसे गोखले अपना उत्तराधिकारी बना सकें।
गोखले की निगाह मे दक्षिण अफ़्रीका के गॉधी उनके उत्तराधिकारी हो सकते थे। क्योंकि जब कभी गॉधी भारत आये उस समय यदि कांग्रेस अधिवेशन हुआ तो वे भी वहाँ पहुँच कर स्वयं सेवक के रूप में अधिवेशन स्थल में सफ़ाई का काम करते। यहीं से गोखले जी से उनका परिचय हुआ । गोखले ने गॉधी को कांग्रेस के अध्यक्ष बनने का आग्रह किया। गॉधी ब्रिटिश शासन में गोखले की ताक़त से भली प्रकार अवगत थे। गॉधी ने गोखले को कहा कि दक्षिण अफ़्रीका में मै आज तक असफल रहा हूँ। वहॉ की सरकार से कोई भी माँग नही मनवा सका। आप चाहेंगे तो वहॉ की सरकार से कुछ मांगे मनवा सकते है, क्योंकि वहॉ भी ब्रिटिश सरकार है। तब मै हीरो के रूप मे भारत मे आ सकूँगा कि गॉधी ने द़क्षिण अफ़्रीका की सरकार को झुका कर माँगे मनवा लीं।
गोखले गॉधी की मांगे मनवा लेने के लिये लन्दन गये व वहाँ से दक्षिण अफ़्रीका की ब्रिटिश सरकार को उचित आदेश दिलवाकर दक्षिण अफ्रिका की राजधानी प्रिटोरिया पहुँच कर प्रिमयर बोथा से मिले। उनसे मिलकर आकर गॉधी से कहा,’तुम एक वर्ष के अन्दर भारत चले आओ। हर बात ठीक हो गई है। काला क़ानून समाप्त होगा। अप्रवासी क़ानून से जातीय प्रतिबन्ध हटेगा । तीन पोन्ड का टेक्स हट जायेगा। गोखले से बात होने के दो दिन बाद अपने मंत्रियों से बात करने के बाद साउथ अफ़्रीका के गवर्नर जनरल ने लन्दन के कोलोनियल आफिस को सूचित किया कि प्रधानमंत्री ने बताया है कि ३ पोन्ड के गोखले के विचारों को स्वीकार किया जा सकता है,यद्यपि नटाल मे भारी विरोध हो सकता है। (राज मोहन गॉधी की पुस्तक ‘मोहन दास’ पृष्ठ संख्या१६९-१७०)
अब लन्दन से भारत की ब्रिटीश सरकार को आवश्यक आदेश करवाते हुये लन्दन होते हुये भारत पहुँच कर गॉधी बम्बई के गवर्नर व वायसराय से मिले। दुर्भाग्य से गोखले का देहान्त हो गया। इसलिये कॉंग्रेस के अध्यक्ष नही बन सके। पर अंग्रेज़ी सरकार उनके साथ थी चम्पारन से लेकर अहमदाबाद तक उनके हर आन्दलन में सरकार को अहिंसा,सत्याग्रह से झुकाने वाले की छवि बना दी गई। कांग्रेस के अधिवेशन में बड़े नेताओं के विरोध के बावजूद अहिंसा-सत्याग्रह का प्रस्ताव बहुमत से पास हो जाता। गांधी के आन्दोलनों की समीक्षा करें तो पाते हैं कि कांग्रेस के मंच से गॉधी पूर्ण स्वराज्य की बात करते हैं। पर धरती पर आन्दोलन चलाते हैं उसका उल्टा । उनका पुर्ण स्वराज से कोई लेना देना नहीं। गॉधी ने पहले आन्दोलन में कहा एक वर्ष में स्वराज्य ला दूँगा तो ज़मीन पर किया ख़िलाफ़त आन्दोलन । उसका भारत की स्वतन्त्रता तो छोड़िये भारत वर्ष से भी सम्बन्ध नही। टर्की के राजा को इस्लामिक दुनिया का पुन:ख़लीफ़ा बनाना उसका उद्देश्य था ।
सुभाष बाबू के १९२८ के कलकत्ता अधिवेशन में मामूली मतों से उनका पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पास नही हो सका। १९२९ के लाहौर अधिवेशन में यह प्रस्ताव निश्चित रूप से पारित हो जाएगा — ऐसा समझ कर गॉधी ने तब इसे ख़ुद रक्खा । प्रस्ताव सर्व सम्मति से पास हो जाने के बाद गॉधी ने अतीत की तरह दूसरी लड़ाई आरम्भ कर दी । तब भी पूर्ण स्वराज्य की लड़ाई नही लड़कर नमक सत्याग्रह किया। इसका भी पूर्ण स्वराज की लड़ाई से कोई नाता नही।
कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं ने गॉधी के नेतृत्व से ऊब कर गॉधी मुक्त कांग्रेस बनाने के लिये ३००० मतों में २०५ मतों के व्यापक अन्तर से सुभाष बोस को जिताया। चूंकि पुरानी वरकिंग कमेटी के सभी सदस्य
गॉधी के द्वारा मनोनीत थे। सुभाष बोष ने भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रस्ताव रक्खा तो कोरम नही होने दिया गॉधी ने। कार्यकारिणी कमेटी मनोनीत करने का अधिकार पिछले दरवाज़े से कांग्रेस अध्यक्ष के हाथ से छीन कर स्वयं के हाथ मे लेकर कार्यकारिणी मनोनीत नही करके निर्वाचित अध्यक्ष सुभाष बोष को मजबूर कर दिया त्याग पत्र देने को, फिर कांग्रेस से भी निकाल दिया। गॉधी ने सुभाष समर्थकों को जीतने के लिये भारत छोड़ो प्रस्ताव मे एक सन्शोधन किया कि भारत छोड़ो पर अपनी सेना रक्खो । ऐसा करके गांधी नेअंग्रेज़ों को ख़ुश कर दिया।
अंग्रेज़ अपनी सेना रक्खेगे तो भारत क्यों छोड़ेंगे। अपनी सेना के बल पर ही तो वे भारत मे राज करते रहे थे ।