हमारी सम्पदा किन लक्षणों को धारण करे?
अच्छी संगति अर्थात् सत्संग का क्या महत्त्व है?
नूष्ठिरं मरुतो वीरवन्तमृृतीषाहं रयिमस्मासु धत्त।
सहस्त्रिणं शतिनं शूशुवांसं प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात््।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.64.15 (कुल मन्त्र 747)
(नू) अब (स्थिरम्) स्थिर (मरुतः) प्राण, श्वास, श्वास का नियंत्रक (वीरवन्तम्) शक्तिशाली वीर (ऋतीषाहम्) विजय का दाता (रयिम्) सम्पदा (अस्मासु) हम में (धत्त) धारण करता है (सहस्त्रिणम्) हजारों प्रकार के (शतिनम्) सैकड़ों प्रकार के (शूशुवांसम्) प्रसन्नता और प्रगति के कारण (प्रातः मक्षू) प्रातःकाल अतिशीघ्र (धियावसुः) दिव्य ज्ञान में जीने वाले (जगम्यात््) प्राप्त हों।
व्याख्या:-
हमारी सम्पदा किन लक्षणों को धारण करे?
हे मरुतों! कृपया हमारे जीवन में निम्न लक्षणों वाली गौरवशाली सम्पदा को धारण करवाओ:-
1. स्थिरम् – स्थिर
2. वीरवन्तम् – शक्तिशाली वीर
3. ऋतीषाहम् – विजय का दाता
4. सहस्त्रिणम् शतिनम् शुशुवांसम् – हजारों और सैकड़ों प्रकार के प्रसन्नता और प्रगति के कारण।
हम प्रातःकालीन वेला में बौद्धिक कार्यों से सम्पदा प्राप्त करें और दिव्य ज्ञान की संगति वाले लोगों से ज्ञान प्राप्त करें।
जीवन में सार्थकता: –
अच्छी संगति अर्थात् सत्संग का क्या महत्त्व है?
ऋग्वेद मण्डल-1 के सूक्त 58 तथा 60 से 64 के अन्तिम मन्त्र के अन्तिम पद हमें विशेष रूप से प्रेरित करते हैं कि हमें सत्य परमात्मा की अनुभूति प्राप्त करने के लिए सत्य की संगति प्राप्त करनी चाहिए। यह उन लोगांे की संगति से सम्भव हो सकता है जो महान् दिव्य ज्ञान के स्तर पर जीवन जीते हैं।
ऐसी संगति लगातार और लम्बी अवधि के बाद हमारे लिए एक चुम्बक के समान बन जाती है, जिस प्रकार चुम्बक की संगति में लगातार और लम्बी अवधि तक रहने वाला लोहा भी चुम्बक बन जाता है।
यदि हम श्रेष्ठ और दिव्य लोगों की संगति में जीयें तो हम भी वही बन सकते हैं।
अच्छाई लोगों की सेवा करने में होती है, लोगों से छीनने में नहीं। समाज की सेवा करना, समाज से छीनना नहीं। अच्छाई सत्य में, अहिंसा में, चोरी न करने में और सबको परमात्मा की अभिव्यक्ति के रूप में समझने और सम्मानित करने में होती है।
अपने आध्यात्मिक दायित्व को समझें
आप वैदिक ज्ञान का नियमित स्वाध्याय कर रहे हैं, आपका यह आध्यात्मिक दायित्व बनता है कि इस ज्ञान को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचायें जिससे उन्हें भी नियमित रूप से वेद स्वाध्याय की प्रेरणा प्राप्त हो। वैदिक विवेक किसी एक विशेष मत, पंथ या समुदाय के लिए सीमित नहीं है। वेद में मानवता के उत्थान के लिए समस्त सत्य विज्ञान समाहित है।
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