स्वाधीन भारत के पहले गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को हुआ था। उन्होंने भारत के स्वाधीनता आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया था। गांधी जी के आवाहन पर वह अपने विधि व्यवसाय को छोड़कर स्वाधीनता आंदोलन में सम्मिलित हुए थे। यद्यपि वह गांधी जी की कांग्रेस में अपने अंतिम क्षणों तक बने रहे, परंतु जब आवश्यकता हुई तो ना तो गांधी को उन्होंने खरी खोटी सुनाने में किसी प्रकार की कमी छोड़ी और ना ही गांधी जी के उत्तराधिकारी नेहरू को खरी खोटी सुनाने में कभी पीछे हटे। वह देश के लिए जीते थे और देश के लिए ही काम करना प्राथमिकता पर रखते थे। यही कारण था कि जब देश स्वाधीन हुआ तो अंग्रेजों ने भारत की 563 रियासतों के सामने भारत पाकिस्तान में से किसी के भी साथ जाने का खुला विकल्प छोड़ दिया था । इतना ही नहीं , यदि कोई रियासत स्वयं को स्वतंत्र रखना चाहती हो तो वह ऐसा भी कर सकती थी। वास्तव में अंग्रेजों की यह चाल भारत को अनेक टुकड़ों में विभाजित कर देने की थी। जिसे सरदार वल्लभभाई पटेल भली प्रकार समझ रहे थे। यही कारण था कि उन्होंने अंग्रेजों की इस चाल को फ़लीभूत होने से रोकने के लिए कठोर कदम उठाने आरंभ कर दिये।
विभाजन के समय हैदराबाद उन रियासतों में सम्मिलित था जो देश के साथ गद्दारी करते हुए स्वतंत्र रूप में अपना अस्तित्व बनाए रखने की पक्षधर थीं। हैदराबाद की कुल जनसंख्या में यद्यपि हिंदुओं का बहुमत था , परंतु वहां का शासक मुस्लिम होने के कारण वह भारत के साथ विद्रोह करने की स्थिति में आ गया था । अपने शासनकाल में उसने हिंदुओं पर अप्रत्याशित अत्याचार किए थे । इस प्रकार गैर मुसलमानों पर अत्याचार करने की इस्लामी परंपरा का उसने पूरा-पूरा पालन किया था। हिन्दू आबादी वाले इस राज्य के मुसलमान शासक और अन्तिम निजाम ओस्मान अली खान ने भारत के साथ विद्रोह करते हुए स्वयं को स्वतंत्र रखने की घोषणा कर दी। इसको लेकर गांधी नेहरू समेत कांग्रेस के सभी नेता या तो मौन थे या दोगली बातें करने में व्यस्त थे। परंतु सरदार वल्लभभाई पटेल एकमात्र ऐसे नेता थे जो इस प्रकार की बयानबाजी को लेकर न केवल दुखी थे, अपितु नवाब हैदराबाद जैसे देशद्रोही नवाबों या शासकों को सीधा करने के लिए उनका खून भी खौल रहा था। नवाब हैदराबाद में अपने कुछ सैनिकों को लेकर रजाकारों की सेना बनाई।
नेहरू जी उस समय देश की सरकार का नेतृत्व कर रहे थे। उनकी मान्यता थी कि देर सवेर नवाब हैदराबाद स्वयं ही भारत के साथ विलय करने पर अपनी सहमति दे देगा । यद्यपि जितना विलंब होता जा रहा था, उतना ही देश की एकता के लिए संकट गहराता जा रहा था। जिस पर नेहरू जी उतने चिंतित नहीं थे, जितने चिंतित सरदार वल्लभभाई पटेल थे। जितना विलंब होता जा रहा था, उतना ही नवाब हैदराबाद भारत द्रोही बनता जा रहा था। उसका यह भ्रम बढ़ता जा रहा था कि वह अपनी मुट्ठी भर मुस्लिम सेना के बल पर अपने आपको एक अलग देश के रूप में स्थापित कर लेगा। वास्तव में यह उसकी महत्वाकांक्षा ही थी जो उसे ऐसा करने के लिए प्रेरित कर रही थी। विचारणीय बात यह थी कि यदि उसका हैदराबाद एक अलग देश के रूप में स्थापित हो भी जाता तो भी वह चारों ओर से भारत से ही घिरा होता जो कि पूर्णत: एक अव्यावहारिक बात होती।
नवाब हैदराबाद की इस प्रकार की योजना को सिरे न चढ़ने देने के लिए उस समय आर्य समाज भी बहुत अधिक सक्रिय भूमिका निभा रहा था। आर्य समाज के बलिदानी जत्थों ने नवाब को सीधे रास्ते पर लाने की तैयारी कर ली थी । तभी सरदार पटेल ने महत्वपूर्ण निर्णय लिया और पुलिस भेज कर नवाब हैदराबाद को भारत के साथ विलय करने पर बाध्य करने की रणनीति बनाई। आर्य समाज द्वारा बना दी गई व्यूह रचना के बाद सरदार पटेल को नवाब हैदराबाद को सीधे रास्ते पर लाने और भारत के साथ विलय के लिए विवश करने में मात्र 5 दिन का समय लगा। 13 सितंबर से 17 सितंबर 1948 तक यह कार्यवाही की गई थी। उस समय महात्मा गांधी तो नहीं रहे थे, परंतु उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी नेहरू अवश्य देश के प्रधानमंत्री थे। नेहरू तीन मूर्ति भवन में बैठे इस सारे घटनाक्रम को देख रहे थे। 26 अक्टूबर 1947 को कश्मीर को और उसके पश्चात फरवरी 1948 में जूनागढ़ को भारत के साथ विलय करने पर सरदार पटेल ने विवश किया था। अब उन्होंने तीसरी विद्रोही रियासत हैदराबाद को भी भारत के साथ लाने में सफलता प्राप्त कर अपने आप को एक बार पुनः सरदार सिद्ध कर दिया था। यद्यपि जो व्यक्ति तीन मूर्ति भवन में बैठा हुआ था, वह स्वयं को ‘ सरदार ‘ मानता था जो कि वास्तविक सरदार के सामने बेअसरदार सिद्ध हो चुका था। इस अभियान में कितने लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था ? इसकी जांच के लिए नेहरू ने एक कमेटी बनाई थी, परंतु उस कमेटी की जांच रिपोर्ट को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। 2014 में आकर लोगों को नेहरू जी द्वारा गठित की गई उस सुंदरलाल कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर पता चला कि इस अभियान में 27000 से 40000 लोगों की मौत हुई थी। यद्यपि कुछ लोगों की यह भी मान्यताएं है कि इस अभियान में 200000 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। देश के साथ गद्दारी करने में उस समय एमआईएम ( मजलिसे एत्तहुड मुस्लिमीन) के नेता कासिम रिजवी की विशेष भूमिका रही थी। उसने ही भारत से लड़ने के लिए दो लाख रजाकारों की सेना बनाई थी। इस सेना ने हिंदुओं पर अत्याचार करने के साथ-साथ हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार करने आरंभ कर दिए थे। चारों ओर इनका आतंक ही आतंक दिखाई देता था। जिस पर नेहरूजी चुप्पी साधे बैठे थे, जबकि सरदार पटेल इन आतंकवादियों को सीधा करने की योजना पर काम कर रहे थे। कहा जाता है कि उस समय मुसलमानों की यह आतंकी सेना 5000 से अधिक हिंदुओं की हत्या कर चुकी थी।इस सेना को मुस्लिम लीग का भी समर्थन प्राप्त था , आज असदुद्दीन जैसे नेता इसी सोच का प्रतिनिधित्व करते हैं। पाकिस्तान भारत की एकता को खंड-खंड करने के लिए उस समय नवाब हैदराबाद को हथियारों की आपूर्ति कर रहा था। इतना ही नहीं ऑस्ट्रेलिया की एक हथियार बनाने वाली कंपनी भी नवाब हैदराबाद को हथियार आपूर्ति कर रही थी । यदि उस समय सरदार वल्लभभाई पटेल सही समय पर निर्णय न लेते तो भारत के भीतर ही एक और पाकिस्तान बना हुआ हम देखते। सचमुच ऐसे अपने सरदार पर हम सबको गर्व है । जिन्हें आज उनकी जयंती के अवसर पर हम सब विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है)
मुख्य संपादक, उगता भारत