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मोक्ष वाले पीपल से दिव्य अवलोकन

यह घटना बाल प्रभु के आठ वर्ष के उम्र की संबत 1845 विक्रमी की है। छपिया के नैरित्य कोण फिरोजपुर के गांव को सीमा लगती है। यहां उपवन वाटिका बहुत था। यह स्थान रेलवे स्टेशन के तरफ़ जाने वाले मार्ग पर पड़ता है। एक बार घनश्याम प्रभु झट से एक पेड़ पर चढ़ गए और चारो तरफ़ दृष्टि डाली थी। यह जानने के लिए कि मोक्ष के भागी मुमुक्षु जीव किस तरफ हैं? तब से इस पीपल का नाम मोक्ष पीपल पड़ गया।

जब घनश्याम प्रभु इस पीपल के पेड़ पर चढ़ गए और चारो तरफ़ दृष्टि डाले थे। वे पश्चिम दिशा की ओर काफी देर तक देखते रहे।

उनके साथ आए बच्चे खेल रहे थे। खेल लगभग ख़त्म ही होने वाला था कि उनके एक दोस्त ने उन्हें दूर से पेड़ पर बुलाया, वह उन्हे गहरे विचारों में खोए हुए देखा। उन्होंने उन्हें नीचे बुलाया और उनकी स्थिर दृष्टि का कारण पूछा।

गहराई के गहन उत्तर ने उनके अवतार के उद्देश्य को चिन्हित रूप से समेटा। उन्होंने कहा, “मैं पश्चिम की ओर देख रहा था, जहां हजारों भक्त मेरे आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वे मेरे आने और एकांतिक धर्म की स्थापना की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वे अपने मोक्ष की प्रतीक्षा कर रहे हैं।”

इसी पेड़ की एक और घटना घटी है। घनश्याम को अक्सर इस विशाल पेड़ से लगाव था।वे समय पाकर इसकी ऊंचाई पर चढ़ जाते और आसमान और चारों तरफ़ देखते विचारों में खोए खोए से रहते थे। एक बार उनके साथ उनके मामा वसराम तिवारी भी थे। जो उन्हें देख कर टोकते हुए बोले,” हे भांजे! क्या देख रहे हो? नीचे आ जाओ। कहीं गिर पड़े तो हड्डी टूट जाएगी।”

तभी घनश्याम महराज हंसते हंसते बोले,”मैं और मेरे भक्त मुमुक्षु जीव नहीं गिरेंगे।” ऐसा कह कर घन श्याम प्रभु ने मामा को पीपल के पेड़ के पत्ते पत्ते पर अलग अलग किस्म के फल दिखाए। मामा यह चमत्कार देख आश्चर्य में पड़ गए। उन्हें अनेक फल देखने और खाने की इच्छा हुई।

मामा बोले, “भांजे दो चार फल हमें भी दो।”घनश्याम महराज ने उन्हें प्रेम पूर्वक फल प्रदान किया।

मामा उन फलों को लेकर मामी लक्ष्मीबाई आदि बहनों को दिए थे और भांजे घनश्याम महराज के चमत्कार की जानकारी भी दिए थे। इसे सुनकर और फल देख कर सभी लोग आश्चर्य में पड़ गए थे। ऐसी सुन्दर लीला प्रभु ने इस स्थान पर की थी। तभी से यह प्रसादी स्थल माना जाने लगा।

– आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी

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