महुली बस्ती के पीताम्बर ब्रह्मभट्ट कवियों की काव्य परम्परा

आचार्य डा. राधेश्याम द्विवेदी

फोटो प्रतीकात्मक

पूर्वांचल उत्तर प्रदेश के महान शिक्षाविद राष्ट्रपति शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित स्मृतिशेष माननीय डा. मुनिलाल उपाध्याय ‘ सरस’ कृत : “बस्ती के छन्दकार” शोध ग्रन्थ के आधार पर यह विश्लेषण तैयार किया गया है। उनके शोध प्रबंध के अनुसार बस्ती मंडल ( बस्ती , सिद्धार्थ नगर और सन्त कबीर नगर जिलो) के कवि परम्पराओं में निम्न लिखित कवियों का पारिवारिक घराना प्रमुख रहा हैं-

  1. महुली महसों बस्ती का ब्रह्मभट्ट घराना

  2. मलौली संतकबीर नगर का चतुर्वेदी परिवार का घराना

3.लाल त्रिलोकी नाथ और रुद्रनाथ का धेनुगवा का पारिवारिक घराना

4.बाबू बीरेश्वर और रंग नारायण पाल का हरिहरपुर का पारिवारिक घराना

5 बढ़नी मिश्र का पारिवारिक घराना

6.कई अन्य परिवारिक काव्य परंपराएं

महुली महसों बस्ती के ब्रह्मभट्ट कवियों का घराना

अनुश्रूतियों के अनुसार कत्यूर साम्राज्य आधुनिक उत्तराखण्ड के कुमायूं मण्डल के राजा ब्रह्मदेव थे। ब्रह्मदेव के पौत्र अभय पाल देव ने पिथैरागढ़ के असकोट में अपनी राजधानी बनायी थी। उनके शासन के बाद उनके पुत्र अभयपाल के समय यह साम्राज्य विघटित हो गया। अभयपाल देव के दो छोटे पुत्र अलखदेव और तिलकदेव थे। महाराजा अलखदेव और तिलकदेव असकोट को छोड़कर एक बड़ी सेना लेकर 1305 में उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में गोरखपुर व गोण्डा में आ गये थे । यह क्षेत्र भयंकर दलदल तथा बनों से आच्छादित था। यहां पर राजभर आदिवासियों का आधिपत्य था। इस क्षेत्र के दक्षिण में घाघरा तथा पूर्व में राप्ती बहती है, जिनसे क्षेत्र की रक्षा होता थी। इन दो राजाओं ने महुली को अपनी राजधानी बना कर पाल वंश का नया प्रशासन प्रारम्भ किया।महुली पर सुर्यवंश का शासन था।अनुश्रूतियों के अनुसार दोनों भाइयों ने राजभरों के मुखिया कौलविल से महुली की सम्पत्ति अधिग्रहीत की थी। समय बीतते बीतते उन्होंने अपने राज्य का विस्तार किया था। ये अनेक परिवारों में विभक्त हो गये थे। इन घरों के प्रमुखो ने पाल उपनाम धारण किया था । इस विभेदीकरण की पुष्टि दिल्ली के सम्राट ने भी की थी। यद्यपि इससे सम्बंधित कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं मिलता है। महुली में महसुइया नाम का कबीला था, जो महसो के ही राजपूत थे। 9 सितंबर, 1772 को सआदत खान को अवध का सूबेदार नियुक्त किया गया था। उस समय महुली पर सुर्यवंश का शासन था। राजधानी को अधिक सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करने का निर्णय 1780 में लिया गया है, और महुली से 22 किलोमीटर दूर महसों गांव को राजधानी चुना गया है।

महसो से प्राचीन इसी महुली क्षेत्र में राज्य दरबार में पनपी कुछ ब्रह्मभट्ट कवियों की वाणी और सरस्वती पुष्पित और पल्लवित हुई।इस क्रम में सर्वप्रथम बस्ती के आदि कवि पीताम्बर ब्रह्मभट्ट के वंश परम्परा तथा काव्य उपलब्धियों का वर्णन प्रस्तुत किया जा रहा है।

ब्रह्मभट्ट : ब्राह्मण और क्षत्रिय की विशेषताओं से युक्त :-

ब्रह्मभट्ट ब्राह्मण सभी ब्राह्मणों में बेहतर थे। ब्रह्मभट्ट एक भारतीय उपनाम परंपरागत रूप से ब्राह्मण जाति से संबंधित है। ब्रह्मभट्ट संस्कृत शब्दं ब्रह्म से लिया गया है, जिसका अर्थ है विकसित करने के लिए, वृद्धि और भट्ट जिसका अर्थ है पुजारी और संभवतः दोनों ब्राह्मण और क्षत्रिय की स्थिति का संकेतक है। एक भारतीय सरनेम एक वैदिक इंडो- आर्यन लोगों का प्रतिनिधित्व करने, पश्चिम भारत और पूरे उत्तर भारत में मुख्य रूप से पाया जा करने के लिए भारत में है। मुख्य रूप से योद्धा ब्राह्मण, इस क्लासिक सामाजिक इकाई जाति व्यवस्था भारत में प्रचलित अनुसार ब्राह्मण के साथ ही क्षत्रिय की विशेषताओं से युक्त है। उन्हें मूल रूप से योद्धा ब्राह्मण के रूप में माना जाता है। अधिक से अधिक बार वे वैदिक काल से रईसों और राज्यों में अदालत में सलाहकारों के रूप में नियुक्त किया गया था। सामाजिक पदानुक्रम और रैंकों में, ब्रह्मा भट्ट ब्रह्मभट्ट कबीले आगे में फैल गया है और जबकि ब्रह्मा भट्ट मूल रूप से एक है। वे उत्तराखण्ड उत्तर प्रदेश हरियाणा पंजाब कश्मीर राजस्थान गुजरात, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में पाए गए। बाद में वे गुजरात और सौराष्ट्र में राजस्थान में केंद्रित है और अधिक है पाए जाते हैं। पौराणिक खातों के प्रति और हिंदू धर्म के अनुसार के रूप में, इस पहचान एक यज्ञ यज्ञ ब्रह्मा द्वारा किया जाता से बाहर मानव अवतार के रूप में उभरा है उनकी उपस्थिति, नेपाल, कश्मीर, पंजाब, कन्नौज, मगध, काशी, वर्तमान दिन बंगाल और बांग्लादेश, राजपूताना, मालवा, सौराष्ट्र (सौराष्ट्र), द्वारिका राज्यों में शामिल हैं जबकि यूरोप में अब तक पश्चिम के ऊपर फैल रहा है, मुख्य रूप से कब्जे में वर्तमान पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, तुर्की, ग्रीस, इटली, रोम, फ्रांस और जर्मनी के अलग अलग परिभाषा और पहचान के तहत। ब्रह्माभट्ट रामायण, पुराण, गीता, बौद्ध धर्म, कुछ वैदिक संदर्भ में संदर्भ, कई धार्मिक ग्रंथों पाते हैं।प्राचीन पौराणिक खातों अनदेखी, कुछ ऐतिहासिक शोध कार्यों का सुझाव है कि यह श्रीमद् भगवद् गीता में उल्लेख किया है कि राजाओं उस समय के (क्षत्रिय वारियर्स) की सेवा या उन्हें पूजा करने के क्रम में उनकी बेटी के लिए ऋषि (ब्राह्मण) प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल किया। ब्राह्मण और क्षत्रियों के मिश्रित नस्ल ब्रह्मभट्ट = ब्रह्म (क्षत्रिय) भट्ट (ब्राह्मण) कहा जाता था। आर्यभट और चाणक्य इसी प्रकार के इतिहास पुरुष थे जो इसी जाति का प्रतिनिधित्व करते थे।

आदि कवि पीताम्बर भट्ट की काव्य परम्परा:-

इस वंश परम्परा में निम्नलिखित प्रमुख कवियों का उल्लेख मिलता है।

  1. पीताम्बर भट्ट चैत शुक्ल 11, 1768 विक्रमी / 1825 AD.

  2. भवानी बक्श कार्तिक शुक्ल 4 , 1789 विक्रमी/ 1846 AD.

  3. ब्रहमभट्ट बलदेव ‘बदली’ मार्गशीर्ष पूर्णिमा 1795 वि. /1852 AD.

  4. हनुमन्त कवि पौष कृष्ण 11, 1917 विक्रमी / 1974 AD.

1.आदिकवि पीताम्बर भट्ट

पीताम्बर के पूर्वज अनीराम कुमायूं से महसों के सूर्यवंशी राजा के साथ आये थे।उस समय महसो राजधानी नहीं थी अपितु महुली थी। बाद में पीताम्बर की सलाह से तत्कालीन राजा को महसों में किला व राजधानी बनाने का सलाह दिया था। उनके आश्रयदाता का नाम जसवन्त पाल था।पीताम्बर के पितामह खेमचन्द और प्रपितामह अनीराम बहुत प्रभावशाली व सुकवि थे।

रचनाएं :-

उनकी 3 रचनाए मिलती हैं।

  1. बीर रस का आदि काव्य जंगनामा- 1305 ई. में कुमायूं आस्कट के राजा बस्ती के महुली में आये थे। अलखदेव ने महुली में अपना राज्य स्थापित करके दुर्ग बनवाया था। महुली पर गोड़ वंश के राजा ने चढ़ाई करके उसके किले को छीनकर तत्कालीन राजा तथा युवराज जसवन्त पाल को बाहर कर दिया था। जसवन्त पाल ने गोड़ राजा को मारकर अपना किला वापस छीन लिया था।इसी युद्ध का वर्णन कवि ने किया है। बाद में कवि की सलाह से जसवन्त पाल ने महसो में किला व राजधानी बनाया था।

महुली गढ़ लंका भयो रावण ह्वौगौ गौड़।

रघुवर हूं जसवन्त ने दियो गर्व को तोड़़।।

  1. भक्ति रस का सीता स्वंबर पचीसी जिसमें मनहरण छन्द में राम विवाह का वर्णन किया गया है।

  2. फुटकर रचनाओं का गंगावतरण और अन्य रचनायें

2.भवानी बक्श भट्ट –

इनका उप नाम बक्श भवानी था। यह राजकवि पीताम्बर के लड़के तथा बल्देव बलदी के अग्रज थे। सभी कवियों में राजश्रयी परम्परा का लक्षण दिखाई पड़ता है।इनका महसों के साथ बस्ती के राजा के यहां भी आना जाना लगा रहता था। एक बार बस्ती राज में सूखा पड़ा था तो बस्ती के राजा के अनुरोध पर इन्होने तीन दिन तक ब्रत के साथ साधना करके इन्द्र देव को प्रसन्न करके वारिस कराया था तब इन्हें राजा ने सोनवर्षा गांव दान में दे दिया था। भवानी बक्श भावना परक श्रृंगार रस के रससिद्ध कवि थे। उनकी कोई कृति तो नहीं मिलती पर उनके छन्द पुराने लोगों के मुखों पर यदा कदा सुनने को मिल जाता है। महसों राज के पुस्तकालय में उनके छन्द मिल जाते हैं। मनहरण छन्द में उन्हें महारथ हासिल थी। भाषा में मार्धर्य व प्रसाद गुण तथा अलंकारों में पटुता देखी जा सकती है।

3 ब्रहम भट्ट बलदेव ‘बदली’ :-

यह राजकवि पीताम्बर के लड़के तथा भवानी बक्श के अनुज थे। सभी कवियों में राजश्रयी परम्परा का लक्षण दिखाई पड़ता है। यह भी राजा जसवन्त के आश्रयी थे। ये अधिकांशतः फुटकर रचना करते तथा अपने आश्रय दाताओं को सुनाकर उनका मनोविनोद कर इनाम पाया करते थे। उनकी रचनायें उनके वंशज हनुमंत के संकलन में संकलित मिलती है। वे श्रृंगार और नीति के कवि थे। उन्होंने मनहरण, कवित्त, दोहा और सवैया छन्द लिखें हैं। भाषा टकसाली ब्रज तथा फारसी मिश्रित पाया गया है। कथनों में समत्कार अधिक दिखलाई पड़ता है। उनके कुछ दोहे इस प्रकार हैं-

मानी नृप जसवन्त को,

बलदी महसों गांव।

कवि कोविद बुध जनन को,

देता सुख की छांव।।

सूर्य वंश क्षत्रिय सुभट

श्री जसवन्त सुजान।

पालक हैं सद्धर्म को

घालक हैं अभिमान।।

आवत हंसता है यहां

प्रमुदित ऋतु बसन्त।

मिलत सदा सुख प्रजा को

तिय को मिलवत कंत।।

  1. हनुमन्त कवि

ब्रह्मभट्ट कवि हनुमंत ब्रह्मभट्ट बल्देव के प्रपौत्र थे। यह लाल टिकोरी तालुकेदार सिसवा गोरखपुर व राजा सर्वजीत शाही तमकुही के आश्रयी थे। ये अधिकांशतः फुटकर रचना करते तथा अपने आश्रय दाताओं को सुनाकर उनका मनोविनोद कर इनाम पाया करते थे। रीति परम्परा से सम्बद्ध उनके श्रृंगार परक छन्द मजी मजाई भाषा में सुन्दर बन पड़े है। वे लछिराम के साथ अयोध्या के ददुआ के दरबार में भी कविता पाठ कर चुके है। उनके सौकड़ों फुटकर छन्द महसो राज पुस्तकालय में संग्रहीत थे। गंगा अवतरण का एक छन्द दर्शनीय है–

शंकर जटा तैं कढ़ी अधिक प्रसन्न ह्वौके

भगीरथ स्तुति से मानस पखरनी हैं।

ताते तीन धार नभ उमड़ि बसी है एक

नाम मंदाकिनी विदित वेद बरनी है।

तीखी ह्वै पधारी परभावती पाताल मांहि

भाखैं हनुमंत भागीरथी नाम धरनी है।

मोटे मोटे पातक बसन काटिबे को जनु

गंगा जी की धारा कलिकाल में कतरनी है।।

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)

Comment: