भारतीय वीरांगना अमृता विश्नोई का पर्यावरण संरक्षण हेतु दिया गया अभूतपूर्व बलिदान
5 सितम्बर सन 1730 ई. खेजडली, जोधपुर, राजस्थान.5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता हैं, लेकिन यह दिन विश्व जगत मे निवास करने वाले व्यक्तियो के मन में सच्ची प्रेरणा नहीं जगा पाता, क्योंकि इसके साथ विश्व इतिहास की कोई प्रेरक घटना नहीं जुड़ी, इस दिन जुलूस, धरने, प्रदर्शन, भाषण तो होते हैं, पर उससे जन सामान्य के मन पर कोई असर नहीं होता, वहीं भारत के इतिहास में 5 सितम्बर सन 1730 ई. को एक ऐसा घटनाक्रम घटित हुआ, जिसकी विश्व में किसी भी घटना से कोई तुलना नहीं की जा सकती.राजस्थान तथा भारत के अनेक क्षेत्रों में बिश्नोई समुदाय के लोग रहते हैं, उनके गुरु जम्भेश्वर जी ने अपने अनुयायियों को हरे पेड़ न काटने, पशु पक्षियों को न मारने तथा जल गन्दा न करने जैसे 29 नियम दिये थे, इन 20 + 9 नियमों के कारण उनके शिष्य बिश्नोई कहलाते हैं. पर्यावरण प्रेमी होने के कारण इनके गाँवों में पशु पक्षी निर्भयता से विचरण करते हैं. सन 1730 में इन पर्यावरण प्रेमियों के सम्मुख परीक्षा की वह महत्वपूर्ण घड़ी आयी थी, जिसमें उत्तीर्ण होकर इन्होंने विश्व इतिहास में स्वयं को अमर कर लिया.
सन 1730 ई. में जोधपुर नरेश अजय सिंह को अपने महल में निर्माण कार्य के लिए चूना और उसे पकाने के लिए ईंधन की आवश्यकता पड़ी. उनके आदेश पर सैनिकों के साथ सैकड़ों लकड़हारे निकटवर्ती गाँव खेजड़ली में शमी वृक्षों को काटने चल दिये, जैसे ही यह समाचार उस क्षेत्र में रहने वाले बिश्नोइयों को मिला, वे इसका विरोध करने लगेे.
जब सैनिक नहीं माने, तो एक साहसी महिला इमरती देवी के नेतृत्व में सैकड़ों ग्रामवासी, जिनमें बच्चे और बड़े, स्त्री और पुरुष सब शामिल थे, पेड़ों से लिपट गये.उन्होंने सैनिकों को बता दिया कि उनकी देह के कटने के बाद ही कोई हरा पेड़ कट पायेगा, सैनिकों पर भला इन बातों का क्या असर होना था, वे राजज्ञा से बँधे थे, तो ग्रामवासी धर्माज्ञा से, अतः वृक्षों के साथ ही ग्रामवासियों के अंग भी कटकर धरती पर गिरने लगे.
सबसे पहले वीरांगना अमृता विश्नोई पर ही कुल्हाड़ियों के निर्मम प्रहार हुए और वह वृक्ष रक्षा के लिए प्राण देने वाली विश्व की पहली महिला बन गयी.
इस बलिदान से प्रेरणा लेकर उत्साहित ग्रामवासी पूरी ताकत से पेड़ों से चिपक गये, 5 सितम्बर सन 1730 ई. को प्रारम्भ हुआ यह बलिदान का पर्व 27 दिन तक अनवरत चलता रहा. इस दौरान 363 लोगों ने बलिदान दिया, इनमें अमृता विश्नोई की तीनों पुत्रियों सहित 69 अन्य महिलाएँ भी थीं.
अन्ततः उक्त घटनाक्रम का पता चलने पर राजा ने स्वयं आकर क्षमा माँगी और हरे पेड़ों को काटने पर प्रतिबन्ध लगा दिया. ग्रामवासियों को उससे कोई बैर तो था नहीं, उन्होंने भी राजा को क्षमा कर दिया.
यह विरल बलिदान का घटनाक्रम विश्व इतिहास की अनुपम घटना है, इसलिए यही तिथि भाद्रपद शुक्ल पक्ष दस या 5 सितम्बर वास्तविक विश्व पर्यावरण दिवस होने योग्य है.संदर्भ – घटनाक्रम के सम्बन्ध में प्रकाशित विभिन्न लेख, पुस्तक, इन्टरनेट पर सार्वजनिक रुप उपलब्ध जानकारी के स्रोत तथा सोशल मीडिया पर विभिन्न व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत विचारो पर आधारित…. शौर्य गाथा पेज सेप्रस्तुति — धर्म चंद्र पोद्दार
जमशेदपुर झारखंड