*"निष्काम कर्म करने से सुख शांति मिलती है, और सकाम कर्म करने से कभी सुख शांति मिलती है, और कभी दुख एवं अशांति भी।" "यदि आप सुख शांति से जीना चाहते हैं, तो निष्काम कर्म करने का प्रयत्न करें।"*
निष्काम कर्म करने का तात्पर्य है, कि *"मोक्ष प्राप्त करने की भावना से कर्म करें, सांसारिक धन सम्मान या अन्य भौतिक सुख सुविधाएं प्राप्त करने के उद्देश्य से नहीं। ऐसे उद्देश्य से किया गया कर्म निष्काम कर्म कहलाता है।"*
*"और जो कर्म सांसारिक धन सम्मान या अन्य भौतिक सुख सुविधाएं प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाता है, वह सकाम कर्म कहलाता है।"*
सांसारिक धन सम्मान प्रशंसा आदि प्राप्त करने के उद्देश्य से यदि आप कर्म करते हैं, तो दो संभावनाएं हो सकती हैं। *"कभी वह आपकी इच्छा पूरी हो भी सकती है, और कभी नहीं भी। यदि आपकी इच्छा पूरी हो गई, तब तो ठीक है। आपको सुख शांति मिल जाएगी।"*
*"यदि दूसरों ने आपकी प्रशंसा आदि नहीं की, तब आपको अवश्य ही कष्ट होगा।" "उस कष्ट से बचने के लिए आप 'स्वयं इच्छा न करें,' कि दूसरे लोग आपकी स्तुति प्रशंसा करें।" "वे अपनी ओर से आपकी स्तुति प्रशंसा आदि भले ही कर दें, तो ठीक है। परंतु 'आप इच्छा न करें।' ऐसा करने से आप सुखी रहेंगे, अन्यथा दुखी रहेंगे।"*
*"यदि आप धन सम्मान स्तुति प्रशंसा आदि की इच्छा नहीं करेंगे, और मोक्ष प्राप्ति की ही इच्छा से कर्म करेंगे, तो ऐसी स्थिति में दूसरे लोग यदि आपकी स्तुति प्रशंसा कर देंगे, तब तो ठीक ही है।" "यदि नहीं करेंगे, तो भी आप को दुख नहीं होगा। क्योंकि दुख का कारण तो इच्छा ही है।" "उस समय स्तुति सम्मान प्रशंसा आदि की इच्छा आपने की नहीं, इसलिए आप उस स्थिति में दुखी नहीं होंगे। अतः निष्काम कर्म करना ही अधिक उत्तम है। निष्काम कर्म करें, और सदा सुखी रहें।"*
—– “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।”
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