आइए जानें क्या था संथाल विद्रोह (1854 से 1855 तक )
भारत में स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास का जब कांग्रेसीकरण किया गया तो अनेकों ऐसे आंदोलनों को उसमें से बाहर कर दिया गया जिन्होंने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अपने-अपने ढंग से बढ़ चढ़कर भाग लिया था और भारत की स्वाधीनता को शीघ्र लाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था । ऐसा ही एक संथाल आंदोलन हमारे देश के बिहार / झारखंड / बंगाल प्रांत में लड़ा गया था ।संथाल जाति बंगाल और बिहार में फैली हुई थी। ब्रिटिश शासन व्यवस्था और कर प्रणाली ने संथालों के जीवन को तहस नहस कर दिया। हर वस्तु पर कर लगे थे, यहां तक कि जंगली उत्पादों पर भी। करों की वसूली बाहर के लोग करते थे, जिन्हें दिकू कहा जाता था। उनके द्वारा पुलिस प्रशासन के सहयोग से संथालों का शोषण किया जाता था। महिलाओं का बड़े पैमाने पर यौन शोषण भी किया गया था। भागलपुर वर्दवान रेल मार्ग के निर्माण में उन्हें जबरन बेगार करवाया गया। इसी समय पुलिस प्रशासन ने कुछ संथालों को चोरी के इलज़ाम में पकड़ लिया। इस घटना ने गुस्से को और भड़का दिया, और 30 जून 1855 को भागिनीडीह गाँव में 400 ग्रामों के हज़ारों संथाल जमा हुए और विद्रोह का बिगुल फूंक दिया गया। विद्रोह के उद्देश्य थे: दिकुओं का निष्कासन। विदेशी शोषक राज्य समाप्त कर धार्मिक राज्य की स्थापना। सिधोकान्हो इस विद्रोह के नेता थे। क्षेत्र में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया एवं हज़ारों संथालों को मार डाला गया और विद्रोह का दमन कर दिया गया। विद्रोह के कारण सरकर ने भागलपुर एवं वीरभूमि के संथाल बहुल क्षेत्रों को काटकर संथाल परगना ज़िला बनाया। इस क्षेत्र के लिए भू राजस्व की नई प्रणाली बनाई गयी एवं ग्राम प्रधानों के पूर्व के अधिकारों को बहाल किया गया।हमें अपने देश के इतिहास में संथाल आंदोलन में भाग लेने वाले इन महान क्रांतिकारियों के बलिदान को सम्मान देना चाहिए।डॉ राकेश कुमार आर्यसंपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत