ऋषि वाल्मीकि जी को उन की जयंती पर शत-शत नमन

आज हम वाल्मीकि जी की जयंती मना रहे हैं । जिन्हें संसार का आदि कवि कहा जाता है। इन्होंने रामायण जैसा पवित्र ग्रंथ लिखकर मानवता की अपूर्व सेवा की। कालांतर में जब हमारे देश में छुआछूत की बीमारी बढ़ी तो एक वर्ग विशेष को हमने अछूत मान लिया। यद्यपि उसे वर्ग के लोग भारतीय धर्म परंपरा में विश्वास रखने वाले लोग थे और सनातन की रक्षा करने को अपने जीवन का संकल्प मानते थे। इस प्रकार के अमानवीय व्यवहार होने के उपरांत भी उन लोगों ने अपने आप को ऋषि वाल्मीकि जी के साथ जोड़ लिया। ऐसा करके उन्होंने ( उन धर्म भक्षकों को जो उन्हें अछूत मानने लगे थे ) दिखाया कि यदि तुम लोग हमें राम के मंदिर में नहीं जाने देना चाहते हो तो हम अपने आप को उस महापुरुष के साथ जोड़ लेते हैं, जिन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का परिचय आपसे करवाया। कहने का अभिप्राय है कि अप्रत्यक्ष रूप से वे फिर भी राम के उपासक बने रहे । ऋषि वाल्मीकि जी के प्रयास का वंदन अभिनंदन करते हुए वह सनातन की रक्षा के लिए एक सिपाही के रूप में मैदान में आ गए। कुछ विधर्मी जब छुरे चला कर हिंदुओं को डरा रहे थे, तब वाल्मीकि जी के अनुयायियों ने उनके विरुद्ध छुरे का खुला प्रयोग कर उन्हें यह आभास करवा दिया कि हम सनातन के सिपाही हैं। साथ ही उन्होंने सूअर पालन का व्यवसाय अपना कर विधर्मियों को यह संकेत दे दिया कि जिसे तुम घृणा से देखते हो, उसे हम अपनी आजीविका का साधन बना लेते हैं।
ऋषि वाल्मीकि जी के इन अनुयायियों से विधर्मियों को भय लगने लगा था। ऋषि वाल्मीकि जी की जयंती के अवसर पर हमें अपने उन अछूत भाइयों के प्रति और उनकी सनातन के प्रति अटूट श्रद्धा और सेवा भाव के प्रति सम्मान दिखाते हुए उन्हें अपने गले लगाने का भी संकल्प लेना चाहिए। समझना चाहिए कि इन लोगों ने किन विषम परिस्थितियों में सनातन की किस प्रकार सेवा की थी और अपने आप को दलित शोषित उपेक्षित होने के अभिशाप से पीड़ित होते हुए देखकर भी अपना धर्म नहीं छोड़ा था। सचमुच , सनातन के शत्रु वे लोग हैं जो मानव को मानवता से दूर करने की अस्पृश्यता जैसी बीमारी को फैलाने के लिए जिम्मेदार रहे हैं।

डॉ राकेश कुमारआर्य

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