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भारत की वर्ण व्यवस्था बनाम जाति व्यवस्था

अमैथुनी सृष्टि में चार ऋषि हुए जिन्होंने ब्रह्मा को ज्ञान दिया तत्पश्चात मैथुनी सृष्टि प्रारंभ हुई और ऋषियों की संतान होने के कारण सर्ग के प्रारंभिक काल में सभी ब्राह्मण थे क्योंकि ऋषियों की संतान थे। जैसे-जैसे ब्राह्मणों को अपनी तथा धर्म की रक्षा करने के लिए आवश्यकता हुई तो उन्होंने कुछ रक्षक (छत्रियां) बना लिए जब कृषि और व्यापार करने की आवश्यकता अनुभव की गई तो वैश्य बनाए गये। इन तीनों की सेवा करने के लिए चौथा वर्ण बनाया गया। जो विद्याधन करके ब्राह्मण नहीं बन सकता था छतरी नहीं बन सकता था वैश्य नहीं बन सकता था उनका सेवा करने का अवसर दिया गया था। इससे सिद्ध होता है कि क्षत्रिय, वैश्य ,शूद्र भी ब्राह्मण थे। यह जातिगत व्यवस्था बाद में ब्राह्मणों ने ही सर्वप्रथम बनाई और फिर तो ऐसे भी कुछ ब्राह्मण पैदा हुए जिन्होंने शूद्र को अछूत घोषित कर दिया तथा वैदिक विद्या से वंचित कर दिया।
जबकि महर्षि दयानंद स्वामी जी महाराज ने अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में स्पष्ट लिखा है की शूद्र के हाथों से भोजन बनाया हुआ शेष तीन वर्ण ग्रहण करें।
इससे छुआछूत को मिटाया गया।
महर्षि दयानंद महाराज ने सत्यार्थ प्रकाश के तृतीय समुल्लास में स्त्री तथा शूद्रका विद्या अधिकार स्पष्ट लिखा है।
पूर्व पक्षी ने महर्षि दयानंद से निम्न प्रश्न किया।
क्या स्त्री और शूद्र भी वेद पढ़े?
जो यह पढ़ेंगे तो हम फिर क्या करेंगे? और उनके पढ़ने में प्रमाण भी नहीं है जैसा कि यह निषेध है।
“स्त्री शुद्रं नाधीषातामिति श्रुते”
स्त्री और शूद्र न पढ़ें यह श्रुति है।

महर्षि स्वामी दयानंद महाराज तो महर्षि हैं, कितना सुंदर वेदों के आधार पर उत्तर देते हैं ।
सब स्त्री और पुरुष अर्थात मनुष्य मात्र को पढ़ने का अधिकार है तुम कुआं में पडो और यह श्रुति तुम्हारी कपोलकल्पना से हुई है। किसी प्रामाणिक ग्रंथ की नहीं है। और सब मनुष्यों के वेद आदि शस्त्र पढ़ने और सुनने के अधिकार का प्रमाण यजुर्वेद के 26वें अध्याय में दूसरा मंत्र है।
“यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्य।
ब्रह्मराजाभ्यां शूद्राय चार्याय च स्वाय चारखाय।
यजुर्वेद 26 /2।
जिस विद्या का अधिकार वेद ने दिया हो और वेद तो ईश्वरीय वाणी है। वेद तो अपौरुषेय है जिसमें स्त्री और शूद्र को भी पढ़ने का अधिकार दिया गया है।
लेकिन यह अधिकार अपना एकाधिकार स्थापित करने के लिए स्त्री और शूद्र से छीनने का प्रयास किया गया जिससे वह हमसे शूद्र दूर होते चले गए।
महर्षि दयानंद ने उक्त मंत्र का अर्थ करते हुए आगे लिखा है कि परमेश्वर कहता है कि जैसे मैं सब मनुष्यों के लिए इस कल्याण अर्थात संसार और मुक्ति के सुख देने हारे ऋग्वेद आदि चारों वेदों की वाणी का उपदेश करता हूं वैसे तुम भी किया करो।
यहां कोई ऐसा प्रश्न करें कि जन शब्द से द्विजो (पढ़ने के बाद जो ब्राह्मण या विद्वान बनता है)का ग्रहण करना चाहिए ।केवल ब्राह्मण को ही मानना चाहिए। क्योंकि स्मृति आदि में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्यही के वेदों के पढ़ने का अधिकार लिखा है। स्त्री और शूद्र आदि वर्णों का नहीं।
इस पर लिखते हैं की देखो, परमेश्वर स्वयं कहता है कि हमने ब्राह्मण, क्षत्रिय , वैश्य, शूद्र और अपने भृत्य या स्त्री आदि और अति शूद्र आदि के लिए भी वेदों का प्रकाश किया अर्थात सब मनुष्य वेदों को पढ़ पढ़ा और सुन सुना कर विज्ञान को बढ़ाकर अच्छी बातों को ग्रहण और बुरी बातों का त्याग करके दुखों से छूटकर आनंद को प्राप्त होवें।
कहिए अब तुम्हारी बात मान या परमेश्वर की निश्चित रूप से परमेश्वर की बात ही माननीय है। इतने पर भी जो कोई इसको ना मानेगा वह नास्तिक कहावेगा।
क्योंकि
“नास्तिको वेदनिंदक”
मनुस्मृति 5/11
महर्षि दयानंद इस विषय में आगे लिखते हैं कि
वेदों का निंदक और उनको न मानने वाला नास्तिक कहाता है क्या परमेश्वर शूद्रों का भला करना नहीं चाहता था ?
क्या ईश्वर पक्षपाती है?
कि वेदों को पढ़ने और सुनने का शूद्रों के लिए निषेध और द्विजों के लिए विधि करें!
जो परमेश्वर का अभिप्राय शुद्ध आदि के पढ़ने सुनाने का न होता तो उनके शरीर में वॉक, और श्रोत्र इंद्रिय क्यों रचता !
जैसे परमात्मा ने पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु,चंद्र ,सूर्य और अन्न् आदि पदार्थ सबके लिए बनाए हैं वैसे ही वेद भी सबके लिए प्रकाशित किया और जहां कहीं निषेध किया है इसका अभिप्राय यह है कि जिसको पढ़ने पढ़ाने से कुछ भी ना आवे वह निर्बुद्धि और मूर्ख होने से शूद्र रहता है उसका पढ़ना पढ़ाना व्यर्थ है और जो स्त्रियों के पढ़ने का निषेध करते हो तो वह तुम्हारी मूर्खता स्वार्थता और निरबुद्धि का प्रभाव है।
देखो वेद में कन्याओं के पढ़ने का प्रमाण।
“ब्रह्मचर्येण कन्या युवान विन्दते पतिम्।”
स्त्रियों को भी ब्रह्मचर्य और विद्या ग्रहण अवश्य करना चाहिए।
क्या स्त्री लोग भी वेदों को पढ़ें?
क्षोतसूत्र आदि में इसका उत्तर स्पष्ट करते हैं।
” इमम् मंत्रं पत्नी पठेत”
अर्थात स्त्री यज्ञ में इस मंत्र को पढ़ें ।जो वेद आदि शास्त्रों को न पढी होवे तो यज्ञ में स्वर सहित मंत्रों का उच्चारण और संस्कृत भाषण कैसे कर सकेगी !भारतवर्ष की स्त्रियों में भूषणरूप गार्गी आदि वेद आदि शास्त्रों को पढ़कर पूर्ण विदुषी हुई थी ।यह शतपथ ब्राह्मण में स्पष्ट लिखा है। भला जो पुरुष विद्वान और स्त्री अविदुषी हो और स्त्री विदुषी और पुरुष अविद्वान हो तो नित्य प्रति देवासुर संग्राम घर में मचा रहे, फिर सुख कहां?
इस प्रकार जो स्त्री न पढ़े तो कन्याओं की पाठशाला में अध्यापिका कहां से होगी! और राज-काज न्यायाधीश आदि ग्रह आश्रम का कार्य जो पति को स्त्री और स्त्री को पति प्रसन्न रखना, घर के सब काम स्त्री के आधीन रहना ,इत्यादि किम बिना विद्या के अच्छे प्रकार कभी ठीक नहीं हो सकते।
प्राचीन काल में तो आर्य राजाओं और राजपुरुषों की स्त्रियां धनुर्वेद अर्थात युद्ध विद्या भी अच्छे प्रकार से जानती थी क्योंकि जो न जानती होती तो कैकई आदि दशरथ आदि के साथ युद्ध में क्यों कर जा सकती!
और युद्ध कर सकती!
इसलिए ब्राह्मणी और क्षत्रिया को सब विद्या वैश्या को व्यवहार विद्या ,शूद्र को पाक आदि सेवा की विद्या अवश्य पढ़नी चाहिए।”

अगर शूद्रा को पाक विद्या नहीं आएगी तो वह शेष तीन वर्णों को पाकशाला में जाकर भोजन आदि की व्यवस्था नहीं कर पाएगी। इससे सिद्ध हुआ की शूद्रा को भोजन बनाने के लिए अपनी पाकशाला में तीनों वर्णों को रखना अनिवार्य है। तो छुआछूत फतेह समाप्त हो जाएगी। और शूद्र को गले लगाकर हम अपना और उसका दोनों का भला कर पाएंगे तभी हम मनुष्य कहलाने के अधिकारी भी बन पाएंगे।
स्वामी जी महाराज आगे इसको स्पष्ट करते हुए लिखते हैं कि
” जैसे पुरुषों को व्याकरण, धर्म, और अपने व्यवहार की विद्या न्यून से न्यून अवश्य पढ़नी चाहिए ,वैसे ही स्त्रियों को भी व्याकरण, धर्म ,वैद्यक, गणित, शिल्प विद्या तो अवश्य ही सीखनी चाहिए ,क्योंकि इनके सीखे बिना सत्यासत्य का निर्णय, पति आदि से अनुकूल वर्त्तमान,(व्यवहार) यथायोग संतान उत्पत्ति ,उनका पालन, वर्धन और सुशिक्षा करना ,घर के सब कार्यों को जैसा चाहिए वैसा करना, वैद्यक विद्या से औषधवत अन्न पान बनाना और बनवाना नहीं कर सकती। जिससे घर में रोग कभी ना आवे, सब लोग सदा आनंदित रहें। शिल्प विद्या के जाने बिना घर का बनवाना वस्त्र, आभूषण आदि का बनाना बनवाना ,गणित विद्या के बिना सब का हिसाब समझना समझाना, वेदादिक शास्त्र विद्या के बिना ईश्वर और धर्म को न जान के अधर्म से कभी नहीं बच सके ।इसलिए वहीं धन्यवादी और कृतकृत्य हैं जो अपने संतानों को ब्रह्मचर्य, उत्तम शिक्षा और विद्या से शरीर और आत्मा के पूर्ण बल को बढ़ावें । जिससे वह संतान माता पिता, पति, सासु, ससुर ,राजा ,प्रजा ,पड़ोसी, इष्ट मित्र और संतान आदि से यथा योग धर्म से बर्तें ।
इसके अलावा स्वामी जी महाराज ने तृतीय समुंल्लास में ही विद्या का अधिकार सबको दिया। लिखते हैं कि

“इस प्रकार आचार्य अपने शिष्य को उपदेश करें और विशेष कर राजा इतर छत्रिय,वैश्य और उत्तम शूद्रों को भी विद्या का अभ्यास अवश्य करें ,क्योंकि जो ब्राह्मण है वही केवल विद्या अभ्यास करें और छत्रिय आदि न करें तो यह विद्या ,धर्म ,राज्य और धन आदि की वृद्धि कभी नहीं हो सकती ,क्योंकि ब्राह्मण तो केवल पढ़ने पढ़ाने और क्षत्रिय आदि से जीविका को प्राप्त होकर जीवन धारण कर सकते हैं। जीविका के आधीन और क्षत्रिय आदि के आज्ञादाता और यथावत परीक्षक दंडदाता न होने से ब्रह्मण आदि सब वर्ण पाखंड ही में फंस जाते हैं। और जब क्षत्रिय आदि विद्वान होते हैं तब ब्राह्मण भी अधिक विद्याभ्यास और धर्मपथ में चलते हैं ।और उन क्षत्रिय आदि विद्वानों के सामने पाखंड झूठ व्यवहार भी नहीं कर सकते ।और जब क्षत्रिय आदि अविद्वान होते हैं तो वह जैसा अपने मन में आता है ब्राह्मण वैसा ही करते करते हैं। इसलिए ब्राह्मण भी अपना कल्याण चाहे तो क्षत्रिय आदि को वेद आदि सत्य शास्त्र का अभ्यास अधिक प्रयास से करावे। क्योंकि क्षत्रिय आदि ही विद्या, धर्म, राज्य और लक्ष्मी की वृद्धि करने वाले हैं ।वह कभी भिक्षावृत्ति नहीं करते ।इसलिए वे विद्या व्यवहार में पक्षपाती भी नहीं हो सकते,और जब सब वर्णों में विद्या सुशिक्षा होती है तब कोई भी पाखंड रूप अधर्म युक्त मिथ्या व्यवहार को नहीं चला सकता।
इससे क्या सिद्ध हुआ कि क्षत्रिय आदि को नियम में चलाने वाले ब्राह्मण और संन्यासी तथा ब्राह्मण और संन्यासी को सुनियम में चलाने वाले क्षत्रिय आदि होते हैं ।
इसलिए सब वर्णों के स्त्री पुरुषों में विद्या और धर्म का प्रचार अवश्य होना चाहिए।”

इस प्रकार महर्षि दयानंद जहां सबके लिए व्यवस्था करते हैं तो उसे शब्द सब स्त्री में तो सारा स्त्री जगत और शब्द पुरुषों में शूद्र वर्ण भी आता है।
यदि अपना कल्याण हम चाहते हैं तो हमें शूद्रों को गले लगाना होगा उनको अपना भाई समझना होगा वो भी आर्य है वो आर्यों की संतान है। वो भी ऋषियों की संतान है। हमारा सबका पवित्र एवं पावन उत्तरदायित्व है कि
हम अपने भाइयों से प्यार तथा सहयोग के साथ रहें।

देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट, ग्रेटर नोएडा।
9811 8383177
827 681439

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