एक मरुत किस प्रकार जीवन जीता है और प्रगति करता है?
सिंहा इव नानदति प्रचेतसः पिशा इव सुपिशो विश्ववेदसः।
क्षपो जिन्वन्तः पृृषतीभिर्ऋष्टिभिः समित्सबाधः शवसाहिमन्यवः।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.64.8 (कुल मन्त्र 740)
(सिंहा इव) शेरों की तरह (नानदति) गर्जना करते हैं और दावा करते हैं (प्रचेतसः) ज्ञान में प्रकाशित, प्रकृति की प्रकृति को जानने वाले (पिशाः इव) हिरण पर सफेद दाग की तरह (सुपिशः) शारीरिक झलक और ज्ञान में सुन्दर (विश्ववेदसः) शरीर और मन में ऊर्जाएं धारण करने वाले (क्षपः) शत्रुओं का नाशक (जिन्वन्तः) शुभ गुणों से प्रेम करने वाला और उनकी वृद्धि करने वाला (पृृषतीभिः) प्रसन्नता की वर्षा करने वाला (ऋष्टिभिः) वज्रों के साथ (समित् सबाधः) शत्रुओं को सीमित करने वाला (शवसा) शक्ति के साथ (अहिमन्यवः) ज्ञान को प्राप्त करता है और देता है।
व्याख्या:-
मरुत अर्थात् श्वास नियंत्रण करने वाले योगियों की क्या शक्तियाँ हैं?
मरुत वे लोग हैं जो प्राणायाम के यौगिक अभ्यासों से वायु पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लेते हैं। उनमें निम्न लक्षण विकसित हो जाते हैं:-
1. सिंहा इव नानदति – वे शेरों की तरह गर्जना करते हैं और दावा करते हैं।
2. प्रचेतसः – वे ज्ञान में प्रकाशित होते हैं और प्रकृति की प्रकृति को जानते हैं।
3. पिशाः इव सुपिशः – वे हिरण पर सफेद दाग की तरह शारीरिक झलक और ज्ञान में सुन्दर होते हैं।
4. विश्ववेदसः – वे शरीर और मन में ऊर्जाएं धारण करते हैं।
5. क्षपः – वे शत्रुओं के नाशक होते हैं।
6. जिन्वन्तः – वे शुभ गुणों से प्रेम करने वाले और उनकी वृद्धि करने वाले होते हैं।
7. पृृषतीभिः – वे प्रसन्नता की वर्षा करते हैं।
8. ऋष्टिभिः समित् सबाधः – वे वज्रों के साथ शत्रुओं को सीमित करने वाले होते हैं।
9. शवसा अहिमन्यवः – वे शक्ति को प्राप्त करते हैं और ज्ञान देते हैं।
जीवन में सार्थकता: –
एक मरुत किस प्रकार जीवन जीता है और प्रगति करता है?
प्राणायाम और ध्यान की लम्बी और लगातार साधनाओं के बाद एक वास्तविक योगी आध्यात्कि गुरु बन जाता है। वह शक्तिशाली होता है परन्तु अपने जीवन में सीमित रहता है, पूरी तरह से संतुष्ट और समस्यारहित। कोई भी उसके मार्ग पर बाधाएँ उत्पन्न नहीं कर सकता। यहाँ तक कि प्रकृति भी उसके लिए कठिनाईयाँ पैदा नहीं करती। एक स्थिर बुद्धि के साथ वह समस्याओं और बाधाओं की परवाह किये बिना अपने पथ पर प्रगतिशील रहता है। वह अपने जीवन का ज्ञान बिना किसी शर्त के अन्यों को देता है। वह आकर्षण और प्रेरणा का स्रोत बन जाता है।
एक वास्तविक योगी बनने के लिए एक वास्तविक योगी का अनुसरण करो।
अपने आध्यात्मिक दायित्व को समझें
आप वैदिक ज्ञान का नियमित स्वाध्याय कर रहे हैं, आपका यह आध्यात्मिक दायित्व बनता है कि इस ज्ञान को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचायें जिससे उन्हें भी नियमित रूप से वेद स्वाध्याय की प्रेरणा प्राप्त हो। वैदिक विवेक किसी एक विशेष मत, पंथ या समुदाय के लिए सीमित नहीं है। वेद में मानवता के उत्थान के लिए समस्त सत्य विज्ञान समाहित है।
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