पूरी भक्ति भावना और श्रद्धा के बीच तीन दिन तक चली वेद कथा
बुलंदशहर। यहां स्थित गांव जलालपुर में विगत 10 अक्टूबर से 12 अक्टूबर 2024 तक निरंतर तीन दिन तक वेद कथा का आयोजन किया गया। इस वेद कथा के ब्रह्मा स्वामी चेतन देव वैश्वानर ( कन्या गुरुकुल महाविद्यालय इगलास अलीगढ़ ) रहे। जबकि भजनोपदेशन के माध्यम से राष्ट्रीय उपदेशक पंडित नरेश दत्त आर्य, नरेंद्र दत्त आर्य और हृदयेश आर्या के द्वारा लोगों का मार्गदर्शन किया गया।
कार्यक्रम के दूसरे दिन सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता डॉ राकेश कुमार आर्य मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित हुए। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि भारतवर्ष की यज्ञ योग की परंपरा को बचाए रखने के लिए भारत ने लाखों करोड़ों की संख्या में बलिदान दिए हैं । चोटी और जनेऊ की रक्षा के लिए सनातन के अनेक वीरों ने अपना सिर कटा दिया परंतु सर झुकाया नहीं। उन्होंने इतिहास के गौरवपूर्ण पक्ष पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जब जब भी कोई विदेशी आक्रमणकारी भारत की ओर आया और उसने भारत की यज्ञ की परंपरा को मिटाने का प्रयास किया तब यज्ञ परंपरा को बचाने के लिए लोगों ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी।
श्री आर्य ने कहा कि आज जब हम विजयदशमी का पर्व मना रहे हैं तो इस अवसर पर हमें अपने इतिहास नायक श्री राम के जीवन से भी बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है। जिन्होंने सनातन की रक्षा के लिए संपूर्ण भूमंडल से आतंकवादी शक्तियों का विनाश किया था । उसी परंपरा को आगे चलकर श्री कृष्ण जी ने भी यथावत जारी रखा। इतना ही नहीं भारत के अनेक राजाओं और क्रांतिकारियों ने भी इस परंपरा को निरंतर जारी रखते हुए सनातन को बचाने का अर्थक और गंभीर प्रयास किया। उन्होंने कहा कि भारत यदि आज विश्व के नक्शा पर अपना अस्तित्व बचाने में सफल रहा है तो इसका कारण केवल एक है कि इसने बलिदान भी यज्ञ समझ कर ही दिए हैं। उन्होंने कहा कि शिवाजी महाराज ने अरबी और फारसी के प्रशासनिक शब्दों को हटाकर उनके स्थान पर संस्कृत के शब्दों का प्रचलन आरंभ कराया। इसके लिए एक मंत्रालय अलग से गठित करके 1380 शब्दों को प्रशासनिक शब्दावली से निकालकर उनके स्थान पर संस्कृतनिष्ठ शब्दों को स्थापित किया। इसी परंपरा को आगे चलकर सावरकर जी ने अपनाया और उसके पश्चात आर्य समाज ने हिंदी रक्षा के लिए काम करते हुए इस पर विशेष और गंभीर परिश्रम किया।
श्री आर्य ने अपने संबोधन में कहा कि स्वामी दयानंद जी महाराज ने महिलाओं के लिए भी विशेष कार्य किया जिन्हें वेद पढ़ने का अधिकार नहीं था, उन्हें स्वामी जी महाराज ने वेद पढ़ने का अधिकार दिलवाया। वेदों की परंपरा भारत से लुप्त हो गई थी, जिसे फिर से प्रतिस्थापित करने का सराहनीय और साहसिक कार्य स्वामी दयानंद जी महाराज ने किया। आज हमारी बहन बेटियां सभा में बैठकर वेद कथाओं का यदि आनंद ले रही हैं तो यह स्वामी दयानंद जी महाराज के परिश्रम का ही परिचायक है।
कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए कार्यक्रम के संयोजक और आर्य परंपरा के प्रति अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले आर्य गजेंद्र सिंह ने हमें बताया कि इस कार्यक्रम में अनेक विद्वानों ने समय-समय पर आकर लोगों का मार्गदर्शन किया। उन्होंने कहा कि वेद कथा का आयोजन लोगों की भारत की सनातन परंपरा के प्रति हटती जा रही निष्ठा को फिर से प्रतिस्थापित करने के लिए किया गया है । जिससे वह प्रतिवर्ष इसी प्रकार संपन्न करवाते हैं। इस अवसर पर सभी उपस्थित महानुभावों और अतिथियों ने आर्य गजेंद्र सिंह जी की पुत्रवधू श्रीमति गुंजन को भी विशेष रूप से आशीर्वाद दिया जिन्होंने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए इस परिवार का नाम रोशन किया है।
कार्यक्रम में राघवेंद्र सोलंकी, आर्य विजेंद्र नेताजी, आर्य हरी राज सिंह सोलंकी , श्रीनिवास आर्य , आर्य प्रतिनिधि सभा जनपद गौतम बुद्ध नगर के उप प्रधान महावीर सिंह आर्य, मुकेश कुमार आर्य, भारत को समझो अभियान समिति के कार्यालय मंत्री नागेश कुमार आर्य सहित सैकड़ो गणमान्य लोग उपस्थित रहे। राघवेंद्र सोलंकी ने हमें बताया कि वेद कथा में महिलाओं की उपस्थिति सराहनीय रही। जिन्होंने प्रत्येक सत्र में आकर वेद कथा का पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ आनंद लिया। अनेक युवाओं ने अपनी बुराइयों को छोड़ने का संकल्प दशहरा के पर्व पर लिया। जबकि महिलाओं ने भी पाखंडों से बचकर सन्मार्ग को पकड़ने का संकल्प लिया।