भारत में द्वि राष्ट्र थ्योरी यानी “हिंदू और मुस्लिम” एक साथ नहीं रह सकते हैं ,उसके जन्मदाता ना मोहम्मद अली जिन्ना है, ना इकबाल हैं और ना ही विनायक दामोदर सावरकर है ……
बल्कि पढ़ा लिखा एक मुस्लिम सर सैय्यद अहमद खान था।
उस समय तो सावरकर पैदा भी नहीं हुए थे ।
सन १८६७ में उन्होंने ने बनारस के आयुक्त शेक्सपियर से वार्तालाप में पहली बार हिंदुओं और मुसलमानों को “दो राष्ट्र” के रूप में वर्णित किया (अल मुजाहिद, उक्त, पृ.९२)।
फिर १८८३ में दिए गए एक भाषण में, सैय्यद ने कहा “अब मान लीजिए कि अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा… तो भारत का शासक कौन होगा? और यदि हिंदू बैठा तो क्या हम मुसलमानों का मुस्तकबिल सुरक्षित रहेगा ? क्या इन परिस्थितियों में यह संभव है कि मुस्लिम और हिंदू जो कि दो राष्ट्र हैं, एक ही सिंहासन पर बैठे हों और सत्ता में बराबर बने रहें?
निश्चित रूप से संभव नहीं है।
अतः यह आवश्यक है कि उनमें से एक दूसरे पर विजय प्राप्त करे और उसे नीचे गिराए” (मेकिंग ऑफ पाकिस्तान, रिचर्ड साइमंड्स, फेबर, १९५०, पृष्ठ ३१)।
अंग्रेजों के प्रति वफादारी की अलीगढ़ नीति को १९०६ में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के संस्थापक सिद्धांतों में शामिल किया गया था।
यानी १८६७ में ही अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने “द्विराष्ट्र सिद्धांत” दिया था यानी टू नेशन थ्योरी की अनुशंसा की थी।
और यह भी कहा था कि हिंदुओं और मुसलमानों का कल्चर धर्म रहन-सहन खान-पान विचारधारा बिल्कुल अलग है और यह दोनों एक साथ नहीं रह सकते।
और मुसलमानों ने कभी भी आजादी के आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया। (एक आध अपवाद छोड़कर) वह तो अंग्रेजों ने जब तुर्की के खलीफा यानी ऑटोमन साम्राज्य पर हमला किया तब जाकर मुसलमानों ने अंग्रेजों का विरोध किया और मुसलमानों द्वारा अंग्रेजों का यह विरोध देश के लिए नहीं बल्कि तुर्की के खलीफा के लिए था। इसके बाद मुसलमानों का पूरा ध्यान देश के विभाजन कराने में था।