Categories
आओ कुछ जाने

ईश्वर की आत्माओं तथा शरीरों से संबंधित कर्म फल व्यवस्था

  • ईश्वर ने इस विशाल किन्तु ससीम ब्रह्माण्ड की रचना केवल मानव शरीरधारी आत्माओं के लिए मानव शरीर रुपी साधन से किसी जाने वाले कर्मों के फल के भुगतान के लिए पुनः विभिन्न शरीरों को धारण कराने तथा सुख दुख की अनुभूति के लिए की है।सुख दुख की अनुभूति केवल शरीर रुपी साधन से ही आत्मा को संभव है जो पंच महाभूतों से ही निर्मित होता है और यह पंच महाभूत इस सृष्टि के मुख्य घटक हैं। हमें यह सदा स्मरण रहना चाहिए कि चेतन तत्व परमात्मा तथा समस्त आत्माओं को छोड़कर अन्य सभी केवल जड़ प्रकृति से निर्मित रुपांतरित स्वरूप हैं ।इस शाश्वत नियम से तो सुख दुख,हर शरीर,पंच महाभूत, सूर्य, चंद्रमा,तारे,ग्रह नक्षत्र इत्यादि सब कुछ जड़ प्रकृति से ही बनते हैं और इनमें जड़ता का गुण शाश्वत बना रहता है। ठीक इसी तरह आत्मा और परमात्मा के गुण भी शाश्वत होते हैं किन्तु इनमें जड़ प्रकृति के जैसे परिवर्तन नहीं होता इसलिए ईश्वर तथा समस्त आत्माओं में शुद्ध, बुद्ध और मुक्त बने रहने का गुण रहता है।
    आत्मा का स्वभाव ही अध्यात्म है और अध्यात्म का अभ्यास करते हुए जब यह अध्यात्म आत्मा का स्वभाव बन जाता है तभी आत्मा को भव बंधन से मुक्त होने का अनुभव होता है। ईश्वर तो शरीर धारण करता ही नहीं है इसलिए वह शाश्वत भव बंधन से मुक्ति की स्थिति में ही बना रहता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ईश्वर कभी भी अपने द्वारा निर्मित किसी भी पदार्थ का उपयोग अपने लिए नहीं करता किन्तु सब कुछ केवल आत्मा के कल्याण के लिए ही करता है।
    रामकला आर्य योग साधक व आध्यात्मिक चिंतक

Comment:Cancel reply

Exit mobile version