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इतिहास के पन्नों से

जब नोआखाली की आग फैल गई थी बिहार तक

इस लेख में नोआखली दंगे की बात आई है तो आपके मन में ज़रूर सवाल उठ रहा होगा कि वहाँ क्या हुआ था। आज ये जगह बांग्लादेश में है, लेकिन अक्टूबर 1946 में यहीं पर हिन्दुओं का भयंकर कत्लेआम किया गया था। इसे भारत के विभाजन के लिए हुई हिन्दू विरोधी हिंसा की शुरुआत कह सकते हैं। इस इलाके में हिन्दू समृद्ध थे, जमींदार थे, मुस्लिमों का जीवन चलाते थे – उन्हीं मुस्लिमों ने उनका कत्लेआम किया। नोआखली और टिप्पेरा में हिंसा भड़काने के पीछे मौलाना सैयद गुलाम सरवर हुसैनी का नाम लिया जा सकता है।

असल में 22-24 मार्च, 1940 में मुस्लिम लीग के लाहौर सत्र में अलग मुस्लिम मुल्क के लिए प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद से ही नोआखली में अल्पसंख्यक हिन्दुओं के खिलाफ माहौल बनाना शुरू कर दिया गया था। सरवर ने अपने भाषणों में हिन्दू देवियों के लिए ‘वेश्या’ शब्द तक का इस्तेमाल किया था। 1930 के दशक में हिन्दुओं के नियंत्रण वाले बाजारों में खुल कर गोमांस की बिक्री शुरू कर दी गई। नोआखली में इस्लामी ‘मियार फ़ौज’ के बैनर तले भीड़ इकट्ठा कर के हिन्दुओं का नरसंहार किया जाता था।

महात्मा गाँधी ने नोआखली पहुँच कर गाँव-गाँव घूमना शुरू किया और नैतिकता की आड़ में हिन्दुओं को बदला न लेने के लिए कहने लगे, हिन्दू मरते रहे। 16 अगस्त, 1946, जिसे मुस्लिम लीग ने ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ नाम दिया था, उस दिन कलकत्ता में दंगे हुए थे और 10,000 लोग मरे गए थे जिनमें अधिकतर हिन्दू थे। हुसैन शाहिद सुहरावर्दी उस समय बंगाल का मुख्यमंत्री हुआ करता था और उसने इस्लामी भीड़ को आश्वासन दिया था कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।

इसी दौरान गोपाल मुखर्जी के रूप में एक स्थानीय नेता उभरा और उसने कई हिन्दुओं की जान बचाई। उन्हें हम गोपाल पाठा के रूप में भी जानते हैं। अगर मुस्लिम लीग का कलकत्ता को पाकिस्तान में मिलाने का सपना पूरा नहीं हो पाया, उसमें इनका बड़ा योगदान था। उन्होंने महात्मा गाँधी के कहने के बावजूद अपने हथियार सौंपने से इनकार कर दिया था। मुस्लिम लीग ने अंत में उनसे हिंसा रोकने का निवेदन किया और हिन्दुओं की सुरक्षा की गारंटी दिए जाने के बाद उन्होंने बात मानी।

इन्हीं दंगों का असर बिहार में भी दिख रहा था। बिहार में उस साल जून और सितंबर में भी दंगे हो चुके थे। 27 अक्टूबर से लेकर 9 नवंबर तक स्थिति सबसे ज़्यादा बिगड़ गई। भारत के अंतरिम सरकार का गठन 2 सितंबर, 1946 को ही हो चुका था और जवाहरलाल नेहरू इसके मुखिया थे। वो भी मुस्लिमों पर हमले की खबर सुन कर बिहार पहुँचे।
ध्यान दीजिए, वो नोआखली नहीं गए जहाँ हिन्दुओं का नरसंहार हुआ था। 5 नवंबर, 1946 को महात्मा गाँधी ने बिहार दंगों के विरुद्ध अनशन की घोषणा कर के इसे तुरंत रोकने को कहा था।

महात्मा गाँधी ने पूरे बिहार को बताया ‘पापी’ और ‘कुकर्मी’
अगले दिन ऑस्ट्रेलियाई अख़बार ‘डेली मिरर’ में खबर छपी थी कि अंतरिम सरकार दंगों की खबर छापने को लेकर भी समाचारपत्रों पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है। महात्मा गाँधी बिहार दंगों के समय कलकत्ता में थे और नोआखली के लिए जाने वाले थे। उन्हें बिहार में हुए दंगों के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन पता नहीं उन्हें किसने बता दिया कि वहाँ केवल मुस्लिम ही मारे जा रहे हैं और इस जानकारी के आधार पर उन्होंने पूछा कि क्या बिहार के 14% मुस्लिमों को बर्बर तरीके से रौंद देना राष्ट्रवाद है?

6 नवंबर, 1946 को उन्होंने कहा था, “मुझे ये कहे जाने की ज़रूरत नहीं है कि मैं कुछ हजार बिहारियों की गलती के लिए पूरे बिहार को पापी न कहूँ। क्या बिहार एक बृजकिशोर प्रसाद और एक राजेंद्र प्रसाद का श्रेय नहीं लेता? मुझे भय है कि अगर बिहार में हिन्दुओं का कदाचार जारी रहा तो दुनिया भारत के सभी हिन्दुओं की निंदा करेगी। बिहारी हिन्दुओं के कुकृत्य कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना के इस तंज को सही साबित करते हैं कि कॉन्ग्रेस एक हिन्दू संगठन है, भले ही ये अपने पदाधिकारियों में सिख, मुस्लिम, ईसाई, जैन और पारसी नेताओं के होने की बात करता हो।”

उन्होंने बिहारी हिन्दुओं पर भारत को कलंकित करने तक के आरोप मढ़ दिए थे। उन्होंने हिन्दुओं को नीचा दिखाते हुए कहा था कि तुम सब अपने अमानवीयता के लिए पश्चाताप करो और कॉन्ग्रेस नेताओं को आश्वस्त करो कि मुस्लिमों का उतना ही ख्याल रखोगे, जितना अपने भाई-बहनों का। उन्होंने हिन्दुओं को ये तक कहा था कि न सिर्फ मुस्लिमों को वापस बुलाएँ, बल्कि उनके घर बनवाएँ और मंत्रियों से उनकी मदद करने को कहें। ये थे हिन्दुओं के लिए महात्मा गाँधी के शब्द, बाक़ी नोआखली में कितने मुस्लिमों ने उनकी बात मानी ये इसी से समझ लीजिए कि आज ये क्षेत्र बांग्लादेश में है, एक इस्लामी मुल्क में।

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