सत्यार्थ प्रकाश में उल्लिखित राज वंशावली क्या दोषपूर्ण है?
महर्षि दयानंद जी महाराज ने अपने अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश के ग्यारहें समुल्लास में आर्य राजाओं की वंशावली दी है। जिसे हम यहां यथावत देकर तब उस पर विचार करेंगे कि इस वंशावली को देने के पीछे महर्षि का मन्तव्य क्या था और हमने उस मन्तव्य को समझा या नही? :-
आर्यावर्त्तदेशीय राज्यवंशावली
इंद्रप्रस्थ के आर्य लोगों ने श्रीमन्तमहाराज यशपाल पर्यन्त राज्य किया। जिनमें श्रीमन्महराजे युधिष्ठर से महाराज यशपाल तक वंश अर्थात पीढ़ी अनुमान 124 वर्ष 4157 मास 9 दिन 14 समय में हुए हैं। इनका ब्यौरा निम्न है-
राजा शक वर्ष मास दिन
124 4157 9 14
श्री मन्महाराजे युधिष्ठरादि वंश अनुमान पीढ़ी 30 वर्ष 1770 मास 11 दिन 10 इनका विस्तार–
आर्य राजा वर्ष मास दिन
- राजा युधिष्ठर 36 8 25
-
परीक्षित 60 0 0
-
राजा जनमेजय 84 7 23
-
राजा अश्वमेध 82 8 22
-
द्वितीय राम 88 2 8
-
छत्रमल 81 11 27
-
चित्ररथ 75 3 18
-
दुष्टïशैल्य 75 10 24
-
राजा उग्रसेन 78 7 21
-
राजा शूरसेन 78 7 21
-
भुवनपति 69 5 5
-
रणजीत 65 10 4
-
ऋक्षक 64 7 4
-
सुखदेव 62 0 24
-
नरहरिदेव 51 10 2
-
सुचिरथ 42 11 2
-
सूरसेन द्वितीय 58 10 8
-
पर्वतसेन 55 8 10
-
मेधावी 52 10 10
-
सोनवीर 50 8 21
-
भीमदेव 47 9 20
-
नृहरिदेव 45 11 23
-
पूर्णमल 44 8 7
-
करदवी 44 10 8
-
अलमिक 50 11 8
-
उदयपाल 38 9 0
-
दुबनमल 40 10 26
-
रमात 32 0 0
-
भीमपाल 58 5 8
-
क्षेमक 48 11 21
राजा क्षेमक के प्रधान विश्रवा ने क्षेमक राजा को मारकर राज्य किया। पीढ़ी 14 वर्ष 500 मास 3 दिन 17, इनका विस्तार :-
- विश्रवा 17 3 29
-
पुरसेनी 42 8 21
-
वीरसेनी 52 10 7
-
अनंगशायी 47 8 23
-
हरिजित 35 9 17
-
परमसेनी 44 2 23
-
सुखपाताल 30 2 21
-
कद्रुत 42 9 24
-
सज्ज 32 2 14
-
अमरचूड़ 27 3 16
-
अमीपाल 22 11 25
-
दशरथ 25 4 12
-
वीरसाल 31 8 11
-
वीरसाल सेन 47 0 14
वीरसाल सेन को वीरमहा प्रधान ने मारकर राज्य किया। वंश 16 वर्ष 445 मास 9 दिन 3, इनका विस्तार :-
आर्य राजा वर्ष मास दिन
- राजा वीर महा 35 10 8
-
अजीत सिंह 27 7 19
-
सर्वदत्त 28 3 10
-
भुवनपति 15 4 10
-
वीरसेन 21 2 13
-
महीपाल 40 8 7
-
शत्रुपाल 26 4 3
-
संघराज 17 2 10
-
तेजपाल 28 11 10
-
माणिक चंद 37 7 21
-
कामसेनी 42 5 10
-
शत्रुमर्दन 8 11 13
-
जीवनलोक 28 9 17
-
हरिशव 26 10 29
-
वीरसेन (दूसरा) 35 2 20
-
आदित्यकेतु 23 11 13
राजा आदित्य केतु मगधदेश के राजा को धंधर नामक राजा प्रयाग के ने मारकर राज्य किया। वंश पीढ़ी 9 व 374 मास 11 दिन 26, इनका विस्तार :-
राजा वर्ष मास दिन
- राजा धंधर 42 7 24
-
महर्षि 41 2 29
-
सनरच्ची 50 10 19
-
महायुद्घ 30 3 8
-
दुरनाथ 28 5 25
-
जीवनराज 45 2 5
-
रूद्रसेन 47 4 28
-
आरीलक 52 10 8
-
राजपाल 36 0 0
राजा राजपाल को उसके सामंत महानपाल ने मारकर राज्य किया। पीढ़ी 1 वर्ष 14 मास 0 दिन 0 इनका विस्तार नही है।
राजा महानपाल के राज्य पर राजा विक्रमादित्य ने अवंतिका (उज्जैन) से लड़ाई करके राजा महानपाल को मारकर राज्य किया। पीढ़ी 1 वर्ष 93 मास 0 दिन 0 इनका विस्तार नही है।
राजा विक्रमादित्य को शालिवाहन का उमराव समुद्रपाल योगी पैठण के ने मारकर राज्य किया। पीढ़ी 16 वर्ष 372 मास 4 दिन 27, इनका विस्तार :-
आर्य राजा वर्ष मास दिन
- समुद्रपाल 54 2 20
-
चंद्रपाल 36 5 4
-
सहायपाल 11 4 11
-
देवपाल 27 1 28
-
नरसिंहपाल 18 0 20
-
सामपाल 27 1 17
-
रघुपाल 22 3 25
-
गोविन्दपाल 27 1 17
-
अमृतपाल 36 10 13
-
बलीपाल 12 5 27
-
महीपाल 13 8 4
-
हरीपाल 14 8 4
-
शीशपाल 11 10 13
-
मदनपाल 17 10 19
-
कर्मपाल 16 2 2
-
विक्रमपाल 24 11 13
शीशपाल को किसी इतिहास में भीमपाल भी लिखा है राजा विक्रमपाल ने पश्चिम दिशा का राजा (मलुखचंद बोहरा था) इन पर चढ़ाई करके मैदान में लड़ाई की। इस लड़ाई में मलुखचंद ने विक्रमपाल को मारकर इंद्रप्रस्थ पर राज्य किया। पीढ़ी 10 वर्ष 191 मास 1 दिन 16 इनका विस्तार :-
- मलुखचंद 54 2 10
-
विक्रमचंद 12 7 12
-
अमीनचंद 10 0 5
-
रामचंद्र 13 11 8
-
हरीचंद्र 14 9 24
-
कल्याणचंद 10 5 4
-
भीमचंद 16 2 9
-
लोवचंद 26 3 22
-
गोविंदचंद 31 7 12
-
रानी पदमावती 1 0 0
अमीनचंद को किसी इतिहास में माणिकचंद भी लिखा है। रानी पदमावती मर गयी। इसके पुत्र भी कोई नही था। इसलिए सब मृत्सद्दियों ने सलाह करके हरिप्रेम वैरागी को गद्दी पर बैठा के मुत्सद्दी राज्य करने लगे। पीढ़ी 4, वर्ष 50 मास 0 दिन 21 हरप्रेम का विस्तार :-
- हरिप्रेम 7 5 16
-
गोविन्द प्रेम 20 2 8
-
गोपालप्रेम 15 7 28
-
महाबाहु 6 8 29
राजा महाबाहु राज्य छोड़कर वन में तपश्चर्या करने गये। यह बंगाल के राजा आधीसेन ने सुन के इंद्रप्रस्थ में आके आप राज्य करने लगे। पीढ़ी 12, वर्ष 15, मास 11 दिन 2 इनका विस्तार :-
आर्य राजा वर्ष मास दिन
- राजा आधीसेन 18 5 21
-
विलावन सेन 12 4 2
-
केशव सेन 15 7 12
-
माधव सेन 12 4 2
-
मयूरसेन 20 11 27
-
भीमसेन 5 10 9
-
कल्याणसेन 4 8 21
-
हरीसेन 12 0 25
-
क्षेमसेन 8 11 15
-
नारायणसेन 2 2 29
-
लक्ष्मीसेन 26 10 0
-
दामोदरसेन 11 5 19
राजा दामोदर सेन ने अपने उमराव को बहुत दुखी किया। इसलिए राजा के उमराव दीपसिंह ने सेना मिलाके राजा के साथ लड़ाई की। उस लड़ाई में राजा को मार कर दीप सिंह आप राज्य करने लगे। पीढ़ी छह वर्ष 107 मास 6 दिन 22 इनका विस्तार :-
आर्य राजा वर्ष मास दिन
- दीपक सिंह 17 1 26
-
राज सिंह 14 5 0
-
रण सिंह 9 8 11
-
नर सिंह 45 0 15
-
हरिसिंह 13 2 29
-
जीवन सिंह 8 0 1
राजा जीवन सिंह ने कुछ कारण से अपनी सब सेना उत्तर दिशा को भेज दी। यह खबर पृथ्वीराज चव्हाण बैराट के राजा सुनकर जीवन सिंह के ऊपर चढ़ाई करके आये और लड़ाई में जीवन सिंह को मारकर इंद्रप्रस्थ का राज्य किया। पीढ़ी 5 वर्ष 86 मास 0 दिन 20 इनका विस्तार :-
आर्य राजा वर्ष मास दिन
- पृथ्वी सिंह 12 2 19
-
अभयपाल 14 5 17
-
दुर्जन पाल 11 4 14
-
उदय पाल 11 7 3
-
यशपाल 36 4 27
राजा यशपाल के ऊपर सुल्तान शाहबुद्दीन गौरी गढ़ गजनी से चढ़ाई करके आया और राजा यशपाल को प्रयाग के किले में संवत 1249 साल में पकड़कर कैद किया। पश्चात इंद्रप्रस्थ अर्थात दिल्ली का राज्य आप सुल्तान शाहबुद्दीन करने लगा। पीढ़ी 53 वर्ष 745 (कहीं 754 भी लिखा है) मास 1 दिन 17, इनका विस्तार बहुत इतिहास पुस्तकों में लिखा है, इसलिए यहां नही लिखा।
सत्यार्थ प्रकाश में दी आर्य राजाओं की इस वंशावली में कुछ दोष हैं। यथा-
काल गणना संबंधी दोष
(1) सम्वत 1249 से पूर्व 4157 वर्ष की कालगणना उक्त आर्य वंशावली में की गयी। इसका अभिप्राय ये हुआ कि युधिष्ठर की राजतिलक या राज्यारोहण की तिथि विक्रमी संवत 1249 से (सन 1192 ई.) से 4157 वर्ष पूर्व की है। इस प्रकार 4157-1192=2964 ई. पूर्व युधिष्ठर का राज्यारोहण हुआ। जबकि नवीन अनुसंधानों से यह तिथि ईसा से 3100 वर्ष से भी अधिक पूर्व की है। मैगास्थनीज ने हिरैक्लीज (हरकुलस के नाम से यूरोप में प्रसिद्घ एक महामानव अर्थात श्रीकृष्ण) का काल निर्धारण जिस प्रकार किया है, उससे भी यह अवधि लगभग 3100 ई. पू. ही जाती है। सत्यव्रत सिद्घान्तालंकार जी ने अपने गीता भाष्य में इसी अवधि को अर्थात ई. पू. 3072 (वर्ष 1965 में) उचित बताया था। जबकि स्वामी जगदीश्वरानंद कृत महाभारत के भाष्य में कहा है कि भारत के समस्त ज्योतिषियों के अनुसार कलियुग का प्रारंभ ईसवी सन से 3101 वर्ष पूर्व हुआ था। अत: महाभारत का युद्घ 3101+1983 (उक्त भाष्य इसी सन में लिखा था इसलिए ये वर्ष लिखा है) 5084 वर्ष पूर्व हुआ था।
आर्यभट्टï ने भी लगभग इतने वर्ष पूर्व ही महाभारत का काल निर्धारण किया है।
जबकि नारायण शास्त्री की पुस्तक ‘द एज ऑफ शंकर‘ के अनुसार भीष्म की मृत्यु माघ मास, उत्तरायण सूर्य, शुक्ल पक्ष, अष्टïमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुई थी। यह समय ईसा से 3139 वर्ष पूर्व का है, अत: आज (1983) से महाभारत का युद्घ 3139+1983=5122 वर्ष पूर्व का है। जो अब 2013 + 3139=5152 वर्ष हो गये हैं।
इस प्रकार उपरोक्त आर्य राजाओं की वंशावली में लगभग पौने दो सौ वर्ष का अंतर आता है। तराइन का युद्घ 1192ई. में हुआ था। विक्रम संवत 1249 में से 57 घटाएंगे तो सन 1192 ई. ही आता है और उस समय दिल्ली पर पृथ्वीराज चौहान का ही राज्य था।
दूसरा दोष: आर्य वंशावली के अंत में कहा गया है कि विक्रमी संवत 1249 से आगे 754 वर्ष तक शाहबुद्दीन गौरी की 53 पीढ़ियों ने इंद्रप्रस्थ पर शासन किया। इस पर भी विचार करें।
विक्रमी संवत 1249 में 754 जोड़ दें तो 2003 विक्रमी संवत आता है। इसका अभिप्राय हुआ कि यदि वि.सं. 2003 में से 57 घटाएं तो 1946 ई. आता है। स्पष्टï है कि विक्रमी संवत 1939 सन 1882 में लिखे गये ‘सत्यार्थ प्रकाश‘ में 1946 ई. तक की पीढ़ियों का वर्णन नही हो सकता। विक्रमी संवत 1782 में महर्षि ने उक्त आर्य वंशावली लिखी होनी बतायी है, तो फिर 754 वर्ष 1249 वि.सं. में क्यों जोड़े जा रहे हैं? सत्यार्थ प्रकाश में यह त्रुटि निश्चय ही बाद में कहीं से आयी है, जिस पर ध्यान नही दिया गया है।
तीसरा दोष: इंद्रप्रस्थ पर शहाुबुद्दीन गौरी की पीढ़ियों ने कभी राज्य नही किया। हां, उसके एक गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारत में गुलामवंश की स्थापना अवश्य की और यह गुलाम वंश की सल्तनत काल में अधिक समय तक नही चला।
सल्तनत काल और मुगल काल इन दो भागों में मुस्लिम इतिहास को पढ़ा जाता है, और इन दोनों कालों में विभिन्न राजवंशों ने इंद्रप्रस्थ पर शासन किया। उनमें से कोई भी शहाबुद्दीन गौरी का वंशज नही था। इसके अतिरिक्त विभिन्न अनुसंधानों से अब यह प्रमाणित हो चुका है कि शहाबुद्दीन गौरी का युद्घ पृथ्वीराज चौहान से ही हुआ था। यशपाल नामक दिल्ली नरेश से उसका कोई युद्घ नही हुआ।
चौथा दोष: इस राजवंशावली के अवलोकन से स्पष्टï है कि इसमें केवल इंद्रप्रस्थ के राजाओं का ही उल्लेख है। जबकि भारत में महाभारत के पश्चात मगध के प्रतापी शासकों की राजधानी इंद्रप्रस्थ से अलग पाटलिपुत्र थी। यहां इंद्रप्रस्थ से अलग भी देश के प्रतापी शासकों ने राज्य किया है। इंद्रप्रस्थ के शक्तिहीन राजाओं को भारत का सम्राट मानना वैसी ही भूल हो जाएगी जैसी हम 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद के मुगल शासकों को भारत का सम्राट मानने के विषय में करते आये हैं।
आर्य राजाओं को इंद्रप्रस्थ से अलग भी खोजना होगा।
राजपूताने के विभिन्न शासक और उससे पूर्व उत्तर दक्षिण व पूरब पश्चिम के विभिन्न राजवंशों की महकती राजधानियों ने भी इस देश को कई बार गौरवान्वित किया है। उन्हें इंद्रप्रस्थ से अन्य स्थान का होने के कारण आप इतिहास से उपेक्षित नही कर सकते। इस वंशावली में मौर्यवंश, गुप्तवंश, वर्धन वंश, प्रतिहार (गुर्जर) वंश, चालुक्य वंश, राष्टï्रकुल वंश आदि कितने ही प्रतापी शासकों और वंशों का कहीं उल्लेख नही है। स्पष्टï है कि अनुसंधान की आवश्यकता शेष है।
महर्षि का मंतव्य भी यही था
महर्षि दयानंद जी महाराज को उक्त आर्य राज वंशावली ‘हरीशचंद्र चन्द्रिका और ‘मोहन चंद्रिका‘ नामक पाक्षिक पत्र श्रीनाथ द्वारे (मेवाड़) से मिली थी। महर्षि उक्त वंशावली के लेखक के प्रयास से प्रसन्न हुए थे इसलिए उन्होंने ऐसे अनुसंधान की आवश्यकता पर बल देते हुए देश के आर्य विद्वानों को प्रेरित किया था कि इस दिशा में और भी अधिक कार्य किया जाना चाहिए। महर्षि ने उक्त वंशावली को प्रामाणिक नही माना, अपितु उसे प्रसन्नता दायिनी माना और हमें निर्देशित किया कि इस कार्य को आगे बढ़ाना। पं. भगवत दत्त जी और गुरूदत्त जी जैसे कई आर्य विद्वानों ने इस कार्य को निस्संदेह आगे बढ़ाया भी है, परंतु फिर भी अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है।
बात स्पष्टï है कि हमें इतिहास से स्मारकों को केवल और केवल इंद्रप्रस्थ में ही नही समेटना है अपितु इन्हें विस्तार देना है और अपना रूख पाटलिपुत्र, कन्नौज, उज्जैन, चित्तौड़, पुरूषपुर (पेशावर) कामरूप, कपिलवस्तु, विराट नगरी, अयोध्या, हस्तिनापुर, कश्मीर, काठमाण्डू, रंगून, भूटान, सिक्किम आदि की ओर भी करना है। क्योंकि भारतीयता तभी गौरवान्वित और महिमामण्डित होगी जब उसमें समग्रता आ जाएगी।
भारत को महाभारत बना कर देखो
भारत की खोज आज के भारत के मानचित्र से संभव नही है। भारत की खोज होगी भारत को वृहत्तर (महाभारत) बनाने से। तब हमें और आप को भारत को पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान-ईराक, चीन, महाचीन, बर्मा, श्रीलंका, तिब्बत, मालद्वीप, नेपाल इत्यादि में भी खोजना होगा। यह खोज जितनी ही अधिक व्यापक और गहन होती जाएगी उतना ही वास्तविक भारत हमारे सामने आता जाएगा। सचमुच वही भारत सनातन धर्म का ध्वजवाहक भारत होगा। उसी भारत का इतिहास लिखने पढ़ने की आवश्यकता है। तब हमें ज्ञात होगा कि इतिहास मरे गिरों का एक लेखा जोखा मात्र नही है, अपितु अपने अतीत के गौरवशाली कृत्यों का उत्सव है।
जिसका संगीत वर्तमान को झूमने और भविष्य को आकाश की ऊंचाईयों को चूमने के लिए प्रेरित करता है जो जातियां अपने अतीत पर उत्सव नही मनाती या उत्सव मनाते हुए शर्माती हैं, वो संसार से मिट जाती हैं। इसलिए उत्सव मनाने के लिए अपने अतीत के प्रति उत्साहित होना नितांत आवश्यक है। अत: उधारी मनीषा के मृगजाल से बाहर निकलने की आवश्यकता है।
सत्यार्थ प्रकाश में महर्षि ने उक्त राजवंशावली को इसी उद्देश्य से दिया था, जिसके उक्त दोषों को आर्य विद्वान ठीक करें और प्रत्येक देशवासी अपने अतीत के गौरवशाली कृत्यों के उत्सव की तैयारियों के लिए इतिहास के अछूते शिलालेखों को उद्घाटित करने के लिए कटिबद्घ हो जाएं।
क्रमश:
डॉ राकेश कुमार आर्य