जीवन का अर्थ होता है, *”जीने का समय.”

     जीवन का अर्थ होता है, *"जीने का समय."* जब कहते हैं, कि *"प्रत्येक व्यक्ति का जीवन बहुत मूल्यवान है।"* तो इसका अर्थ होता है, कि *"उसके पास जो एक दिन में 24 घंटे हैं, वे बहुत कीमती हैं। उन 24 घंटे में उसे नए पुण्य कर्म भी कमाने हैं, और पिछले कर्मों का फल भी भोगना है। इसलिए इस समय को व्यर्थ के कार्यों में नष्ट नहीं करना चाहिए। क्योंकि संसार में जीवन अर्थात समय ही सबसे अधिक मूल्यवान है।"*
      प्रतिदिन वह व्यक्ति 24 घंटा जी रहा है, अर्थात वह पिछले कर्मों का फल भोग रहा है। *"यदि आज के दिन में उसने और बहुत से नए पुण्य कर्म नहीं कमाए, तो भविष्य में उसे अच्छा फल अर्थात मनुष्य जन्म कैसे मिलेगा? नहीं मिल पाएगा। तब यह माना जाएगा, कि वह व्यक्ति अपने जीवन में घाटे में रहा।"*
    जैसे एक व्यापारी अपने व्यापार में कुछ संपत्ति निवेश करता है। *"जितनी संपत्ति का वह निवेश करता है, यदि उससे अधिक धन वह कमाता है, तब तो 'उसे व्यापार में कुछ लाभ हुआ,' ऐसा माना जाता है। यदि निवेश से अधिक धन नहीं कमाता, और निवेशित मूलधन भी कम होता जाता है, तो 'वह घाटे में गया,' ऐसा सिद्ध होता है।"*
       *"इसी प्रकार से प्रतिदिन आप जितना मूल्यवान समय खर्च करते हैं, यदि आप उससे कुछ अधिक मूल्य का पुण्य कमाएं, तब तो 'आपको लाभ हुआ,' ऐसा माना जाएगा।"* तब आपका भविष्य सुखदायक बनेगा। *"यदि आपने एक दिन में इतना पुण्य नहीं कमाया, कि आगे मनुष्य जन्म फिर से प्राप्त हो जाए, तो इसका अर्थ होगा, कि 'आप घाटे में चल रहे हैं।"*
      अतः अपने जीवन का हिसाब किताब गंभीरता से करें। *"अपने मूल्यवान समय को पुण्य कर्मों में खर्च करें, अच्छे बुद्धिमान लोगों के लिए खर्च करें, ताकि आपको अगला जन्म अच्छे विद्वान बुद्धिमान धनवान परिवार में मिले और आपका भविष्य सुखदायक बने।"*
          कहने का भाव यह है, कि *"अपने मूल्यवान समय को धार्मिक सदाचारी परोपकारी इत्यादि स्वभाव वाले अच्छे लोगों के लिए खर्च करें, और सेवा परोपकार दान दया यज्ञ संध्या स्वाध्याय सत्संग आदि अच्छे कामों में खर्च करें, तभी आपका भविष्य उत्तम बनेगा। अन्यथा आगे भविष्य में आपको मनुष्य जन्म मिलना भी कठिन हो जाएगा।"*

—- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक – दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात.”

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