यदि आप अपने विनाश से बचना चाहते हैं, तो आपको अभिमान और भ्रांतियों से बचना होगा।
यदि आप अपने विनाश से बचना चाहते हैं, तो आपको अभिमान और भ्रांतियों से बचना होगा।
क्योंकि जब किसी व्यक्ति को अभिमान हो जाता है, तो वह उसे झुकने नहीं देता। *"अभिमान के कारण उसकी विनम्रता खो जाती है, और उसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है। और जब किसी की बुद्धि नष्ट हो जाती है, तो उस स्थिति में वह, जो भी मन में आए, वही उल्टे सीधे काम करने लगता है। और तभी उस का विनाश होता है।"*
दूसरी बात -- अनेक बार व्यक्ति भ्रांति में होता है। और जब वह भ्रांति में होता है, तब भी प्रायः उसकी बुद्धि काम नहीं करती। *"भ्रांति की स्थिति में वह सत्य को सुनने को ही तैयार नहीं होता। जब कोई व्यक्ति किसी सत्य को सुनना ही नहीं चाहता, तो वह समझेगा क्या?" "भ्रांति की स्थिति में बुद्धि काम न करने के कारण भी, वह व्यक्ति उल्टे सीधे काम करता है। इससे भी उस का विनाश होता है।"*
*"आपके पास धन बल विद्या बुद्धि शरीर मन इंद्रियां इत्यादि जो कुछ भी संपत्तियां हैं, वे सब ईश्वर की दी हुई हैं, आपकी नहीं हैं।"* न आपने वे सब संपत्तियां उत्पन्न की हैं, और न ही आप उनकी सुरक्षा कर सकते हैं। *"जब आपने वे सब संपत्तियां उत्पन्न भी नहीं की, और आप उनकी सुरक्षा भी नहीं कर सकते, तो फिर आप को अभिमान किस बात का? ऐसा सोचने से आप अभिमान से बच जाएंगे।"*
और जब कोई दूसरा बुद्धिमान अनुभवी व्यक्ति आपको कहे, कि *"इस समय आप भ्रांति में हैं। तब आप उसकी बात को इतना हल्का न समझें। उसकी बात को ध्यान से सुनें। उस पर निष्पक्ष भाव से विचार करें।"*
ऐसा करने पर कुछ समय बाद आपको वह सत्य बात समझ में आ सकती है, और हो सकता है, कि तब आप ऐसा अनुभव भी करें, कि *"ओहो मैं तो अब तक भ्रांति में ही था। सही बात तो मुझे अब समझ में आई है।"*
यदि आप इतना कर लेंगे, तो धीरे-धीरे आपका अभिमान और भ्रांतियां दूर हो जाएंगी। इसका परिणाम यह होगा, कि *"आप नष्ट होने से बच जाएंगे।"*
*"यदि आपने इतना परिश्रम नहीं किया, इतना धैर्य नहीं रखा, तो फिर आपका विनाश होना निश्चित है। फिर आपको कोई भी विनाश से बचा नहीं सकेगा।"*
*"इसलिए अभिमान और भ्रांति इन दोनों स्थितियों से बचें, और अपने मूल्यवान जीवन की रक्षा करें।"*
—– “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।”