लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती पर उन्हें याद करें। :-
9 जून 1964 को भारत के लाल जिन्हें गुदड़ी का लाल भी कहा जाता है ऐसे स्व. लाल बहादुर शास्त्री ने भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी
वर्ष 1964 में आज ही के दिन भारत रत्न श्री लालबहादुर शास्त्री जी भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने। देश में दूध व कृषि उत्पादन क्षेत्र आत्मनिर्भरता का मार्ग उन्होंने ही प्रशस्त किया। वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध में जीत उनके ही दृढ़निश्चयी व करिश्माई नेतृत्व का परिणाम है।
कोटि कोटि नमन 🙏🙏
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ये वही शास्त्री जी है जिन्होंने अपने प्रधानमंत्री रहते समय लाहौर पे ऐसा कब्ज़ा जमाया था की पुरे विश्व ने जोर लगा लिया लेकिन लाहौर देने से इनकार कर दिया था | आख़िरकार उनकी एक बड़ी साजिस के तहत हत्या कर दी गयी जिसका आज तक पता नहीं लगाया जा सका है |
- जब इंदिरा शास्त्री जी के घर (प्रधान मंत्री आवास ) पर पहुची तो कहा कि यह तो चपरासी का घर लग रहा है, इतनी सादगी थी हमारे शास्त्रीजी में।
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जब 1965 मे पाकिस्तान से युद्ध हुआ था तो शासत्री जी ने भारतीय सेना का मनोबल इतना बड़ा दिया था की भारत सेना पाकिस्तानी सेना को गाजर मूली की तरह काटती चली गयी थी और पाकिस्तान का बहुत बड़ा हिस्सा जीत लिया था ।
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जब भारत पाकिस्तान का युद्ध चल रहा तो अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाने के लिए कहा था की भारत युद्ध खत्म कर दे नहीं तो अमेरिका भारत को खाने के लिए गेहू देना बंद कर देगा तो इसके जवाब मे शास्त्री जी ने कहा की हम स्वाभिमान से भूखे रहना पसंद करेंगे,,,,, किसी के सामने भीख मांगने की जगह।और शास्त्री जी देशवासियों से निवेदन किया की जब तक अनाज की व्यवस्था नहीं हो जाती तब तक सब लोग सोमवार का व्रत रखना चालू कर दे और खाना कम खाया करे ।
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जब शास्त्री जी ताशकंद समझोते के लिए जा रहे थे तो उनकी पत्नी के कहा की अब तो इस पुरानी फटी धोती की जगह नई धोती खरीद लीजिये तो शास्त्री जी ने कहा इस देश मे अभी भी ऐसे बहुत से किसान है जो फटी हुई धोती पहनते है इसलिए मै अच्छे कपडे कैसे पहन सकता हु क्योकि मै उन गरीबो का ही नेता हूँ अमीरों का नहीं और फिर शास्त्री जी उनकी फटी पुरानी हाथ से सिलकर ताशकंद समझोते के लिए गए ।
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जब पाकिस्तान से युद्ध चल रहा था तो शास्त्री जी ने देशवासियों से कहा की युद्ध मे बहुत रूपये खर्च हो सकते है इसलिए सभी लोग अपने फालतू के खर्च कम कर दे और जितना हो सके सेना को धन राशि देकर सहयोग करें । और खर्च कम करने वाली बात शास्त्री जी ने उनके खुद के दैनिक जीवन मे भी उतारी । उन्होने उनके घर के सारे काम करने वाले नौकरो को हटा दिया था और वो खुद ही उनके कपड़े धोते थे, और खुद ही उनके घर की साफ सफाई और झाड़ू पोंछा करते थे ।
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शास्त्री जी दिखने मे जरूर छोटे थे पर वो सच मे बहुत बहादुर और स्वाभिमानी थे ।
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जब शास्त्री जी की मृत्यु हुई तो कुछ नीच लोगों ने उन पर इल्ज़ाम लगाया की शास्त्री जी भ्रस्ट है ,,, पर जांच होने के बाद पता चला की शास्त्री जी के बैंक के खाते मे मात्र 365/- रूपये थे । इससे पता चलता है की शास्त्री जी कितने ईमानदार थे ।
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शास्त्री जी अभी तक के एक मात्र ऐसे प्रधान मंत्री रहे हैं जिनहोने देश के बजट मे से 25 प्रतिशत सेना के ऊपर खर्च करने का फैसला लिया था । शास्त्री जी हमेशा कहते
थे की देश का जवान और देश का किसान देश के सबसे महत्वपूर्ण इंसान हैं इसलिए इन्हे कोई भी तकलीफ नहीं होना चाहिए और फिर शास्त्री जी ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया ।
9.जब शास्त्री जी ताशकंद गए थे तो उन्हे जहर देकर मार दिया गया था और देश मे झूठी खबर फैला दी गयी थी की शास्त्री जी की दिल का दौरा पड़ने से हुई । और सरकार ने इस बात पर आज तक पर्दा डाल रखा है ।
10 शास्त्री जी जातिवाद के खिलाफ थे इसलिए उन्होने उनके नाम के आगे श्रीवास्तव लिखना बंद कर दिया था ।
शास्त्री जी जब रेलमंत्री थे उस वक्त उन्होंने माँ को नहीं बताया था कि वो रेलमंत्री हैं, बल्कि ये बताया कि वे रेलवे में नौकर हैं। इसी दौरान मुगलसराय में एक रेलवे का कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमें शास्त्री जी को ढूंढते-ढूंढते उनकी मां पहुंच गईं ।
उन्होंने (मां) वहां मौजूद लोगों से पूछा कि वहां मेरा बेटा भी आया है, वो भी रेलवे में है !!
लोगों ने जब पूछा क्या नाम है आपके बेटे का, तो उन्होंने जब नाम बताया तो सब चौंक गए और बोले, ”ये झूठ बोल रही है।”
पर शास्त्री जी की मां बोलीं, ”नहीं वो आए हैं।”
लोगो ने उन्हें लाल बहादुर शास्त्री के सामने ले जाकर पूछा, ”क्या वही हैं ?”
तो माँ बोलीं, ”हां, वो मेरा बेटा है।”
लोग, मंत्री जी से दिखा कर बोले, ”वो आपकी माँ है।”
तो उन्होंने अपनी माँ को बुला कर पास बैठाया और कुछ देर बाद घर भेज दिया।
इसके बाद वहां मौजूद पत्रकारों ने जब शास्त्री जी से पूछा, ”आप ने, उनके सामने भाषण क्यों नहीं दिया।”
तब शास्त्री जी ने जो जवाब दिए उसे सुनकर वहां सभी चौंक उठे और सन्न रहे गए ।
शास्त्री जी ने कहा, ”मेरी माँ को नहीं पता कि मैं मंत्री हूँ। अगर उन्हें पता चल जाय तो लोगों की सिफारिश करने लगेगी और मैं मना भी नहीं कर पाउंगा और उन्हें अहंकार भी हो जाएगा।”
ऐसा ही एक और किस्सा आपको बताते हैं, आजादी के बाद जब कांग्रेस को देश की सत्ता की बागडोर मिली उस वक्त तक पार्टी शास्त्री जी के महत्व को समझ चुकी थी । शास्त्री जी की राजनीतिक छवि की बात करें तो वे स्वभाव से विनम्र और व्यक्तित्व के काफी इमानदार व्यक्ति थे । अगर उनके इस व्यक्तित्व के लिए एक उदाहरण दें तो आपको बता दें 1951 में उन्होंने देश के रेलमंत्री का कार्यभार संभाला । उसी दौरान एक रेल दुर्घटना ऐसी सामने आई जिसमें कई लोगों की मौत भी हुई ।
इस घटना के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए शास्त्री जी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया । तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू द्वारा इस्तीफा मंजूर न करने पर उन्होंने कहा, “शायद मेरे लंबाई में छोटे होने एवं नम्र होने के कारण लोगों को लगता है कि मैं बहुत दृढ नहीं हो पा रहा हूँ। यद्यपि शारीरिक रूप से मैं मजबूत नहीं हूं लेकिन मुझे लगता है कि मैं आंतरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूँ।”
हम धन्य हैं की हमारी भूमि पर ऐसे स्वाभिमानी और देश भक्त इंसान ने जन्म लिया । यह बहुत गौरव की बात है की हमे शास्त्री जी जैसे प्रधान मंत्री मिले ।
“जय जवान, जय किसान”