ते जज्ञिरे दिव ऋष्वास उक्षणो रुद्रस्य मर्या असुरा अरेपसः।
पावकासः शुचयः सूर्या इव सत्वानो न द्रप्सिनो घोरवर्पसः ।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.64.2 (कुल मन्त्र 734)
(ते) वे (नोधाः) (जज्ञिरे) पैदा हुए और विकसित हुए (दिवः) दिव्य प्रकाशित (ऋष्वासः) देखने योग्य तथा ज्ञान प्राप्त करने योग्य जीवन (उक्षणः) सभी को प्रसन्नता देने वाला (रुद्रस्य मर्याः) रूद्र का श्वास (असुराः) प्राणों की ब्रह्माण्डीय ऊर्जा (अरेपसः) पापों, दुर्गुणों और गल्तियों से दूर (पावकासः) सभी व्यक्तियों और स्थानों को पवित्र करने वाला (शुचयः) कमाई में पवित्र (सूर्या इव) सूर्य की तरह, सबको प्रकाश देने वाला (सत्वानः) ओज और सत्त्व का धनी (न द्रप्सिनः) मोह बन्धन से मुक्त (घोर वर्पसः) उच्च तेजस्विता वाला।
व्याख्या:-
नोधाः के क्या लक्षण हैं? (1)
अन्तिम मंत्र ऋग्वेद 1.64.1 के अनुसार नोधाः वह व्यक्ति होता है दिव्य वाणियों को धारण करता है और ब्रह्माण्ड के दिव्य यज्ञ में भाग लेता है।
ऐसे लोग निम्न लक्षणों के साथ ही पैदा होते हैं और विकसित होते हैं:-
1. दिवः – दिव्य प्रकाशित
2. ऋष्वासः – देखने योग्य तथा ज्ञान प्राप्त करने योग्य जीवन
3. उक्षणः – सभी को प्रसन्नता देने वाला
4. रुद्रस्य मर्याः – रूद्र का श्वास
5. असुराः – प्राणों की ब्रह्माण्डीय ऊर्जा
6. अरेपसः – पापों, दुर्गुणों और गल्तियों से दूर
7. पावकासः – सभी व्यक्तियों और स्थानों को पवित्र करने वाला
8. शुचयः – कमाई में पवित्र
9. सूर्या इव – सूर्य की तरह, सबको प्रकाश देने वाला
10. सत्वानः – ओज और सत्त्व का धनी
11. न द्रप्सिनः – मोह बन्धन से मुक्त
12. घोर वर्पसः – उच्च तेजस्विता वाला
ऋग्वेद 1.64.3 में जारी
जीवन में सार्थकता: –
यह लक्षण कैसे अर्जित किये जाते है?
वास्तव में यह सभी लक्षण नोधाः होने के परिणाम हैं। इनका पीछा नहीं किया जा सकता। भगवान स्वयं इनका विकास करते है, दिव्य फल की तरह और दिव्य अनुग्रह की तरह। एक नोधाः को यह लक्षण जन्म से भी मिले होते हैं।
अज्ञानता, कठिनाईयों और उथल-पुथल से भरे हुए अन्धकारमय युग में ऐसे लोग आशा की एक किरण दिखा सकते हैं। अतः या तो स्वयं नोधाः बनो या किसी नोधाः का अनुसरण करो।
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