जहाँ 80% मुस्लिम, वहाँ जीता मामन खान जिसका हिंदू विरोधी दंगों में नाम

, BJP के मुस्लिम नहीं कबूल: फिर बेशर्मी से कहते है कि BJP किसी मुस्लिम को मंत्री नहीं बनाती

                       मामन खान (हाथ में टोपी लिए) (चित्र साभार: Mammankhanmla/ig)

भारत में हर तीन-चार महीने पर एक-दो चुनाव आते रहते हैं। हर चुनाव के साथ देश की वोटबैंक राजनीति और उससे जुड़े मुद्दे भी उठते हैं। प्रत्येक चुनाव में जब भाजपा अपने उम्मीदवार घोषित करती है तो लिस्ट में मुस्लिम नाम ढूँढने वाले हमेशा शोर मचाते हैं। उनका आरोप रहता है कि भाजपा की राजनीति में मुस्लिमों के लिए कोई जगह नहीं है और वह मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट नहीं देती। यह आरोप गुजरात चुनाव से लेकर उत्तर प्रदेश और हालिया लोकसभा चुनावों तक लगता आया है।
भाजपा पर यह आरोप लगाने 2024 के हरियाणा और जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में निरुत्तर हो गए। भाजपा ने इन चुनावों में कुल 28 मुस्लिमों को टिकट दिया। 2 मुस्लिमों को हरियाणा में जबकि 26 मुस्लिम उम्मीदवारों को भाजपा ने जम्मू कश्मीर में उतारा। भाजपा ने हरियाणा के नूंह जिले की 3 में से 2 सीटों में पर मुस्लिम उम्मीदवार दिए। उसने फिरोजपुर झिरका से नसीम अहमद जबकि पुन्हाना से एजाज खान को उतारा था।

चुनाव नतीजों में इनमें से एक भी मुस्लिम उम्मीदवार जीतने में सफल नहीं रहा है। जम्मू कश्मीर में भी भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवारों को सफलता नहीं हासिल हुई। हरियाणा में भी उसके दोनों उम्मीदवार हार गए। हरियाणा में उन सीटों पर भी भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवार हारे जहाँ लगभग 80% जनसंख्या मुस्लिम है। फिरोजपुर झिरका में मुस्लिम आबादी ने भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवार नसीम अहमद को ना चुन कर कॉन्ग्रेस के मामन खान को चुना।

कॉन्ग्रेस के मामन खान ने हरियाणा के अंदर सबसे बड़ी जीत दर्ज की है। वह 98000 वोटों के अंतर से जीते हैं। गौरतलब है कि यह वही मामन खान हैं जो नूंह दंगों में आरोपित हैं और इस मामले में जेल तक जा चुका है। मामन खान को इन नूंह दंगों, जिनमें एक युवक की मौत हुई थी, उनका सरगना बताया गया था। मामन खान पर मात्र दंगा भड़काने ही नहीं बल्कि धमकी देने का भी आरोप है। हाल ही में उन्होंने कहा था कि कॉन्ग्रेस सरकार बनेगी तो अन्याय करने वालों मेवात छोड़ना पड़ेगा।

मामन खान को जिताना और वह भी हरियाणा में सबसे बड़े अंतर से जिताना दिखाता है कि मुस्लिम जनसंख्या को भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवार पसंद नहीं है। इसका अर्थ है कि यदि उनके सामने भाजपा मुस्लिम उम्मीदवार देती भी है तो उसे मुस्लिम वोट नहीं देंगे। उनका वोट ऐसे व्यक्ति को जाने की संभावना अधिक दिखाई पड़ती है जो दंगे में आरोपित है और विकास-इन्फ्रा जैसी बातों से कोसों दूर है। मामन खान की जीत यह भी दर्शाती है कि मुस्लिम वोट उसे पसंद करता है जो भाजपा को हराता हो, भले ही वह दंगा आरोपित क्यों ना हो।

मामन खान और आफताब खान जैसे उम्मीदवारों की जीत में बड़े अंतर यह भी दिखाते हैं कि मुस्लिम आबादी का ध्यान विकास की तरफ कम और खुद को वोटबैंक बना कर राजनीति की तरफ अधिक है। मेवात देश के सबसे अधिक पिछड़े, गरीब और अपराध ग्रसित इलाकों में से एक है।

राजधानी दिल्ली से मात्र 100 किलोमीटर के दायरे में होने के बावजूद हाल तक यहाँ मूलभूत सुविधाएँ नहीं पहुँची थी। यहाँ महिलाओं की स्थिति भी चिंताजनक है। यही पर बीत वर्ष नल्हड़ महादेव में जल चढ़ाने गए हिन्दुओं पर कट्टरपंथी भीड़ ने हमला किया था। लेकिन इन सब मुद्दों को सुलझाने का वादा करने के बजाय मामन जैसे लोगों को चुना जाता है।

ऐसे में मुस्लिमों को खुद इस यह सोचना होगा कि कब तक केवल भाजपा को हराने के नाम पर ही वोट करते रहेंगे भले ही उनके पास अपने ही समुदाय का उम्मीदवार हो। उन्हें यह भी सोचना होगा कि मात्र भाजपा का हौव्वा दिखा कर उनसे वोट लेने वाली पार्टियाँ उनका विकास कब करेंगी। भाजपा पर यह आरोप लगाने वाले मुस्लिम समाज को यह समझना होगा कि सबका साथ और सबका विश्वास का नारा तभी आगे बढेगा जब मुस्लिम उसमें शामिल हो जाएँ।

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