● एक ब्रह्मास्त्र थे, जिन्हें कोई भी पंडित, पादरी, मौलवी, अघोरी, ओझा, तान्त्रिक हरा नहीं पाया और न ही उन पर अपना कोई मंत्र, तंत्र या किसी भी प्रकार का कोई प्रभाव छोड़ पाया ।
● वेद के ज्ञाता थे, जिसने सम्पूर्ण भारत वर्ष में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में वेद का डंका बजाया था ।
● ईश्वर भक्त थे, जिसने ईश्वर को प्राप्त करने के लिए अपना घर ही त्याग दिया था ।
● महान व्यक्ति थे, जिसने लाखों की संपत्ति को ठोकर मार दी परन्तु सत्य की राह से विचलित नहीं हुए ।
● दानी थे, जिसने गुरु दक्षिणा में अपना सम्पूर्ण जीवन ही दान दे दिया ।
● क्रान्तिकारी थे, जिसने सबसे पहले स्वाधीनता का बिगुल फूँक न जाने कितने लोगों के अन्दर क्रान्ति की भावना को पोषित कर दिया |
● स्वदेशभक्त थे, जिसने सबसे पहले स्वदेशीय राज्य को सर्वोपरि कहा और अंग्रेजों के सामने ही उनका राज्य समस्त विश्व से नष्ट होने की बात कही ।
● गौरक्षक व गौ प्रेमी थे, जिसने सबसे पहले गौ रक्षा हेतु “गोकरुणानिधि” जैसे पुस्तक लिखा, और गौरक्षिणी सभा बनाई व इसके नियमों का प्रतिपादन किया ।
● निडर व्यक्ति थे, जिसने निर्भीक होकर समाज की कुप्रथाओं, कुरीतियों पर प्रहार किया ।
● सत्याग्रही थे, जिसने कभी भी सत्य से समझौता नहीं किया ।
● धर्म धुरन्धर थे, जो केवल वेद का ही नहीं अपितु कुरान, पुराण, बाइबल, त्रिपिटक व अन्य सम्प्रदायों व मत-मतान्तरों के ग्रन्थों का ज्ञान रखता था ।
● सत्य का पुजारी थे, जो अपनी हर बात डंके की चोट पर कहता था ।
● धर्म धुरन्धर थे, जिसने सभी पाखण्डों का खण्डन कर सत्य की राह दिखाई ।
● धर्म धुरन्धर थे, जिसने इस देश का धर्मान्तरण (ईसाइयत व इस्लामीकरण) होने से मात्र रोका ही नहीं वरन् शुद्धि व घर वापसी द्वारा देश का उद्धार किया ।
● सत्याग्रही थे, जिसे किसी प्रकार के लोभ व लालच विचलित नहीं कर पाये ।
● सन्यासी थे, जो पत्थरों, जूतों की मार से विचलित न हुआ वरन उसके संकल्प और भी मजबूत हुए ।
● ऋषि थे, जिसने यज्ञ, योग व पुरातन ऋषि महर्षियों के ज्ञान को पुनः स्थापित कराया ।
● ज्ञानी थे, जिसने ऋषिकृत पाणिनि, जैमिनी, ब्रह्मा, चरक , सुश्रुत आदि ग्रन्थों का उद्धार किया ।
● ऋषि थे, जिसने ऋषियों के नाम से बनाये गये सभी असत्य ग्रन्थों का भण्डा फोड़ा व हमारे ऋषियों के नाम पर लगे दाग को मिटाया ।
● समाज सुधारक थे, जिसने सबसे पहले सती प्रथा, बाल-विवाह जैसीे कुप्रथाओं पर प्रहार कर समस्त भारत में नारी की प्रतिष्ठा को समाज में पुनः स्थापित कराया ।
● समाज सुधारक थे, जिसने माँसाहार व शाकाहार में भेद स्पष्ट कर समाज को पुनः शाकाहार के रास्ते पर चलाया ।
● साहसी थे, जिसका साहस अपमान, तिरस्कार से कम नहीं हुआ बल्कि और भी दृढ़ हुआ ।
● समाज सुधारक थे, जिसने मात्र भारत के लिए ही नहीं अपितु सारे विश्व के कल्याण की भावना से निस्वार्थ काम किया ।
ऐसे महान व्यक्तित्व के धनी महर्षि दयानन्द सरस्वती को शत-शत नमन !
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