*जीवन के संदेश वाहकों को समझने के लिए मिला नोबेल पुरस्कार*।

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लेखक आर्य सागर खारी 🖋️

वर्ष 2024 के मेडिसिन / फिजियोलॉजी के क्षेत्र में आज नोबेल पुरस्कार की घोषणा हो गई है। विज्ञान जगत के लिए यह एक सुखद खबर है लेकिन भारत के लिए यह निराश करने वाली खबर प्रत्येक वर्ष की भांति इस बार भी किसी भारतीय को जीव विज्ञान का नोबेल पुरस्कार नहीं मिला है पुरस्कार मिलेगा भी क्यों भारत के प्रोफेसर तेरी जाति- मेरी जाति के खेल में जो उलझे हुए हैं। कभी जीवन के रहस्य को सुलझाने वाली ज्ञान प्रसूता भारत भूमि आज बांझ हो गई है। विज्ञान का आज भव्य प्रसाद आज जिस नीव पर खड़ा हुआ है उसकी बुनियाद भारत के आदि विचारको ने ही रखी थी। उपनिषदों का यह वचन की पिता पुत्र में जीवित हो जाता है यह आनुवंशिक विज्ञान का ही आधारभूत रहस्यमयी कथन था।

2024 मेडिसिन फिजियोलॉजी का पुरस्कार दो वैज्ञानिकों Victor Ambros and Gary Ruvkun को संयुक्त रूप से मिला है जिन्होंने 1993 में एक कीड़े के डीएनए पर अनुसंधान कर अनुठे मेकैनिज्म माइक्रो आर एन ए की खोज की थी जो जीवन के सूक्ष्म धागों जीनों को नियंत्रित करता है।

इन वैज्ञानिकों का शोध बताता है एक कोशीय जीव से लेकर बहुकोशिय मानव में वह कौन सी प्रणाली है जो उनके शरीर के विविध अंगों में बनने वाले विविध हारमोन प्रोटीन स्राव का निर्माण करती है।

मानव शरीर लगभग 30 खराब कोशिकाओं से बना है प्रत्येक कोशिका में 6 फीट लंबा कार्बन नाइट्रोजन हाइड्रोजन जैसे तत्वों से बना अनुवांशिक पदार्थ डीएनए है ।डीएनए भी 20 हजार के लगभग हिस्सों में विभाजित है प्रत्येक एक हिस्से को जीन कहा जाता है। 6 फीट लंबी यह संरचना प्रत्येक कोशिका में विविध आकृतियों में कोशिका के अंदर समायोजित रहती है जिन्हें क्रोमोसोम कहा जाता है ।यहां तक तो सब ठीक था जब प्रत्येक कोशिका में समान डीएनए है समान क्रोमोसोम है जीन है तो फिर वह कौन सी प्रणाली है जो इन कोशकीय डीएनए से अंग विशेष के निर्माण की कोशिकाओं को बनाती है समान जानकारी है तो एक प्रकार की ही कोशिकाएं बनी चाहिए लेकिन मानव शरीर में आत, लीवर ,किडनी को बनाने वाली कोशिका भिन्न है तो मस्तिष्क का निर्माण करने वाली कोशिका भिन्न है ।मानव शरीर में इंसुलिन पेनक्रियाज की बीटा सेल ही क्यों बनाती है यह किडनी क्यों नहीं बनाती? यह एक अबूझ पहेली बनी हुई थी इन दोनों वैज्ञानिकों ने दशकों से अपने परिश्रम से मॉलेक्युलर आर एन ए को खोजा जो प्रत्येक कोशिका के डीएनए को आरएनए में प्रतिलेखित कर अंग विशेष की कोशिका व प्रोटीन का निर्माण के लिए जिम्मेदार है। 1000 के लगभग मॉलेक्युलर आर एन ए मैसेंजर है जैसे अणु हैं जो 20 हजार जीनों को नियंत्रित करते हैं।

इस मेकैनिज्म की खोज से मानव चिकित्सा में क्या उपयोग होगा तो इसका उपयोग भली भांति उपयोग आज किया जा रहा है ।कैंसर डायबिटीज जैसी बीमारियों में यह प्रणाली अस्त-व्यस्त हो जाती है ऐसे में इस प्रणाली की बेहतर समझ से कैंसर जैसी बीमारियों का इलाज निकट भविष्य में संभव हो सकेगा। कैसे मानव भूर्ण,एक छह फीट का हट्टा कट्टा इंसान बन जाता है शिशु विकास को समझने में भी इस खोज से मदद मिल रही है।

पिछले 70 साल से मनुष्य dna जैसे आधारभूत जैविक अणु को समझने की कोशिश कर रहा है आए साल चौंकाने वाली खोज डीएनए को लेकर होती है लेकिन dna की यह कुंडली आज भी अबूझ पहेली बनी हुई है कितने ही वैज्ञानिकों को डीएनए से प्रोटीन कोशिका व अंगों के निर्माण की कार्य प्रणाली को समझने के लिए नोबेल पुरस्कार मिल चुका है ईश्वर कितना महान है जिसकी व्यवस्था इतनी गहन गंभीर सूक्ष्म स्तर पर कार्य कर रही है वह खुद कितना महान होगा। हमें इन वैज्ञानिकों का भी धन्यवाद करना चाहिए बड़े परिश्रम से मानवता के हित में खोज करते हैं और इन्हें इनकी खोजने के लिए तत्काल भी कोई पुरस्कार नहीं मिलता ।इन दो वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार मिलने में 31 साल लग गए। हमें धैर्य की शिक्षा भी वैज्ञानिकों से लेनी चाहिए।

लेखक आर्य सागर खारी

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