DR D K GARG
अधिकांश हिन्दू मंदिरों को शक्ति पीठ और देवियों को शक्ति पूजा के नाम पर प्रसिद्ध किया गया है। ये शक्ति पीठ क्या है और शक्ति पूजा क्या है इसको समझना जरूरी है।
पौराणिक मान्यता- शक्ति पीठ मे देवी देवताओं का वास है, शक्तिपीठ, देवीपीठ या सिद्धपीठ से उन स्थानों का ज्ञान होता है, जहां शक्तिरूप देवी का निवास है।सती देवी के ५१ टुकड़े जहां जहा गिरे थे वे सभी स्थान शक्ति पीठ कहे जाते हैं।इनकी संख्या पुराणों के अनुसार अलग अलग है। कहीं पर 51 तो किसी पुराण मे 52 शक्तिपीठों का वर्णन है सभी शक्तिपीठ, सिद्धपीठ है परन्तु सभी सिद्धपीठ शक्तिपीठ नहीं कही जाती है, क्योंकि सिद्ध पीठ को मठ के महंत द्वारा स्थापित किया जाता है। सभी कार्य मठाधीश की इच्छानुसार होते है. जहाँ पर देवी देवताओं की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती बल्कि मूर्तियां स्वयं प्रकट या स्वयं सिद्ध होती है जैसे की सहारनपुर में माता शाकुम्भरी देवी का सिद्धपीठ माना है।
ये शक्तिपीठ मनुष्य को समस्त सौभाग्य देने वाले हैं।मनुष्यों के कल्याण के लिए जिस प्रकार भगवान शंकर विभिन्न तीर्थों में पाषाणलिंग रूप में आविर्भूत हुए है और करुणामयी देवी भी भक्तों पर कृपा करने के लिए विभिन्न तीर्थों में पाषाणरूप से शक्तिपीठों के रूप में विराजमान हैं। इन्हीं शक्तितत्त्व के द्वारा ही यह समूचा ब्रह्माण्ड संचालित होता है और शक्ति के अभाव में शिव में भी स्पन्दन सम्भव नहीं है, क्योंकि शिव का रूप ही अर्धनारीश्वर है। अतः दुनिया का अस्तित्व सर्वाराध्या, सर्वमंगलकारिणी एवं अविनाशिनी शक्ति के कारण ही है।
पौराणिक मान्यता का विश्लेषण: ये कैसी विडंबना है ये कह देना की भगवान अपने भक्तों के कल्याण के लिए पाषाण रूप में अवतरित हुए ,जबकि ये पाषाण का शक्ति पीठ वाला भगवान् ताले में बंद है ,बहार पुलिस का पहरा भी है पुजारी पाषाण की मूर्ति को भोग लगाता है कपड़े पहनाता है आदि। अधिकांश मंदिरों में तो जैसे की शाकुम्भरी देवी मंदिर में कैमरा भी लगे है ताकि पुजारी चढ़ावे का पैसा ना हड़प ले , क्यों कि ये पैसा एक विशेष परिवार की आमदनी है ,उनके ऐशो आराम में लगता है।
दूसरा ये भी झूठ है की देवी के ५१ टुकड़े हुए और जहां – जहां गिरे वो शक्ति पीठ कहलाये , ये हिन्दू धर्म के साहित्य को बिगाड़ने वालों का खेल है और कुछ नहीं।
प्रचलित मान्यता को हम यहाँ वास्तविक भावार्थ समझने का प्रयास करें —
‘‘शक्तितत्त्व के द्वारा यानि ईश्वर के द्वारा ही यह समूचा ब्रह्माण्ड संचालित होता है। शक्ति के अभाव में शिव में भी स्पन्दन सम्भव नहीं है क्योंकि शिव का रूप ही अर्धनारीश्वर है। अतः दुनिया का अस्तित्व सर्वाराध्या, सर्वमंगलकारिणी एवं अविनाशिनी शक्ति के कारण ही है।‘‘
आध्यात्मिक दृष्टि से शक्ति का अर्थ क्या है?
परमेश्वर का एक नाम शक्ति : – (शक्लृ शक्तौ) इस धातु से ‘शक्ति’ शब्द बनता है। ‘यः सर्वं जगत् कर्तुं शक्नोति स शक्तिः’ जो सब जगत् के बनाने में समर्थ है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘शक्ति’ है।
अतः स्पष्ट है की जिस शक्ति की बात यहाँ हो रही है वह निराकार ,सर्वशक्तिशाली ,सर्वाधर परमेश्वर को लेकर है जिसने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड बनाया है और जिसकी शक्ति से ये पृथ्वी , चंद्र और असंख्यों तारे अपनी अपनी धुरी पर घूम रहे हैं। और विशाल सूर्य जैसे तारे को जो की अपनी धुरी पर स्थिर है ,ईश्वर ने अपनी अदृश्य शक्ति से टिकाया हुआ हुआ है। लेकिन इस वास्तविक भावार्थ में पंडो ने मिलावट कर दी है।
शक्तिपीठ का वास्तविक अर्थ:
शक्ति पीठ शब्द का अर्थ है–शक्ति + पीठ
ये ठीक उसी तरह से है जैसे हिंदी भाषा के अन्य शब्द – विद्या+ पीठ =विद्यापीठ
ज्ञान +पीठ=ज्ञानपीठ
न्यायालय के पीठ =न्याय पीठ
स्पष्ट है कि हिन्दी शब्द कोश में पीठ का मत किसी विशेष आधार या आसन विशेष से है।
उपर्युक्त से स्पष्ट होता है कि वह स्थान विशेष जहां विद्या दी जाती है उस स्थान को विद्यापीठ कह सकते है। भारत में बहुत से विद्यालय है जिनके नाम के साथ पीठ शब्द जुड़ा हुआ है। इसी तरह से ज्ञानपीठ पुरूस्कार दिया जाता ह। अतः स्पष्ट है जहां शक्ति की यानी व्यायाम, पहलवानी, आदि की शिक्षा दी जाती है, ऐसे विद्यालय को शक्ति पीठ कह सकते है।
अतीत में जब शत्रु के आक्रमणों के कारण यहां जब कभी देश पर संकट आए तो राजा -महाराजाओं ने पूरी शक्ति से उसका सामना किया। इस दृष्टि से युद्ध नीति के अनुसार भी सेना और हथियार अलग अलग स्थानों से अपना मोर्चा संभालते है ताकि दुश्मन को चारों ओर से घेरा जा सके। अतीत में कभी ऐसे बहुत से स्थानों का चयन किया गया होगा जहां लोगों को हथियार चलाने ,वीर बनाने, शक्तिशाली बनाने का कार्य किया जाता हो ,ऐसे शक्ति स्थल को भाषा की दृष्टि से शक्तिपीठ कहना गलत नही होगा।
3 शक्ति पूजा- अध्यात्म के क्षेत्र में शक्ति क्या है और शक्ति पूजा किसे कहते है ?
साधारण भाषा में मानव या किसी अन्य जीव जंतु की शक्ति की बात करें तो इसका अभिप्राय उसके शरीर की ताकत अथवा सामर्थ्य से है जिसको उसके कार्य क्षमता से अक्सर देखा जाता है। इसको अन्य तरह से ऊर्जा भी कह सकते हैं। जानवरों में शेर, हाथी, गैंडा, दरियाई घोड़ा आदि अत्यन्त शक्तिशाली होते हैं, पक्षियों में बाज आदि शक्तिशाली माने जाते हैं। इसी तरह ईश्वर ने सभी को उसकी जरुरत के अनुसार शक्ति प्रदान की है। ईश्वर प्रदत्त शक्ति को मापा भी गया है। ताकत या ऊर्जा नापने की बड़ी इकाई अश्वशक्ति होती है 1 अश्वशक्ति बराबर 756 वॉट के होती है। ये तो हुई शारीरिक शक्ति की बात।
दूसरी है मानसिक शक्ति जिसे कुशाग्र बुद्धि भी कहा है। यह शक्ति भी ईश्वर ने सभी प्राणियों को इनकी जाति के अनुसार दी है। शिकारी जानवर बड़ी चालाकी से अपना शिकार कर लेता है, इसके लिए किसी ट्रेनिंग सेंटर नहीं जाना पड़ता है। मनुष्य ने अपने बुद्धिमानी के प्रयोग से शक्तिशाली शेर को भी पालतू बना लिया और कैद कर लिया। मानव की इस मेधा शक्ति को भी माप शक्ति है जैसे कि वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन जिनका आई०क्यू०(प्फ) लेवल 160 से 190 के बीच बताते है और अमेरिका के रहने वाले विलियम जेम्स का आई०क्यू० (प्फ) लेवल 250 से 300 के बीच में था।
यहाँ शक्ति का भावार्थ उस महान शक्तिशाली ईश्वर से है जिसने सभी जीवधारियों को शक्ति प्रदान की है। जो महान रचनाकार है। जिसने सूर्य ,चंद्र ,समुन्द्र , जीवधारी और सभी देवताओं का निर्माण किया है। ऐसा महान शक्तिशाली कोई और नहीं केवल ईश्वर ही है। जिसकी कोई तुलना नहीं है।
यजुर्वेद में शक्ति के लिए महान शक्तिशाली ईश्वर से प्रार्थना की गयी है –
तेजोसि तेजो मयि धेहि ।* वीर्यमसि वीर्यम् महि धेहि ।
बलमसि बलं मयि धेहि । *ओजोस्योजो मयि धेहि ।
*मन्युरसि मन्युम मयि धेहि ।* *सहोसि सहो मयि धेहि ।-* यजुर्वेद 19/9
*भावार्थ:-* हे परमात्मा ! आप तेजरूप हैं, हमें तेज से सम्पन्न बनाइये। आप वीर्यवान हैं, हमें पराक्रमी साहसी बनाइये । आप बलवान हैं, हमें बलशाली बनाइये। आप ओजवान हैं, हमें ओजस्वी बनाइये। आप मन्यु रूप हैं, हमें भी अनीति का प्रतिरोध करने की क्षमता दीजिये। आप कठिनाइयों को सहन करने वाले हैं, हमें भी कठिनाइयों में अडिग रहने की, उन पर विजय पाने की शक्ति दीजिये।
*शक्ति पूजा के नाम पर पाखंड:* आपने देखा होगा कि कुछ साधु नुमा धूर्त बाबा लोग जादू से थोड़ी बहुत भभूत निकालकर अपने को शक्ति बताने से बाज नहीं आते और अपने अज्ञानी उनको ईश्वर तुल्य मानकर पूजने लगते है। ऐसे बाबाओ की संख्या हजारों में है जैसे की सांई बाबा। लेकिन इन बाबाओं की भी गंभीर बीमारियों से मृत्यु हुई, डॉक्टर बचा नहीं सके। आज के शक्ति-पर्व में बहुत से कर्मकांड जुड़ गए हैं जो हमें शक्तिशाली नहीं, अपितु अस्वस्थ करते हैं।रात्रि-जागरण में यदि माइक और तेज शोर का बोल-बाला रहे तो ‘ध्वनि प्रदूषण‘ से शक्ति क्षीण होती है।
*सारांश=* शक्ति पीठ नाम से प्रचलित मान्यताओं का कोई वैज्ञानिक और शास्त्रीय आधार नहीं है। यदि शक्ति पीठ जाकर दर्शन मात्र से शक्ति मिल जाये और इस तरह से काम बन जाये तो पूरा विश्व जो आजकल दुखी है , यहाँ आकर अपने दुःख दूर करवा सकता है?इन पीठ के आसपास भीख मांगने वाले क्यों है? पुजारी दक्षिणा और भक्तों से पूजा के नाम पर लिए दान से घर का गुजारा करते है, बीमार होने पर पुजारी स्वयं अस्पताल जाते हैं और न्याय के लिए न्यायालय जाते हैं, चोर से बचने के लिए ताला और चौकीदार का प्रयोग करते हैं।
ईश्वर तो सर्वज्ञ है, सिर्फ एक स्थान पर ही उसकी शक्ति को स्वीकार करना अज्ञानता है। ईश्वर की कोई मूर्ति नही बनायीं जा सकती है और ना ही पाषाण में, कागज में, तस्वीर में प्राण प्रतिष्ठा कर सकता है, ना ही भोग लगा सकता है और ये मूर्तियां, तस्वीर आशीर्वाद भी नहीे दे सकती।
*यो भूतं च भव्य च सर्व* *यश्चाधितिष्ठति।*
*स्वर्यस्य च केवलं तस्मै ज्येष्ठाय* *ब्रह्मणे* *नमः।।-* अथर्ववेद 10-8-1
*भावार्थ:* ईश्वर जो की भूत, भविष्य और वर्तमान सभी में व्यापक है, जो दिव्यलोक का भी अधिष्ठाता है, उस ब्रह्म (परमेश्वर) को प्रणाम है। वहीं हम सब के लिए प्रार्थनीय और वही हम सबके लिए पूज्यनीय है।
*अन्धन्तमः प्र विशन्ति येे सम्भूति* *मुपासते।*
*ततो भूयेइव ते तमो ये* *उसम्भूत्या-रताः।।* -(यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 9)
अर्थात: जो लोग ईश्वर के स्थान पर जड़ प्रकृति या उससे बनी मूर्तियों की पूजा उपासना करते हैं, वे लोग घोर अंधकार को प्राप्त होते हैं।
जो जन परमेश्वर को छोड़कर किसी अन्य की उपासना करता है वह विद्वानों की दृष्टि में पशु ही है। -(शतपथ ब्राह्मण 14/42/22)तो आइए, शक्ति की आराधना करें, प्रार्थना करें, ऊर्जस्वी बनें, जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति में जुट जाएं।