स्वामी श्रद्धानन्द का वध और ब्रिटिश सरकार
लेखक- प्रियरत्न शास्त्री
प्रस्तुतकर्ता- प्रियांशु सेठ
गवर्नमेन्ट! प्राचीन काल में यह प्रथा थी कि जब राजा अन्याय पर तुल जाता या भ्रान्त हो जाता था तो संन्यासिवृन्द और उच्च कोटि के ब्राह्मण राजा को उपदेश कर के सीधे मार्ग पर लाते थे। राजा लोगों को भी उनकी उपदिष्ट धर्म-पद्धति पर चलना पड़ता था क्योंकि उन्होंने धर्म युक्त नीति का अनुष्ठान करना अपना कर्तव्य समझा हुआ था, तथा उन संन्यासी और ब्राह्मणों से भय भी करते थे इसलिए कि यह निष्पज्ञ और निर्लोभ साधु हम से प्रजा को विमुख कर सकते हैं। ब्राह्म बल के सामने अपने क्षात्र बल को अल्प समझते थे। अत एव इस प्राचीन प्रथा नुसार आर्य संन्यासी और ब्राह्मण तेरी वर्तमान अन्याय पद्धति को विस्पष्ट और अति वृद्ध देख कर तेरे समझाने और असंतुष्ट हिन्दू प्रजा को यथोचित कर्तव्य का आदेश करने के लिये उठ खड़े हुए हैं। यद्यपि मैं एक वैदिक विद्यार्थी हूँ तथापि उक्त मार्ग का पथिक होने से कुछ कहना कर्तव्य समझता हूं-
गवर्नमेंट! क्या तुझे ज्ञात है कि तेरे शासन काल में एक बड़ी भारी व्यक्ति हिन्दू धर्म के सम्राट तथा परिव्राट् स्वा० श्रद्धानन्द जी महाराज हिन्दू जाति के लिए प्रतिष्ठा में भारत मंत्री (वायसराय) के तुल्य थे। उनका वध तुच्छ व्यक्ति अब्दुल रसीद के हाथ से हो जावे और हत्या के प्रचुर प्रमाण (पूरा सबूत) होते हुए भी बंधक को दण्ड नहीं दिया जाता, टालते टालते छः मास बिता दिए। क्या यह मेरी पक्षपात युक्त और अन्यायपूर्ण तथा अन्धी नीति का प्रमाण नहीं? क्या तुझे अभी तक बंधक का दोष वहीं सूझा, शोक कि बंधक स्वयं स्वीकार भी करता है कि हाँ मैं बंधक हूं पर तेरी अनिष्ट दयाछत्र उस के उपर है :
क्यों राजशक्ते देवी! क्या तू स्वामी श्रदानन्द से अपना असहयोग समय का बदला लेना चाहती है, कि इस व्यक्ति ने प्रजा को भड़काया था और गवर्नमेन्ट के विरुद्ध पक्ष लिया था। अतः इसके बंधक को टालमटोल करके छोड़ दिया जावे? यदि ऐसा ही है तो तेरी कायरता है। अरे! जीवित काल में तो तेरा साहस न हुआ कि क्षेत्र में सन्नद्ध परिव्राट पर अपना वार करे किंतु उसके मरण पश्चात् बंधक का पक्ष कर के अपनी पिछली बीती का बदला ले। तुझे तो उचित था कि बंधक को ही फांसी नहीं बल्कि अपने न्याय का प्रकाश करती हुई हत्या कि साजिश का पता लगाती। मगर कहां तूने तो उचित न्याय न कर के हिंदू जाति की वा आर्यों पर आक्रमण करने के लिये मुसलमानों को उत्साहित कर दिया। यही कारण है कि स्वा० श्रद्धानन्द की हत्या के पीछे अन्य आर्य जनों की हत्या करने को मौहमुदी जन कमर कसें। क्या तूने ३ जोलाई के “जमीदार,, को नहीं पढ़ा? क्या आबू रोड स्टेशन की हत्या घटना को नहीं सुना? क्या बरेली के भयानक दृश्य का कारण तेरी उक्त हमर्ददी नहीं है?।
आर्य मन्दिर में मुसलमान आक्रमण करें, कोतवाल सरकारी नौकर होता हुआ भी मुसलमानी जोश में आकर राजनीति से बाहर हो जूते पहिने हुए सीधा वेदी पर चढ़ कर आर्य धर्म का अपमान करे, तेरे कर्मचारी यज्ञोपवीत तोड़े, क्या औरंगजेबी ज़माना बनाने की इच्छा है। क्यों? कहां गई वह शेर और बकरी को एक घाट पर पानी पिलाने की प्रतिज्ञा? गवर्नमेंट! क्या उन दिनों को भूल गई जबकि श्री० मान्या महाराणी विक्टोरिया के समय बनारस में ऋषि दयानन्द का व्याख्यान बन्द करने पर कलेक्टर को दण्ड दिया गया? क्या आज वह धर्मराज नहीं रहा जो आर्यों को अपने धर्ममन्दिर में ईश्वर पूजन, देवार्चन और प्रभु भजन धर्मकृत्य से पापिष्ठ नीति द्वारा वियुक्त किया जावे, और धर्म-सूत्र को शरीर से जबरन् उतार लिया जावे? यदि यही बात है कि मुनासिब मुसलमानों के कहने पर हसन हुसैन के मरण दिवस रोने धोने से धर्म मन्दिरों में ईश्वर पूजन और भजन में विघ्न किया जावे तो कोई दूर नहीं है तेरे शासन काल में आर्यों और हिन्दुओं को भी यह शुभ अवसर मिल गया। श्री० स्वा० श्रद्धानन्द परिव्राट के मृत्यु दिवस प्रति वर्ष शोक संकीर्तन प्रत्येक नगर और ग्राम में निकलेंगे और मस्जिदों में अज़ान देते हुए मुल्लाओं की आवाज़ आपको बन्द करनी पड़ेगी। गवर्नमेंट! क्या तेरे मन में यह ख्याल बैठ गया कि आर्य एक जीती जागती जाति है, इसको दबाना चाहिये ऐसा न हो कि राजशासन कार्य अपने हार में ले लेवे। क्योंकि असहयोग दिवसों में इस जाति ने बड़ा काम किया था। तो सुन हे देवि! इस में कुछ सन्देह नहीं कि आर्य जाति चाहती है कि आर्यों का राज्य हो तथा ऐसे समय की आशा भी करती है जबकि आर्य राज्य हो, बल्कि भारत में ही नहीं किन्तु पृथिवी भर में आर्यों का राज्य हो जावे, यह इच्छा है। क्योंकि जब तक राजा आर्य अर्थात् श्रेष्ठ धार्मिक पक्षपात रहित न होगा तब तक प्रज्ञा में सुख और शांति नहीं हो सकती। यदि आप आर्य हो जावें तो हम प्रसन्न हैं क्योंकि फिर आर्यों का राज्य होगा और प्रजा सुखी रहेगी किंतु क्या तू अन्याय से आर्यों को दबाना चाहती है? क्या कभी कोई अन्याय से दबा है? क्या इतिहास बताता है कि अन्याय करने से कोई जाति दबी? हजरत ईसा को फांसी दी क्या ईसाइयत का प्रचार कम हो गया? नहीं, नहीं। इस प्रकार अन्याय से तो अग्नि को भड़काना है। अतः आपको अब उचित है कि स्वामी श्रद्धानन्द के घातक को फांसी ही नहीं अपितु इस साज़िश का पता लगा कर साज़िश कर्ताओं को उचित दण्ड दिया जावे। केवल घातक को फांसी देना तो धर्म न्याय है क्योंकि कहां स्वा० श्रद्धानंद सम्राट व परिव्राट और कहां नाचीज़ अब्दुल रशीद। स्वा० श्रद्धानन्द के स्थान पर यदि अब्दुल रशीद जैसे सैकड़ों को भी फाँसी दी जावे तो भी समता नहीं हो सकती। बस अब अधिक कहने को अवसर नहीं है किंतु आपका कर्तव्य है कि स्वा० श्रद्धानन्द के घातक को फांसी दी जावे और अन्य साजिश कुनिन्दाओं को उचित दण्ड। बरेली का मामला बिल्कुल साफ हो जाना चाहिये। अत्याचारी राजभृत्यों पर दण्ड निर्यातन किया जावे, वरना सब आर्य मिल कर ऑल इण्डिया कानफ्रेंस करके निश्चय करेंगे कि भारत (हिन्दुस्थान) में या तो आर्य नहीं या अन्याय पद्धति नहीं। अब अपनी बुराई और भलाई को सोच ले। क्या करें आर्यों का दोष नहीं। मरता क्या नहीं करता।
आर्यों तथा हिन्दुओं को चेतावनी-
इस समय गवर्नमेंट राज्य में आर्यों तथा हिंदुओं को अपनी सत्ता का स्थिर रखना अति कठिन हो गया क्योंकि एक ओर तो मुसलमानी अत्याचार यानी आर्य जाति रूपी द्रुम की जड़ों को उखाड़े, अनेक आर्य जाति के बच्चों को बहकावें, जबरदस्ती हिंदू स्त्रियों को पकड़ ले जावें और मुसलमान बनावे, कई एक गुप्त व प्रकट उपायों से हिंदुओं को मुसलमान बनावें। लूट-मार करें, छुरियां बन्दूक चलाकर प्राण लेते जावे और दूसरी ओर गवर्नमेंट के प्रहार से धर्म को पीड़ा प्राप्त हो। इस प्रकार इन दोनों से अपने आपको बचा सकोगे? क्या इस समय बचने का उपाय दृष्टिगोचर होता है? मेरे दृष्टि पथ दो ही उपाय हैं-
सब आर्य और हिंदूजन या तो मुसलमान बन जावें या ईसाई हो जावें। क्योंकि मुसलमान हो जाने से मुसलमानों के अत्याचारों और गवर्नमेंट के भी अन्याय प्रहारों से बच सकोगे और ईसाई बन जाने से भी आपके शरीरों का हरण हो जावेगा क्योंकि ईसाई मजहब सामयिक राजधर्म है अतः गवर्नमेंट का अन्याय प्रहार तो क्षमा हो ही जावेगा। साथ में ईसाईयत राजधर्म होने से मुसलमान भी अत्याचार करने का साहस न कर सकेंगे। यद्यपि ऐसा करने से आपकी प्राण रक्षा तो हो जावेगी, आपकी जाति और मान मर्यादा का ध्वंस हो जावेगी। आप जिसको सर्वश्रेष्ठ पवित्र और आचरणीय धर्म समझते हैं, वह नष्ट हो जावेगा।
आप सोचें कि प्रथम पक्ष उचित है या उत्तर। किंतु मैं तो यह कहूँगा कि-
“अस्तित्व नाशे मरणं श्रेयः”
अपने जातित्व और सत्ता के नाश की अपेक्षा मरना अच्छा है। इस लिए गवर्नमेंट की इस अन्याय पद्धति का तन, मन, धन और वज्र से पूरा मुकाबला करो, धर्मक्षेत्र में वीरता दिखलाकर आक्रमणकारियों की तोपों के शहीद बनो, यही अच्छा है। अगर विजय हो गई तो भी अच्छा है अगर मर गए तब भी अच्छा है। आत्मा अमर है, अधर्म से दबना नहीं चाहिए। इस लिए आर्यों को पीछे पग हटाने की आवश्यकता नहीं। मरना भी है तो धर्म पर सवाई पर मरो या भारत वर्ष को सब आर्य और हिंदुओं खाली कर दो किसी दूसरे राज्य में जा बसो किंतु अपने सम्पत्तिरूप देश में भी होती हुई कमजोर जाति दूसरे देश में पादाक्रांत ही होगी। अतः सब मिल कर अन्याय नीति का मुकाबला करो, असहयोग और हड़ताल करते हुए शहीद बनो या वीरता से विजय पाओ। यही कल्याण का मार्ग है।
[स्रोत- सार्वदेशिक पत्रिका का अगस्त 1927 का अंक]