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कविता

आज हर आदमी में मत मजहब का उन्माद यूँ छाने लगे

—विनय कुमार विनायक
हर तरफ साजिश चल रही, हर तरफ धोखा ही धोखा
धर्मनिरपेक्ष नेता व आतंकी के बीच ये कैसा समझौता
कि आपस में दुर्भिसंधी करके षड्यंत्र कर रहा अनोखा
देश के दुश्मन कुकर्मी कुकृत्य का छोड़ रहा नहीं मौका!

छद्मनाम से षड्यंत्रकारी होटल दुकान सैलून चला रहा
कहीं फल के रस में मानव का मूत्र मिलाकर पिला रहा
कहीं फल सब्जी रोटी में थूक खँखार डालकर खिला रहा
कहीं मंदिर के पवित्र प्रसाद में गाय की चर्बी मिला रहा!

कहीं पहचान छिपा कर ये विधर्मी बेटियों को बरगला रहा
कहीं स्कूली बच्चियों को रेप हत्या हेतु बहला फुसला रहा
ये नाम बदलकर प्रेमजाल में उसे फंसाकर जिंदा जला रहा
क्यों नहीं पिता औ गुरु ऐसे शोहदे को संस्कार सिखा रहा?

कहीं एक से अधिक शादी कर देश की जनसंख्या बढ़ा रहा
कहीं रेल की पटरी पर गैस सिलेंडर रखकर ट्रेन पलटा रहा
कहीं त्योहार की झाँकी और रेल बोगी में पत्थर बरसा रहा
कहीं सरकारी भूमि पर अवैध निर्माण करके हड़पा जा रहा!

टीवी चैनल पर बहस के लिए मजहबी उस्ताद जो आ रहा
वे जहरीली बोली बोल अपराधी का बचाव कर भड़का रहा
सड़क हाईवे रेलवे गोचर भूमि पर घुसपैठिए को बसा रहा
आखिर भारत कैसे सामना करेगा ऐसे फरेबी फसादी का?

जहाँ अंग्रेजों द्वारा कारतूस में गाय की चर्बी मिलाने पर
मंगल पांडे ने अठारह सौ सत्तावन ई में गदर मचाया था
आज मंगल पांडे व झांसी रानी के बेटे क्यों पंगु हो गए?
प्रताप शिवाजी दशमेशगुरु के रणबांकुरे क्यों गूंगे हो गए?

आज हर आदमी में मत मजहब का उन्माद यूँ छाने लगे
कि नेता के भड़काऊ बोल से आपसी भाईचारा मिटाने लगे
जस्सासिंह हरिसिंह नलवा के जलवा को वही लजाने लगे
जो धर्मांतरित हो आक्रांताओं को अपना पूर्वज बताने लगे!
—विनय कुमार विनायक

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