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ईरान को भारत से मदद मांगने का कोई अधिकार है क्या?

कुछ दिन पहले ख़ामेनेई ने भारत को गाज़ा और म्यांमार कहा था, याद है या भूल गया ईरान? अमेरिका एक मूर्खता कर रहा है

सुभाष चन्द्र
कल खबर थी कि मिडिल ईस्ट में तनाव के चलते ईरान इज़रायल का टकराव बढ़ता देख कर बड़े खिलाडियों ने फैसला कर लिया है कि किसके साथ रहना है और क्योंकि ईरान को इस्लामिक देशों से मदद का विशेष भरोसा नहीं मिल रहा, इसलिए ईरान अब एशियाई देशों से गुहार लगा रहा है कि वे इज़रायल के अत्याचार के खिलाफ ईरान का साथ दें।

ईरानी राष्ट्रपति पेजेशकियान ने इस संदर्भ में थाईलैंड की प्रधानमंत्री शिनावात्रा से मिलकर ईरान के लिया साथ मांगा है और एशियाई देशों को इज़रायल के खिलाफ एकजुट होने के लिए कहा है, और उसकी खास वजह है कि ईरान को शिया सुन्नी मतभेदों के चलते अरब देशों से बहुत उम्मीद नहीं है। ईरान अरब देशों से इज़रायल से व्यापार ख़त्म करने की अपील करता रहा है लेकिन कोई असर नहीं हुआ।

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ईरान का सोचना है कि भारत एक मजबूत देश है जिसकी साख एशिया और पश्चिम देशों में भी है और यदि भारत मिडिल ईस्ट का तनाव रोकने के लिए आगे आता है तो अमेरिका और पश्चिमी देश भारत का साथ होंगे। भारत के इज़रायल के साथ भी अच्छे संबंध हैं और वह इज़रायल-फिलिस्तीन के लिए two nation theory के भी पक्ष में है।

ईरान अगर भारत के बारे में ऐसा सोच रहा है कि वह वह इज़रायल को दरकिनार करके ईरान की सुनेगा तो यह उसकी ग़लतफ़हमी है। ईरान ने इज़रायल पर 200 मिसाइल क्या भारत से पूछ कर दागी थी और क्या हमास हिज़्बुल्ला और हूती को इज़रायल से लड़वाने के लिए क्या भारत से पूछा था?

ईरान के सुप्रीम लीडर खामनेई ने अभी कुछ दिन पहले ही भारत के मुसलमानों की हालत गाज़ा और म्यांमार के मुसलमानों जैसी बता दी थी। ख़ामेनेई ने X पर लिखा था –

“गाज़ा और म्यांमार की तरह भारत के मुस्लिम भी प्रताड़ित हो रहे हैं;

-Muslim Brotherhood (मुस्लिम भाईचारे के लिए) शिया/सुन्नी एकता होनी चाहिए”

भारत पर इतना घिनौना आरोप लगा कर कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह इज़रायल के खिलाफ जाएगा जबकि उसने भारत के विरोध में कभी कोई गिरा हुआ बयान नहीं दिया जैसे ख़ामेनेई दिया और कई अन्य इस्लामिक देश देते रहे हैं। अब मुस्लिम भाईचारा बनाने के लिए शिया/सुन्नी को एकजुट कर लो। इस्लामिक देश वैसे भी एक नहीं होने वाले जब तक ईरान और तुर्की के दिमाग का फितूर “इस्लामिक देशो” का खलीफा बनने कायम रहेगा।

ईरान की समस्या यह है कि उसने इज़रायल पर हमला तो कर दिया लेकिन अब डर सता रहा है कि इज़रायल ने बदला लिया तो क्या होगा यानी अब “फटने और बटने” की बात हो रही है (समझ गए ना”)

इज़रायल के पास 4 Option हैं, ईरान के तेल के कुएं स्वाहा करे; Air Defence Systems पर हमला करे; Targeted Assassinations करे; और यह Nuclear Intallations पर हमला कर उन्हें ख़त्म करे। इसमें कोई भी काम करता है इज़रायल या हिज़्बुल्ला के जैसे पेजर/मोबाइल/हमले करता है तो ईरान का बहुत नुकसान हो सकता है।

लेकिन अमेरिका ने इज़रायल का साथ देने का तो वादा किया है लेकिन यह भी कह दिया कि यदि इज़रायल ईरान के Nuclear Intallations पर हमला करता है तो उसके लिए वह इज़रायल के साथ नहीं होगा।

अमेरिका इस बात को भूल जाता है कि यदि ईरान परमाणु हथियार बनाने में सफल हो जाता है तो उसके हथियार/बम इज़रायल, अमेरिका और यूरोप के लिए होंगे, खासकर इज़रायल और अमेरिका के लिए जैसे पाकिस्तान अपने एटम बम पर सबसे पहले भारत का नाम लिखता है और मुस्लिम भाईचारे के लिए वह ऐसे एटम बम किसी भी इस्लामिक देश को गुपचुप दे सकता है जो अमेरिका, इज़रायल और यूरोप पर चलें।

लिहाजा भारत को गाज़ा और म्यांमार कहने वाले ईरान को भारत से ज्यादा उम्मीद नहीं रखने चाहिए।

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