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विश्वगुरू के रूप में भारत

मनु की वैश्विक प्रतिष्ठा

आशीष सिंह चौहान
१. महर्षि मनु ही वो पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने संसार को एक व्यवस्थित, नियमबद्ध, नैतिक एवं आदर्श मानवीय जीवन जीने की पद्धति सिखायी है| वे मानवों के आदि पुरुष है, आदि धर्मशास्त्रकार है, आदि विधिप्रेणेता, आदि विधिदाता(ला गिवर), आदि समाज और राजनीति व्यवस्थापक है| मनु ही वो प्रथम धर्मगुरु है जिन्होंने यज्ञ परम्परा का प्रवर्तन किया| उनके द्वारा रचित धर्मशास्त्र जिसको आज मनुस्मृति के नाम से जाना जाता है, सबसे प्राचीन स्मृतिग्रन्थ है| अपने साहित्य और इतिहास उठाकर देख लीजिये, वैदिक साहित्य से लेकर आधुनिक काल तक एक सुदीर्घ परम्परा उन शास्त्रकारों, साहित्यकारों, लेखकों और कवियों तथा राजाओं की मिलती है जिन्होंने मुक्तकंठ से मनु की प्रशंसा की है| वैदिक साहित्य और ब्राहमण गर्न्थों में मनु के वचनों को “औषध के समान हितकारी और गुणकारी” कहा गया जय| महर्षि वाल्मीकि रामायण में मनु एक प्रमाणिक धर्मशास्त्रज्ञ के रूप में उद्धत करते है, हिन्दुओं में भगवान के रूप में पूज्य श्रीराम अपने आचरण को न्यायसम्मत सिद्ध करने के लिए मनु के श्लोकों का उदहारण देते है| महाभारत में अनेक स्थलों पर पर मनु का सर्वोच्च धर्मशास्त्री और न्यायशास्त्री के रूप में उल्लेख करते हुए उनके धर्मशास्त्र का परीक्षासिद्ध घोषित किया गया है| निरुक्त में महर्षि यास्क ने मनु के मत को उद्धत करके ‘पुत्र-पुत्री के समान दयाभाग’ के विषय में प्रमाणिक माना है| स्मृतिकार बृहस्पति मनु की स्मृति को सबसे प्रमाणिक स्मृति मानकर उसके विरुद्ध स्मृतियों को अमान्य घोषित करते हैं| बौद्ध कवि अश्वघोष ने अपनी कृति ‘वज्रोकोपनिषद’ में मनु के वचनों ओ प्रमाणरूप में उद्धत किया है| वलभी के राजा धारसेन के 571 ईस्वी के शिलालेख में मनुधर्म को प्रमाणिक घोषित किया गया है| बादशाह शाहजहां के पुत्र दाराशिकोह ने मनु को प्रथम मानव कहा है| गुरु गोविन्द सिंह ने ‘दशम ग्रन्थ’ में मनु का मुक्तकंठ से गुणगान किया है| आर्यसमाज के प्रवर्तक महर्षि दयानन्द ने वेदों के बाद मनुस्मृति को ही धर्म में प्रमाण माना है| रवीन्द्रनाथ टैगोर, डॉ.राधाकृष्णन, जवाहरलाल नेहरु आदि नेताओं ने मनु को आदि ‘लॉ गिवर’ के रूप में उल्लेखित किया है| अनेक कानूनविदों जस्टिस डी.एन मुल्ला, एन.राघवाचार्य आदि ने मनु के विधानों को ‘अथारिटी’ घोषित किया है| मनु की इन्हीं विशेषताओं के कारण भारत के संविधान प्रस्तुत करते समय लोकसभा में पं.नेहरू ने और जयपुर एन डॉ.अम्बेडकर की प्रतिमा का अनावरण करते समय तत्कालीन राष्ट्रपति आर.वेंकटरमण ने डॉ.अम्बेडकर को ‘आधुनिक मनु’ की संज्ञा देकर उनका मान बढ़ाया था |
२- विदेशों में महर्षि मनु की प्रतिष्ठा—- मनु की प्रतिष्ठा, गरिमा और महिमा का प्रभाव एवं प्रसार विदेशों में भी भारत से कम नही रहा है| ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मन से प्रकाशित ‘इनसाइक्लोपीडीया’ में मनु मानवजाति का आदि पुरुष, आदि धर्मशास्त्रकार, आदि विधिप्रेणेता, आदि न्यायशास्त्री वर्णित किया गया है| मनु के मंतव्यों का समर्थन करते हुए अपनी पुस्तकों में मैक्समूलर, ए.ए.मैकडानल, ए.बी.कीथ, पी.थॉमस, लुईसरेनो आदि पाश्चात्य लेखकों ने मनुस्मृति को धर्मशास्त्र के साथ-साथ एक लॉ-बुक भी माना है| भारतीय सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जज सर विलियम जोन्स ने भारतीय विवादों के निर्णय में मनुस्मृति की अपरिहार्यता को देखकर संस्कृत सीखी और मनुस्मृति को पढ़कर उसका सम्पादन भी किया | जर्मन के प्रसिद्ध दार्शनिक फ्रीडरिच नीत्से ने तो यहाँ तक कहा की “मनुस्मृति बाइबिल से उत्तम ग्रन्थ है” बल्कि “उससे बाइबिल की तुलना करना ही पाप है|”
३- बालि द्वीप, बर्मा, फिलीपीन, थाईलैंड, चम्पा(दक्षिणी वियतनाम), कम्बोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, श्रीलंका, नेपाल आदि देशों से प्राप्त शिलालेखों और उनके प्राचीन इतिहास से ज्ञात होता है कि वहां प्रमुखता मनु के धर्मशास्त्र पर आधारित कर्मानुसारी वर्णव्यवस्था रही है| मनु के विधानों को सर्वोच्च महत्व दिया जाता था| राजा स्वयं को मनु का अनुयायी कहने पर गर्व का अनुभव करता था| दक्षिणी वियतनाम से प्राप्त एक शिलालेख के अनुसार राजा ‘जयइन्द्रवर्मदेव’ मनुमार्ग का अनुसरण करने वाला था| कम्बोडिया के राजा उदयवीर वर्मा के ‘सदोक काकथोम’ से प्राप्त अभिलेख में ‘मानवनीतिसार’ ग्रन्थ का उल्लेख है जो मनुस्मृति पर आधारित था| ‘प्रसत कोमपन’ से प्राप्त राजा यशोवर्मा के अभिलेख में मनुस्मृति का २/१३६ श्लोक उद्धत मिलता है| राजा जयवर्मा के अभिलेख में मनुसहिंता के विशेषज्ञ एक मंत्री का उल्लेख है| फिलीपीन के निवासी मानते हैं कि उनकी आचार-सहिंता के निर्माण में मनु और लाओत्सो की स्मृति का प्रमुख योगदान, इस कारण वहां की विधानसभा के द्वार पर इन दोनों की मूर्तियाँ स्थापित की गयी| यूरोप, ईरान, भारतीय उपमहाद्वीप की भाषाओँ में मनुष्यवाचक शब्द प्रचलित हैं, वे मनुमूलक शब्दों के अपभ्रंश हैं जैसे ग्रीक और लैटिन में माइनोस, जर्मनी में मन्न, स्पेनिश में मन्ना, अंग्रेजी और उसकी बोलियों में मैन, मेनिस, मुनुस मनीस आदि| ईरानी-फारसी में नूह (मनुस के स को ह होकर और म का लोप होकर) कहा जाता है| ईरानवासी स्वयं को आर्यवंशी मानते है| कम्बोडिया के निवासी स्वयं को मनु की संतान मानते हैं| थाईलैंड के निवासी स्वयं को राम का वंशज मानते हैं| राम और कृष्ण दोनों ही मनु की वंशपरम्परा में आते हैं| इस विवरण को पढ़कर हम कह सकते हैं कि अतीत में एक धर्मशास्त्रकार और विधिदाता (लॉ-गिवर) के रूप में महर्षि मनु को जो प्रतिष्ठा और महत्व मिला, वह आज तक किसी अन्य को नही मिला|
विशेष—मित्रों, हम मनु का कितना ही विरोध कर लें, निंदा कर लें, मनु का हमसे जो सम्बन्ध बन चुका है, वह जब तक इतिहास और ये समाज रहेगा, तब तक नही मिट सकता| मनुस्मृति में मध्य काल में कुछ लोगों ने मिलावट कर उसके स्वरुप को विकृत कर दिया। यही मिलावट जातिवाद अदि दोषों का कारण है। तथापि आदिवंश प्रवर्तक होने के कारण मनु को कभी भुलाया नही जा सकता, कभी त्यागा नही जा सकता | भारतीय साहित्य और समाज मानता है कि सभी मनुष्य मनु की संतान हैं| इसी कारण आदमी के जितने भी नाम हैं, वे ‘मनु’ शब्द से बने हैं, जैसे मनुष्य, मनुज, मानव, मानुष आदि| इसलिए निरुक्तकार ने मनुष्य शब्द का अर्थ करते हुए कहा है—
“मनोः अपत्यम मनुष्य”(३.४) अर्थात— मनु की संतान होने से हमें मनुष्य कहा जाता है|
इसलिए आईये हम गर्व करें मनु पर, और जहाँ भी जिस भी देश में जायें वहां गर्व से कहें कि ‘मनु’ के देश से आये हैं|

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