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आज का चिंतन

सनातन धर्म के ग्रन्थों में पैगम्बर और इस्लाम???

पिछले कुछ सालों से एक झूठ फैलाया जा रहा है कि सनातन धर्म के ग्रन्थों में पैगम्बर और इस्लाम के बारे में लिखा गया है. इस तरह की गप्प को जाकिर नायक ने बहुत अधिक प्रचारित किया. लगभग 10 किताबें इस विषय पर मुस्लिम संस्थाओं ने छापी हैं. चित्र उसी तरह की एक किताब का है. वास्तव में यह कोशिश नई नहीं है. बहुत साल पहले भी यह छल कपट किया जा चुका है. उसका विवरण पढ़ें-
जिन दिनों महर्षि दयानन्द सरस्वती सत्यार्थ प्रकाश का द्वितीय संशोधित संस्करण के सम्पादन-प्रकाशन कार्य में व्यस्त थे, उन दिनों कलकत्ता से निकलने वाले ‘भारत मित्र’ नामक एक पत्र के श्रावण 6 गुरुवार वि. सं. 1940 के अंक में छपा था कि मुसलमानों के मजहब का मूल अथर्ववेद में है और इस सम्बन्ध में अल्लोपनिषद् का उल्लेख भी किया गया था।
यह समाचार पढ़कर महर्षि ने उक्त पत्र के सम्पादक को एक पत्र लिखा। महर्षि का यह पत्र ‘ऋषि दयानन्द के पत्र और विज्ञापन’ में पढ़ा जा सकता है (पृ. 447-448, द्वितीय संस्करण)।

इसीलिए सत्यार्थ प्रकाश के क़ुरआन की समीक्षा विषयक 14वें समुल्लास के अन्त में महर्षि ने अल्लोपनिषद् की वास्तविकता प्रकट करने के लिए अपने निम्नलिखित विचार व्यक्त किए हैं –

“अब एक बात यह शेष है कि बहुत से मुसलमान ऐसा कहा करते और लिखा वा छपवाया करते हैं [यह संकेत भारत मित्र के उपर्युक्त लेख की ओर है] कि हमारे मज़हब की बात अथर्ववेद में लिखी है। इसका यह उत्तर है कि अथर्ववेद में इस बात का नाम निशान भी नहीं है।
(प्रश्न) क्या तुमने सब अथर्ववेद देखा है? यदि देखा है तो अल्लोपनिषद् देखो। यह साक्षात् उसमें लिखी है। फिर क्यों कहते हो कि अथर्ववेद में मुसलमानों का नाम निशान भी नहीं है? ‘अथाल्लोपनिषदं व्याख्यास्यामः… इत्यल्लोपनिषत् समाप्ता॥’ जो इसमें प्रत्यक्ष मुहम्मद साहब रसूल लिखा है इससे सिद्ध होता है कि मुसलमानों का मत वेदमूलक है।
(उत्तर) यदि तुमने अथर्ववेद न देखा हो तो हमारे पास आओ, आदि से पूर्त्ति तक देखो अथवा जिस किसी अथर्ववेदी के पास बीस काण्डयुक्त मन्त्रसंहिता अथर्ववेद को देख लो। कहीं तुम्हारे पैग़म्बर साहब का नाम वा मत का निशान न देखोगे। और जो यह अल्लोपनिषद् है वह न अथर्ववेद में, न उसके गोपथ ब्राह्मण वा किसी शाखा में है। यह तो अकबरशाह के समय में अनुमान है कि किसी ने बनाई है। इस का बनाने वाला कुछ अर्बी और कुछ संस्कृत भी पढ़ा हुआ दीखता है क्योंकि इसमें अरबी और संस्कृत के पद लिखे हुए दीखते हैं। देखो! (अस्माल्लां इल्ले मित्रावरुणा दिव्यानि धत्ते ) इत्यादि में जो कि दश अंक में लिखा है, जैसे—इस में (अस्माल्लां और इल्ले) अर्बी और (मित्रावरुणा दिव्यानि धत्ते) यह संस्कृत पद लिखे हैं वैसे ही सर्वत्र देखने में आने से किसी संस्कृत और अर्बी के पढ़े हुए ने बनाई है। यदि इसका अर्थ देखा जाता है तो यह कृत्रिम अयुक्त वेद और व्याकरण रीति से विरुद्ध है। जैसी यह उपनिषद् बनाई है, वैसी बहुत सी उपनिषदें मतमतान्तर वाले पक्षपातियों ने बना ली हैं। जैसी कि स्वरोपनिषद्, नृसिंहतापनी, रामतापनी, गोपालतापनी बहुत-सी बना ली हैं।
(प्रश्न) आज तक किसी ने ऐसा नहीं कहा, अब तुम कहते हो। हम तुम्हारी बात कैसे मानें?

(उत्तर) तुम्हारे मानने वा न मानने से हमारी बात झूठ नहीं हो सकती है। जिस प्रकार से मैंने इसको अयुक्त ठहराई है उसी प्रकार से जब तुम अथर्ववेद, गोपथ वा इसकी शाखाओं से प्राचीन लिखित पुस्तकों में जैसे का तैसा लेख दिखलाओ और अर्थसंगति से भी शुद्ध करो तब तो सप्रमाण हो सकता है।”

स्वामी विद्यानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश का ‘सत्यार्थ भास्कर’ नामक दो भागों में विस्तृत भाष्य लिखा है। उसमें उन्होंने अल्लोपनिषद् के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें लिखीं हैं –
अल्लोपनिषद् : इस विषय में अभी तक भी भ्रान्ति बनी हुई है। सन् 1947 के मई मास में महात्मा गाँधी दिल्ली में ठहरे हुए थे। उनकी प्रार्थना में वेद, उपनिषद्, गीता, बाइबल आदि के अंश नियमित रूप से बोले जाते थे। कुछ लोगों को यह अच्छा नहीं लगता था। गाँधीजी तक भी यह बात पहुंची। तब एक दिन उन्होंने प्रार्थनोपरान्त प्रवचन में कहा – ‘हिन्दू लोग मेरी प्रार्थना में कुरान शरीफ की आयतों के पढ़े जाने पर क्यों आपत्ति करते हैं, जबकि उनकी उपनिषदों में एक अल्लोपनिषद् भी है।’ इस पर मैंने गाँधीजी को भेजे अपने एक पत्र में लिखा – ‘आपका यह कहना ठीक नहीं है कि हिन्दुओं द्वारा मान्य उपनिषदों में एक अल्लोपनिषद् भी है। मेरे पास वर्तमान में उपलब्ध सभी 108 उपनिषदें हैं। उनमें अल्लोपनिषद् नाम की कोई उपनिषद् नहीं है। उसका अता-पता देने की कृपा करें।’ गाँधीजी ने उत्तर में लिखा – ‘मुझे मेरे एक मित्र ने बताया था कि उसने किसी पुस्तक की भूमिका में लेखक द्वारा उद्धृत प्रमाण के आधार पर ऐसा कहा था।’ मैंने प्रत्युत्तर में गाँधीजी को लिखा कि – ‘आप जैसे महापुरुष को, जिनकी वाणी या लेखनी से निकला हुआ एक-एक शब्द महत्त्वपूर्ण होता है, सुनी-सुनाई बातों के आधार पर ऐसा वक्तव्य नहीं देना चाहिए। अब मैं आपको अल्लोपनिषद् की जानकारी देता हूं। आप जानते हैं कि मुगल सम्राट् अकबर ने अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए ‘दीने इलाही’ के नाम से एक मत चलाया था। प्रत्येक मत का एक धर्मग्रन्थ भी होता है। अल्लोपनिषद् अकबर द्वारा बनवाये गये ऐसे ही धर्म ग्रन्थ का नाम है। अरबी और संस्कृत मिश्रित भाषा में रचित इस ग्रन्थ में अल्ला, ब्रह्म, ऋषि, मुहम्मद, अकबर, अथर्व, उपनिषद्, यज्ञ, अन्तरिक्ष, माया आदि शब्दों को देखकर आपातत: इसके हिन्दुओं और मुसलमानों में समानरूप से मान्य धर्मग्रन्थ होने का भ्रम हो सकता है, किन्तु वास्तव में इसका वेद, उपनिषद् आदि से कोई सम्बन्ध नहीं है ।’ (सत्यार्थ-भास्कर, भाग-2, पृ. 795-6)

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