रोमिला थापर से जेएनयू ने कहा कि योग्यता साबित करो

romila thapar

आरबीएल निगम

हिन्दुओं को बदनाम करने और उनके इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने के लिए कुख्यात इतिहासकार और जेएनयू की प्रोफेसर एमेरिटस रोमिला थापर को विश्विवद्यालय प्रशासन ने पद पर बने रहने के लिए अपना सीवी जमा करने को कहा है। उसके आधार पर प्रशासन यह तय करेगा कि प्रोफेसर एमेरिटस के तौर पर विश्वविद्यालय को उनकी सेवाएँ आगे चाहिए या नहीं। हिन्दू इतिहास में “आर्य आक्रमण सिद्धांत”, “हिन्दुओं ने बौद्धों को प्रताड़ित किया” जैसे झूठों को खुराक देने, अयोध्या में राम मंदिर के अस्तित्व को बेवजह झुठलाने की कोशिशों आदि के लिए जाना जाता है।

इतना ही नहीं चंद चाँदी के टुकड़ों की खातिर थापर जैसे तथाकथित इतिहासकारों ने मुग़ल आक्रान्ताओं को महान दर्शा कर भारत के वास्तविक इतिहास को धूमिल कर दिया और वास्तविक इतिहास की बात करने वालों को साम्प्रदायिक, फिरकापरस्त और गंगा-यमुना तहजीब का दुश्मन घोषित करते रहे। क्रांतिकारियों को आतंकवादी और छद्दम स्वतन्त्रता सैनानियों को महान स्वतन्त्रता सैनिक, जबकि किसी भी वास्तविक स्वतन्त्रता सैनानी ने भारत के स्वतंत्र होने पर सरकार से कोई अपेक्षा कभी नहीं की। मेरे आदरणीय ताऊजी प्रो नन्द किशोर निगम, कुवैत में भारत के प्रथम कॉउन्सिल जनरल और पाकिस्तान में ट्रेड कमिश्नर रहे। जो आजीवन कुंवारे रहे क्योकि जेलों में क्रांतिकारियों की पिटाई और अँधेरी कोठरियों में रहकर, कई बिमारियों के शिकार हो गए थे। एक दिन दिसम्बर महीने में उनसे क्रांतिकारियों के और बम-बारूद ठिकाने पूछने के लिए नंगा कर बर्फ की सिल्लियों पर लिटाकर लोहे की चैनों से पिटाई करते समय माथे के ऊपर लगी चेन से ऐसा घाव हुआ जो उनके साथ चिता में गया। 1972 में बांग्लादेश बनने उपरान्त तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी के हाथों शेख मुजीबुर रहमान की उपस्थिति में ताम्रपत्र से सम्मानित किया गया था क्योकि बांग्लादेश बनने में इस क्रांतिकारियों का भी गुप्त रूप से बहुत बड़ा योगदान था, इसी कारण जिस दिन स्वतन्त्रता सैनानियों को ताम्रपत्र से सम्मानित किया गया था, उस दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस, पंडित चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह आदि के जयकारों से सभागार गूंज उठा था।

स्मरण हो, जितने भी वास्तविक स्वतन्त्रता सैनानी थे, इतने आत्म-सम्मानी थे, आज़ादी की लड़ाई के बदले कभी सरकार से अपने आप किसी पुरस्कार की न कोई कामना की और न ही चमचागिरी।

सदमें में बुद्धिजीवी

मीडिया खबरों के मुताबिक जेएनयू प्रशासन की इस कार्रवाई के बाद से कई प्रोफेसर झटके में हैं। उनका कहना है कि प्रोफेसर एमेरिटस को पहले कभी भी सीवी जमा कर अपनी योग्यता साबित नहीं करनी पड़ी है। द टेलीग्राफ़ को दो प्रोफेसरों ने तो बताया कि एक बार जो इस पद पर काबिज़ हो गया, वह अमूमन जीवन-भर पद पर बना रहता है। खुद प्रोफेसर थापर 1993 से यानी 26 वर्षों से इस पद पर कायम हैं।

इतिहास के ही एक दूसरे जेएनयू वाले जानकार प्रोफेसर इरफ़ान हबीब ने ट्वीट किया कि इस प्रशासन से इसके अलावा क्या उम्मीद की जा सकती है।

इतिहास के नोबेल से मोदी पर हमले तक फैला है थापर का करिअर

जेएनयू में 1970 से 1991 तक शिक्षिका रहने वालीं प्रोफेसर थापर को अमेरिकी लाइब्रेरी ऑफ़ कॉन्ग्रेस का प्रतिष्ठित क्लूग प्राइज़ मिल चुका है, यह प्राइज़ उन विषयों के लिए दिया जाता है, जिन विषयों पर नोबेल नहीं मिलता है। लेकिन उन्हें हाल-फ़िलहाल में मोदी के खिलाफ अपनी किताब द पब्लिक इंटेलेक्चुअल इन इंडिया में लिखने के लिए अधिक जाना जाता है। इसके अलावा उन्होंने नयनतारा सहगल, अमिताव घोष, मरहूम गिरीश कर्नाड और खूँखार नक्सलियों को “बंदूक वाले गाँधीवादी” और पाकिस्तानी सेना को हिंदुस्तानी सेना से बेहतर बताने वाली लेखिका अरुंधति रॉय के साथ मिलकर मोदी को हराने की अपील वाला पत्र लोकसभा चुनावों के ठीक पहले जारी किया था।

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