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आर्य समाज डेल्टा में 51 कुंडीय महायज्ञ संपन्न : डॉ राकेश आर्य का किया गया सार्वजनिक अभिनंदन

ग्रेटर नोएडा । ( अजय आर्य ) यहां आर्य समाज डेल्टा वन में 51 कुंडीय यज्ञ का शानदार कार्यक्रम आयोजित किया गया । इस अवसर पर सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य का सार्वजनिक अभिनंदन भी संपन्न किया गया । कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित हुए आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष देवेंद्रपाल वर्मा ने कहा कि महर्षि दयानंद के सपनों के अनुसार भारत बनाने के लिए आर्य समाज को आज नए ढंग से देश की चुनौतियों का सामना करना होगा । उन्होंने कहा कि वैदिक संस्कृति को अपनाने से ही विश्वशांति का सपना साकार हो सकता है ।

इस अवसर पर यज्ञ के ब्रह्मा रहे आचार्य जयेंद्र ने अपने ओजस्वी भाषण में कहा कि आर्य संस्कृति हमारी पहचान है । उन्होंने कहा कि संपूर्ण विश्व में आज योग दिवस मनाया जा रहा है। जिससे संपूर्ण विश्व लाभान्वित हो रहा है । यदि आर्य संस्कृति को विश्व संस्कृति के रूप में आज यूएनओ मान्यता दे देती है तो सहज ही कल्पना की जा सकती है कि विश्व के सारे कलह , क्लेश व कटुता समाप्त हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि आज इतिहास को गौरवमई ढंग से लिखने का समय आ गया है। इसके लिए आर्य जनों को आगे बढ़कर कार्य करना होगा । आचार्य श्री ने कहा कि महर्षि दयानंद की कृपा से ही आज भारतवर्ष अनेकों कुरीतियों से मुक्त है ।बहनों को आज पढ़ने लिखने का अधिकार यदि मिला है तो यह महर्षि दयानंद की कृपा है । इसी प्रकार विधवा विवाह की छूट भी यदि समाज में मिली है तो वह भी महर्षि दयानंद की ही देन है । इस प्रकार के अनेकों उपकार भारत पर महर्षि दयानंद के हैं।ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी के एसीईओ श्री के के गुप्त ने अपने विद्वतापूर्ण संबोधन में कहा कि संस्कृत सारी भाषाओं की जननी है। विश्व की सारी भाषाएं इसी संस्कृत से निकली हैं ।उन्होंने कहा कि संस्कृत से प्यार करना मानव संस्कृति से प्यार करना है।

श्री गुप्त ने भारतीय वैदिक संस्कृति के अनेकों प्रेरक प्रसंगों व दृष्टांतों के आधार पर अपने संभाषण से उपस्थित लोगों का मार्गदर्शन करते हुए कहा कि हमें अपनी वैदिक संस्कृति के मर्म को समझना होगा , तभी हम मानव जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति कर सकते हैं। उन्होंने अपने अनुभवों का जिक्र करते हुए कहा कि मैंने सहर्ष संस्कृत में आदेश लिखना आरम्भ किया । उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत में आज भी कई ऐसे गांव हैं जहां पर सभी लोग संस्कृत में वार्तालाप करते हैं । यदि इसका विस्तार किया जाए तो यह भाषा फिर से अपने गौरवपूर्ण स्थान को प्राप्त कर सकती है ।

मैं समझता हूं कि इस महान कार्य को केवल आर्य समाज ही संपन्न करा सकता है।कार्यक्रम में डॉक्टर वीरपाल विद्यालंकार ने डॉ राकेश कुमार आर्य के सम्मान में अभिनंदन पत्र का वाचन किया और कहा कि उनके लेखन में इतना पवित्र चिंतन प्रस्तुत किया गया है कि उनकी प्रत्येक पुस्तक पर ही उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि मिलनी चाहिए। डॉ विद्यालंकार ने कहा कि भारत के इतिहास का गौरवपूर्ण लेखन करके डॉ राकेश आर्य ने सचमुच क्रांतिकारी कार्य किया है इसके लिए उनकी जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है।इस अवसर पर प्रोफेसर विजेन्द्रसिंह आर्य ने कहा कि भारतीय संस्कृति विश्व वन्य संस्कृति है । इसके बराबर की संस्कृति संपूर्ण विश्व में कहीं नहीं है । इसी संस्कृति ने कृण्वन्तो विश्वमार्यम् और वसुधैव कुटुंबकम की पवित्र परंपरा को अपनाया और संपूर्ण विश्व की सभी समस्याओं के समाधान के लिए इन दो सूत्रों के आधार पर कार्य करना आरंभ किया ।आज के विश्व की समस्या ही यह है कि वह भारतीय संस्कृति से दूरी बनाकर चलने में फायदा समझता है।इस अवसर पर अमर स्वामी प्रकाशन गाजियाबाद के प्रतिष्ठाता श्री लाजपतराय अग्रवाल ने भी अपने विचार व्यक्त किए ।

वैदिक धर्म से प्रभावित हुई मुस्लिम महिला शन्नो फारूकी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें आर्य संस्कृति को समझकर बहुत सुकून मिला है और अब वह चाहेंगी कि उनका शेष जीवन इसी पवित्र संस्कृति को अपनाने में व्यतीत हो ।आर्य संस्कृति प्रचार प्रसार न्यास के संस्थापक अध्यक्ष श्री विपिन आर्य ने कहा कि मुझे आज के कार्यक्रम में उपस्थित हुए लोगों के आशीर्वाद से बहुत असीम ऊर्जा प्राप्त हुई है और मैं इस ऊर्जा का सदुपयोग करते हुए राष्ट्र समाज एवं वैदिक संस्कृति के उत्थान व उन्नयन के लिए आगे भी कार्य करता रहूंगा ।

इस अवसर पर वीरेंद्र शास्त्री , विदुर आर्य आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए । कार्यक्रम में श्री रामनिवास आर्य एडवोकेट , राकेश नागर एडवोकेट , श्रीमती ऋचा आर्या , श्रीमती शकुंतला आर्या , श्रीमती पूर्णिमा , श्री मूलचंद शर्मा , श्री रामजस आर्य , सरपंच रामेश्वरसिंह , श्री राजावत आदि सैकड़ों गणमान्य लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता रामेश्वर सरपंच ने की । जबकि कार्यक्रम का सफल संचालन डॉक्टर वीरपाल विद्यालंकार एवं डॉ राकेश कुमार आर्य द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।

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