बृहस्पति आगम में एक श्लोक है,
“हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्, तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते”। जो स्पष्ट कहता है कि “हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश “हिन्दुस्थान” कहलाता है।
इसके अतिरिक्त “विष्णु पुराण” में इसी “भरत भूमि” पर जन्म लेने को लालायित देवतागण भी इसका यश गान करते नहीं अघाते। श्लोक है,
“गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारत भूमिभागे,
स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूय: पुरुषा: सुरत्वात्।”
अर्थात देवगण निरन्तर यही गान करते हैं कि जिन्होंने स्वर्ग और मोक्ष के मार्ग पर चलने के लिए भारतभूमि में जन्म लिया है, वे मनुष्य हम देवताओं की अपेक्षा अधिक धन्य तथा भाग्यशाली हैं।
इतनी महत्पूर्ण, पुण्यभूमि होने के कारण यह सदैव असुरों की भी प्रिय भूमि रही है। इसकी प्रमाणिकता पुराणों से मिलती है। युग बदला, समय बदला; लेकिन, असुर प्रवृत्ति के लोगों की इस देव भूमि को कब्जाने की लालसा कभी शांत नहीं हुई। आधुनिक युग में भी यही प्रवृत्ति नए स्वरुप में हमें दिखाई दे रही है।
रामायण में प्रसंग आया है कि असुर, राक्षस मिल कर मनुष्यों के ईश्वर कार्यों ( पूजा पाठ, हवन यज्ञ आदि) को किस प्रकार दूषित, खंडित किया करते थे। किस प्रकार राक्षस पवित्र जल, देवस्थान, हवन कुंड, पवित्र प्रसाद में रक्त, मांस, मदिरा और हड्डियां मिला दिया करते थे। किस प्रकार धार्मिक मनुष्यों को प्रताड़ित किया करते थे। तब उन्हें अपनी भूमि छोड़कर जाने को विकास किया गया। तब भगवान राम और लक्ष्मण को गुरु विश्वामित्र अपने साथ धर्मनिष्ठ मनुष्यों की रक्षा के लिए वन ले गए। शस्त्र शिक्षा लेने के साथ श्री राम और लक्ष्मण जी ने असुरों का वध कर देव भूमि को धर्मनिष्ठ मनुष्यों के लिए पुनः प्राप्त किया।
ऐसा ही कुछ आज भी पवित्र देवस्थानों पर कुछ असुर प्रवृत्ति के मजहबी लोगों द्वारा जा रहा है। जिसकी वीडियो समय पर हमारे सामने आती हैं। कहीं भोजन में गौ मांस मिलाया जा रहा है। कहीं पवित्र नदियों के किनारे पशु काटे जा रहे हैं, जिससे उन मृत पशुओं का रक्त नदियों के पवित्र जल में मिल रहा है। कहीं मंदिर में भगवान के पवित्र प्रसाद में मृत पशुओं की चर्बी मिलाई जा रही है। इन सबसे देव भूमि की दैवीयता प्रभावित होती है। उसका दैविक आभामंडल (ओरा) खंडित होता है। जो कहीं न कहीं आसुरी शक्तियों को बल प्रदान कर्ता है । इसकी पुष्टि हमारे शास्त्र भी करते हैं। यही कारण है शास्त्रों ने दैनिक यज्ञ और सामुहिक सत्संग को महत्पूर्ण स्थान दिया। जिससे दैविक शक्तियों को बल मिलता है। इसी क्रम में कहीं पूरे के पूरे देवस्थानों की भूमि पर वक्फ द्वारा अल्लाह की सम्पत्ति होने का दावा ठोका जा रहा है। ध्यातव्य है, जब ईश्वर और अल्लाह एक है तो फिर क्यों अल्लाह द्वारा ईश्वर की भूमि पर आए दिन दावा ठोका जा रहा है?
वास्तव में भारत एक प्रभावशाली, वैभवशाली देश रहा है। जिसे सोने की चिड़िया, विश्व गुरु, आध्यात्मिक शांति वाला देश माना जाता रहा है। आज भी दुनियाभर के लोगों के लिए भारत आध्यात्मिक शांति के लिए एकमात्र साधना स्थल है। जिस पर अपना कब्जा करने का सपना सदियों से विदेशी शक्तियों का रहा है। ये वो शक्तियों हैं जिन्होंने बड़ी-बड़ी प्राचीन सभ्यताओं को नष्ट कर उसके भस्मावशेषों पर अपनी सभ्यता के भवन खड़े किए हैं। इकबाल ने इसी आधार पर कहा था-
“यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा, सब मिट गए जहाँ से,
बाकी मगर है अब तक, नामों निशाँ हमारा,
कुछ तो बात है की हस्ती, मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ऐ-जहां हमारा।”
आज भी उन विदेशी मज़हबी शक्तियों के लिए यह एक चुनौती है कि वे भारत को आखिर कब तक इस्लामी या ईसाई मजहब के झंडे तले ले कर आ पाएंगे। मजहबी लोग भारत के खिलाफ गज़वा-ए-हिंद के अपने लक्ष्य में लगे हुए हैं और उसके निमित्त जिहाद के भिन्न-भिन्न स्वरुप हमें दिखाई देते है। इसी में से एक है ज़मीन जिहाद। इसी से जुड़ा है “पवित्र भूमि जिहाद”। जहां ज़मीन जिहाद में भारत में किसी भी ज़मीन पर मस्जिद- मजार बना कर उस पर वक्फ के माध्यम से जिहादी कब्ज़ा कर लिया जाता है। वहीं पवित्र भूमि जिहाद के तहत साज़िश और रणनीति बनाकर भारत के पवित्र धार्मिक स्थलों के आसपास मस्जिदों, मज़ारों का निर्माण करके देव भूमि पर अपना प्रभुत्व बनाने का प्रयास किया जा रहा है। यह प्रयास सालों से किया जा रहा है। कहीं हिन्दू मुस्लिम सौहार्द बढाने के नाम पर मंदिरों के बराबर में मस्जिद-मजार बनाई गई हैं, तो कहीं उनके ठीक सामने।
अब प्रश्न य़ह है ऐसा क्यों किया जा रहा है? प्रतीत होता है, ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि सनातन की प्रभावशाली और प्राचीन संस्कृति और सभ्यता पर इस्लाम का दावा किया जा सके। ओम यानी अल्लाह, भगवान शंकर को आदि पैगम्बर, राम को इमाम-ए-हिंद बतलाना इसी साज़िश का हिस्सा है। दूसरों की संस्कृतिक और धार्मिक विरासत पर दावा करना इस्लामी इतिहास रहा है। इससे यह अपने को अधिक प्राचीन सिद्ध कर अपनी प्रमाणिकता, वरिष्ठता और मानव सभ्यता में अधिक अनुभवी होने का दावा करना चाहता है। ऐसा यह यहूदी और ईसाई मजहब के धार्मिक चरित्रों के साथ भी कर चुका है।
आज जब हिन्दुओं में जागृति आ रही है, अवैध और साज़िशन बनाई मस्जिदों का विरोध सामने आ रहा है। इसके साथ ही सामने आ रही हैं वो करतूतें जो विधर्मियों द्वारा की जाती हैं। हिमाचल प्रदेश से ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां महिलाओं ने बताया है; कि कैसे मस्जिदों में शौच करने वाले पुरुष उन्हें देख कर लुंगी उठा देते थे, कि कैसे वे दरवाजा खुला रख कर शौच करते थे। विरोध करने पर उन महिलाओं और उनके परिवार वालों को धमकाया जाता था। बाजारों में कैसे हिन्दू दुकानदारों से जानबूझ कर विवाद किया जाता है ताकि त्रस्त होकर ऐसे लोग स्वयं ही मकान- दुकान बेच कर चले जाएँ। यह ऐसी रणनीति है जिसमें हिन्दू मुस्लिम विवाद भी नहीं होता और परिणाम उनके अनुकूल आ जाता है। ऐसे मामलों को बड़ी आसानी से असामाजिक तत्वों या व्यक्तिगत विवाद की संज्ञा दे दी जाती है।
अब संतोष की बात यह है कि अधिकतर हिन्दुओं को यह समझ आ गया है; कि “सभी धर्म समान हैं ” का ढोल कितना खोखला है। हिन्दू मुस्लिम भाई चारे के नाम पर “ईमान वाले ” लोग कैसे हिन्दुओं को चारा बना रहे हैं।
कि कैसे सेक्युलरिज्म और हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द के नाम पर इस्लाम और जिहाद को बढ़ावा दे कर हिन्दुत्व को समाप्त किया जा रहा है।
पहाड़ पर हिन्दुत्व के समर्थन में संगठित हिन्दुओं के जनान्दोलन, शेष हिन्दुओं के लिए प्रेरणा का काम कर रहे है। जो लोग कहते थे कि पहाड़ की जवानी उसके काम नहीं आती, वे यह मानने को मज़बूर हैं कि यह जवानी संगठित हो कर, हिन्दुत्व की एक नई कहानी लिख रही है। वास्तव में देव भूमि को बचाने के लिए राजनीतिक दलों को एक मत होकर जनता का साथ देना चाहिए ताकि पवित्र पहाड़ों की पवित्रता, संस्कृतिक और पहचान कायम रह सके। क्योंकि संविधान सेक्युलरिज्म के नाम पर देश की प्राचीन संस्कृति-सभ्यता को मिटा डालने की आज़ादी नहीं देता, लेकिन अपनी संस्कृति का संरक्षण करना हमारा मूलभूत कर्त्तव्य अवश्य बताता है।
युवराज पल्लव
धामपुर, बिजनौर।
8791166480
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