मैक्सफोर्ट विद्यालय द्वारिका में हिंदी पखवाड़ा हुआ संपन्न : शिवाजी ,सावरकर और आर्य समाज का रहा है हिंदी विकास में विशेष योगदान : डॉ आर्य
नई दिल्ली। ( नागेश कुमार आर्य ) यहां स्थित मैक्सफोर्ट विद्यालय द्वारिका में हिंदी पखवाड़ा संपन्न हुआ। इस अवसर पर भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता और सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य ने मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि हिंदी ,हिंदू, हिंदुस्तान और भारत, भारती, भारतीय तथा आर्य, आर्य भाषा और आर्यावर्त इन सब का समीकरण एक ही बनता है। उन्होंने कहा कि शिवाजी महाराज ने अपने हिंदवी स्वराज को स्थापित करते समय संस्कृतनिष्ठ आर्य भाषा को आगे बढ़ाने का प्रशंसनीय कार्य किया था। वास्तव में उनका यह कार्य ही भविष्य में वर्तमान हिंदी भाषा के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ। उन्होंने कहा कि शिवाजी महाराज ने अपने शासनकाल में 1380 अरबी और फारसी के प्रशासनिक शब्दों के स्थान पर आर्य भाषा के शब्दों का प्रयोग करना आरंभ किया था। उन सबको उन्होंने संस्कृत से लेकर स्थापित किया था ।इसके लिए उन्होंने एक अलग मंत्रालय गठित किया था। इसके साथ-साथ इन शब्दों के लिए ‘ राजनीति व्यवहार कोष ‘ नाम की एक पुस्तक भी लिखवाई थी।
शिवाजी महाराज की इसी शब्द परंपरा को आगे चलकर क्रांतिवीर सावरकर जी ने अपनाया। उन्होंने दिनांक, क्रमांक, महापौर ,वेतन , नगरपालिका, महानगरपालिका, सभासद, पार्षद जैसे अनेक शब्दों को संस्कृत हिंदी भाषा को दिया। इसके पश्चात सावरकर जी की इस शब्द परंपरा का आर्य समाज ने और भी अधिक गंभीरता से पालन करना आरंभ किया। जिससे हिंदी के उत्कृष्ट साहित्य का सृजन हुआ।
डॉ आर्य ने कहा कि जगदीश आजाद हुआ तो 12 सितंबर 1949 को भारत की संविधान सभा में राजभाषा संबंधी विधेयक प्रस्तुत किया गया था । उसी दिन डॉ अंबेडकर ने भारत की राजभाषा को लेकर कहा था कि संस्कृत को राजभाषा और राष्ट्र भाषा का दर्जा मिलना चाहिए। उनकी इस प्रकार की मांग का समर्थन उस समय दक्षिण के कई सांसदों ने किया था। यद्यपि नेहरू जी संस्कृत के समर्थक नहीं थे। उन्होंने हिंदी को देवनागरी लिपि देने पर तो सहमति व्यक्त की , परंतु उसमें उर्दू, अरबी, फारसी और सभी भाषाओं की शब्दावली को भरकर एक ऐसी खिचड़ी भाषा बनाने का बेतुका प्रयास किया जिसकी अपनी कोई व्याकरण नहीं होगी।
उन्होंने कहा कि हिंदी अपने आप में एक वैज्ञानिक भाषा संस्कृत से निकली है। वास्तव में हिंदी शब्द भी हिंदी के लिए भारतीय शब्द नहीं है। मध्यकालीन कवियों ने इसे भारती के नाम से पुकारा है। जबकि प्राचीन काल में आर्य भाषा अर्थात संस्कृत के नाम से इसे पुकारा जाता था। हिंदी, हिंदवी या हिंदुस्तानी – ये विदेशी शब्द हैं। भारतीय भाषा के शब्द नहीं हैं।
आज हमें इस बात का गर्व है कि विश्व की सर्वाधिक बोली समझे जाने वाली तीन भाषाओं में हिंदी की गिनती है। भारतवर्ष में भी सबसे अधिक बोली समझी जाने वाली भाषा हिंदी ही है।
इस अवसर पर विद्यालय की प्राचार्या श्रीमती दीपिका शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि हमें अपनी राष्ट्रभाषा पर गर्व होना चाहिए। प्रत्येक विद्यार्थी को अपने दैनिक जीवन में इसका अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि अपनी भाषा को अपनाने से संस्कार प्रबल होते हैं। उन्होंने कहा कि आज सबसे बड़ी समस्या संस्कारों को लेकर ही है । ये हमें अपनी राष्ट्रभाषा के माध्यम से ही प्राप्त हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि अन्य भाषाओं को सीख जा सकता है, परंतु अपनी राष्ट्रभाषा की उपेक्षा करके ऐसा करना आत्मघाती होगा।
इस अवसर पर विद्यालय विद्यार्थियों और छात्राओं ने अपने कई कार्यक्रम प्रस्तुत किये जो राष्ट्रभाषा को समर्पित रहे। जिन्हें देखकर सभी गदगद हो गए । कार्यक्रम का सफल संचालन हिंदी विभाग की अध्यक्ष श्रीमती रुचिका सिंघल द्वारा किया गया।