ओ३म् भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।
ओ३म् -हे सर्व रक्षक परमेश्वर आप मेरी रक्षा कर रहे हो आपकी रक्षा से ही सुरक्षित हूँ कृपा मेरी रक्षा करते रहो।
भू -आप प्राण को देने वाले हो
भव- दुख दुर करने वाले
स्व- सुखों व आनन्द को देने वाले हो
तत् – वह आप मेरे समस्त दुखो को दूर करके सुखों को प्राप्त कराओ
स्वितु:- आप समस्त ब्रह्माण्ड को बनाने वाले सृष्टि कर्ता हो मुझे पैदा करने से आप मेरे माता पिता हो
वरेणयम् :- मैं आपको वर्ण व धारण करता हूँ
भर्गो – आप काम क्रोध लोभ मोह अंहकार से रहित पवित्र हो
देवस्य – देव स्वरूप हो
घी मही – आपके इस स्वरूप का मैं ध्यान करता हूँ
धियो- आप बुद्धी
यो न: हमारी को
प्रचोदयात – प्रकाशित करें जिससे पाप व दुर्गुणो से हट कर नेक रास्ते पर चले और हे प्रभू ! हमारी बुद्धी उत्तम गुण कर्म स्वभाव में प्रेरित कर दो।
प्रार्थना :- हे सर्वरक्षक प्रभू ! आप हर समय हमारी अनन्त प्रकार से रक्षा कर रहे हो आप कृपा हमारी रक्षा करते रहें। आप निरंतर प्राण प्रदान कर रहे हो जिससे मैं आपकी कृपा से जीवत हूँ। प्रभू यह प्राण सदा मेरे साथ हों लेकिन आप तो प्राणो से भी प्रिय हो। आप दुख विनाशक हो आप मुझ भक्त के समस्त दुख दूर कर दो। हे प्रभू आप आनन्द से परिपूर्ण हो मुझे भी आननदित कर दो सुखी कर दो। प्रभू आप समस्त ब्रह्माण्ड के सृष्टि कर्ता हो मेरे माता पिता हो। आप पवित्र हो निर्मल हो आप काम क्रोध लोभ मोह अंहकार से रहित हो समस्त मालिनताओं से रहित शुद्ध स्वरूप हो। हे देव ! आप दिव्य गुणो से परिपूर्ण हो। आप अनन्त ज्ञान ,सामर्थ, करूणा और दया स्वरूप हो। आपके इस स्वरूप को मैं वर्ण अर्थात आपनी आत्मा में धारण कर रहा हूँ। यह जो प्रभू आप हमारी बुद्धियों को उत्तम गुण कर्म स्वभाव में प्रेरित करो ताकि मैं नेक रास्ते पर चलूँ। यही मेरे जीवन का लक्ष्य है उदेश्य है।ताकि इस संसार में रहते हुए सांसारिक उच्च सुख व आनन्द रूपी अमृत को पा सकूँ। प्रभू ! आप मुझे देख सुन व जान रहे हो आपकी उपस्थिती में उपस्थित होकर आपका ध्यान कर रहा हूँ आप मेरी इस प्राथना को स्विकार करें, स्विकार करें।