‘विशेष ‘ -भाव जब अश्रु बनते हैं:-
हृदय को संवेदना,
जब बनती हैं भाव।
नयनों में अश्रु बनें ,
मिट जाता दुर्भाव॥2719॥
भाव कर्म की आत्मा है, कैसे ?
कर्म की आत्मा भाव ,
इसके बहु आयाम।
हाथ उठे प्रहार को,
कभी करे प्रणाम॥2720॥
तत्त्वार्थ :- इस संसार में प्राय यह देखा जाता है मन, वचन और कर्म के पीछे कर्त्ता का भाव क्या था, जैसे व्यक्ति के हाथ तो एक जैसे ही है कभी वह शत्रु पर प्रहार करने के लिए उठता है, तो कभी वह अपने श्रध्देय के लिये हाथ जोड़कर प्रणाम करने के लिये उठता है। हाथ दोनों अवस्था में उठता है किन्तु पहली क्रिया में शत्रुता का भाव है जबकि दूसरी क्रिया में श्रद्धा का भाव है। अत:स्पष्ट हो गया कि कर्म की आत्मा भाव होता है।
क्रमशः