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डॉ डी के गर्ग
विवाह पूर्व जन्म पत्री मिलाने का रिवाज सिर्फ भारत में ही है ,आज भी पढ़ी लिखी जनता अनपढ़ पंडितों के जाल से बहार नहीं निकल पाती है ,ये पंडित जन्म तिथि और समय देखकर ये तो बता देते है की कुल ३६ में २४ गुण मिल गए लेकिन ये कभी नहीं बताया जाता की कौन कौन से से १२ गुण नहीं मिले। पंडित को ये भी नहीं मालूम कि ये 36 गुण कौन कौन से है? सिर्फ ३६ गुण की रट लगा राखी है।
मेरा कहना है की बिल्कुल ३६ गुण मिलाये जाने चहिये , जो की अच्छे गृहस्थ के लिए अति आवश्यक है। हमारी कोई भी सामाजिक परम्परा अवैज्ञानिक नहीं है ,परन्तु स्वाध्याय के अभाव और पाखंड के प्रकोप ने वास्तविकता पर पर्दा दाल दिया है।
ये 36 गुण क्या है और किस प्रकार होने चाहिए ?
सच में यदि देखा जाये तो मनुष्य के गुण – अवगुणों को गिना नहीं जा सकता है. फिर भी समाज मे प्रचलित विवाह संबंधों के लिए इस मान्यता के आधार पर यदि केवल 36 गुणों की ही बात की जाए तो मुख्य रूप से ३६ गुणों की बात की जाये तो ये होने चाहिए –
1 .पांच “`ज्ञानेद्रियां -आंख,नाक, कान ,जीभ,त्वचा,
ये इन्द्रियां ठीक होनी चाहिए. दोनों आंखे, कान, सफेद दाग की बीमारी ना हो आदि.
२ पांच कर्मेन्द्रियां- गुदा,लिंग,हाथ,पैर,वचन
ये कर्मेन्द्रियां है जो कि स्वस्थ अवस्था में हो, वचन से मृदु भाषी हो, हाथ पैर कमजोर ना हो, कार्य शील हो आदि
3 चार प्रकार के बल होते है – साम , दाम, दंड और भेद
ये हर मनुष्य के जीवन मे सफलता का आधार है.
4.बुद्धि के यह आठ अंग हैं- सुनने की इच्छा, सुनना, सुनकर धारण करना, ऊहापोह करना, अर्थ या तात्पर्य को ठीक ठीक समझना, विज्ञान व तत्वज्ञान।
ये गुण बातचीत के देखे परखें जाते हैं.
5.राजनीति के चौदह गुण हैं– देशकाल का ज्ञान, -ढ़ता, कष्टसहिष्णुता, सर्वविज्ञानता, दक्षता, उत्साह, मंत्रगुप्ति, एकवाक्यता, शूरता, भक्तिज्ञान, कृतज्ञता, शरणागत वत्सलता, अधर्म के प्रति क्रोध और गंभीरता।
वर्तमान स्थिति-
प्रेम विवाह में तो सीधे विवाह किया जाता है, इसमें खानदान, उम्र, या कोई योग्यता का प्रश्न नहीं उठता. पूरा परिवार इस निर्णय को मोहर लगाने के लिए बाध्य है। लेकिन जहा प्रेम विवाह नहीं है और पंडित से जन्म पत्री मिलवाने का रिवाज है ,परन्तु इनकी जन्म पत्री नहीं मिल रही है तो इस प्रथा के चलते योग्य वर वधू शादी के बंधन मे बंधने से रह जाते हैं।
विवाह क्या है –विवाह मानव-समाज की अत्यंत महत्वपूर्ण प्रथा या समाजशास्त्रीय संस्था है। यह समाज का निर्माण करने वाली सबसे छोटी इकाई- परिवार-का मूल है। शादी हमारी सामाजिक व्यवस्था का एक हिस्सा है जिसमें परिवार का समुचित रूप से निर्माण होता है और एक-दूसरे को व्यापक सुरक्षा मिलती है।
1.दोनों आत्माएं इस जन्म में पति पत्नी के रूप में जीवन यात्रा को कार्मिक यात्रा एवं अनुभव के रूप में जीने का आध्यात्मिक निर्णय लेते हैं।
२ कितने धर्म कुंडली मिलान नहीं करते हैं परन्तु वैवाहिक जीवन सुखी है। उदहारण लें तो सिख धर्म का लें जहां विवाह विच्छेद ना के बराबर है। प्रेम विवाह , बहुत से सफल जीवन जी रहे हैं, मै ऐसे कई दंपतियों को जनता हूं।
3. कुंडली मिलान के बाद भी, विवाह विच्छेद, लघु विवाह अवधिय वैधव्य या मनमुटाव के कारण अलग रहना, बिना विवाह विच्छेद किए, जीवन साथी का स्वास्थ्य, निसंतान इत्यादि के बहुत से दिष्टांत हमारे समाज में उपलब्ध हैं।
३ यदि आप खुद पर विश्वास करते हैं और आपको जीवन के सभी उतार-चढ़ाव का सामना करने के लिए पर्याप्त धैर्य होना चाहिए।
४ सच ये है की यह किसी की जन्म कुंडली देखने मात्रा से मालूम नहीं चल सकता। मनुष्य वास्तव में एक अद्भुत प्राणी है जिसका मासूम चेहरा भी दम्भ और दुराचार वाला हो सकता है और डरावना चेहरा वाला व्यक्ति मोमल ह्रदय वाला भी ।
5 जन्म कुंडली किसी का भविष्य नहीं बता सकती. इसलिए दो परिवारों के मध्य सम्बंध स्थापित करने से पूर्व बुजुर्ग का अनुभव अत्यंत महत्वपूर्ण है।
६ सम्बन्ध अक्सर बराबरी वाले परिवार में करे , आपसे अत्यधिक धनी परिवार में आप उपहास का कारण बन सकते है ,सुख दुःख में सिर्फ औपचारिकता रह जाती है और आप फ़ोन भी करेंगे तो समधी सोचेगा की शायद मदद मांगने के लिए किया है और वह अति व्यस्त होने का नाटक करेगा। इसलिए रिश्तेदारी हमेशा बराबर के लोगो में ही अच्छी रहती है ,जो एक दुसरे के पूरक और मित्र की भांति सम्मान करे , समान विचारधारा वाले हो ,अंधविश्वासी ना हो ,लम्बी-लम्बी हांकने वाले ना हो ,खुश मिजाज -मिलता जुलता परिवार हो ।