इंद्र विद्यावाचस्पति ने ” आर्य समाज का इतिहास “- प्रथम भाग , में महर्षि दयानंद को विष देने के कारणों पर विचार करते हुए कुछ विशेष लिखा है । जिसके अनुसार एक प्रत्यक्षदर्शी ने कहा था — ” श्री डीपी जोहरी गर्मी के दिनों में जोधपुर गए थे । वह पानी की तलाश में तालाब के किनारे पहुंचे और वहां उन्होंने एक 70 वर्ष के बुड्ढे आर्य समाजी को संध्या करते देखा । उन्होंने संध्या समाप्त की तो श्री जौहरी ने उनसे स्वामी जी की मृत्यु के संबंध में बातचीत की। जौहरी जी के प्रश्न का उत्तर देने से पहले वृद्ध महाशय ने उनसे यह शपथ ले ली कि उनका नाम प्रकाशित नहीं किया जाएगा। यह शपथ लेकर जो कहानी वृद्ध महाशय ने जौहरी जी को सुनाई उसका संक्षेप यह है कि जिन दिनों महर्षि जोधपुर में थे , अंग्रेजी सरकार की ओर से रियासत के अत्यंत आवश्यक अंतरंग विषय पर एक चिट्ठी प्राप्त हुई । जिसका उत्तर शीघ्र मांगा गया था । रियासत की काउंसिल अभी उस पर विचार कर रही थी कि महाराजा ने उस चिट्ठी की चर्चा महर्षि से कर दी । महर्षि ने जो सलाह दी महाराजा ने उसके अनुसार ही उत्तर भेजा । उत्तर ऐसा चतुरतापूर्ण था कि उससे इंडिया ऑफिस चकित हो गया। वहां से रेजिडेंट को लिखा गया कि जिस दरबार में इस पत्र पर चर्चा हुई उसकी तस्वीर भेजी जाए । जिससे पता लग सके कि यह उत्तर किसके दिमाग की उपज है ? उससे भी जब इंडिया ऑफिस की जिज्ञासा शान्त न हुई तो महाराजा से सीधा पूछा गया और महाराजा ने सरलता से स्वामी जी का नाम लिख भेजा । विलायत से जनरल की यह कहकर भर्त्सना की गई कि स्वामी दयानंद जैसे राजद्रोही को प्रचार करने के लिए खुला क्यों छोड़ा गया ? यह वृत्तांत सुनाकर वृद्ध ने कहा कि इस घटना की रोशनी में यह समझना कठिन नहीं कि स्वामी जी को विष पिलाने वाले कौन थे और सरकारी डॉक्टरों ने उनका उपचार ठीक से क्यों नहीं किया ? ”
हमने इस घटना का उल्लेख यहां पर इसलिए किया है कि आज फिर महर्षि के एक शिष्य के साथ विष देने की एक ऐसी घटना हुई है । जिससे भारतीय धर्म व संस्कृति के प्रति थोड़ा सा भी संवेदनशील हृदय कराह उठा है । अपना देश , अपने लोग ,अपना शासन , अपना सब कुछ – इसके उपरांत भी महर्षि दयानंद के शिष्य आचार्य बालकृष्ण को यदि विष दिया जा रहा है या उनके प्राण लेने का प्रयास किया जा रहा है तो मानना पड़ेगा कि ‘ जयचंद ‘ अभी मरा नहीं है ?
खंजर भी चलाए अपनों ने
जहरें भी पिलाईं अपनों ने ,
अपनों के ही एहसां क्या कम हैं ,
गैरों से शिकायत क्या होगी ?
भारत में भारतीयता की बात करने वाले या वैदिक संस्कृति के ध्वजवाहक बनने वाले हर किसी महर्षि दयानंद, स्वामी श्रद्धानंद , बाबा रामदेव और आचार्यबालकृष्ण के साथ ऐसे षड्यंत्र क्यों होते हैं कि उन्हें रास्ते से हटाने का ही पूरा प्रबंध कर लिया जाता है ? आज इसी विषय पर सोचने की आवश्यकता है। वास्तव में महर्षि दयानंद के पीछे उस समय का पूरा शासक वर्ग , विदेशी सत्ता , विदेशी लोग , विदेशी मिशनरी और पूरा का पूरा प्रशासनिक तंत्र पड़ा हुआ था । जिसमें उस समय के मुस्लिम वर्ग की बहुत बड़ा संख्या भी उनके विरुद्ध थी। यही कारण था कि जब महर्षि दयानंद को मारने के दृष्टिकोण से अंतिम बार कांसा घोलकर दिया गया तो उनका उपचार करने का दायित्व एक मुस्लिम वैद्य को दिया गया ।
हमको यह कारण बता दिया गया कि इस सारे घटनाक्रम के पीछे एक ‘ नन्ही जान ‘ नाम की वेश्या थी । संभवत: नन्ही जान का भी किसी सीमा तक योगदान रहा हो , परंतु महर्षि दयानंद की मृत्यु के वास्तविक कारणों को हमारी आंखों से ओझल कर दिया गया और हमने अपनी परंपरागत मूर्खता का परिचय देते हुए विदेशियों के द्वारा लिखे गए इतिहास वृत्तांत को सत्य मानकर इसी लकीर को पीटना आरंभ कर दिया कि महर्षि दयानंद की मृत्यु नन्हीं जान के कारण हुई थी । हमने इतिहास के सच को न तो पढ़ने का प्रयास किया और न ही समझने का प्रयास किया। यहां तक कि आर्य समाज के विद्वानों ने भी महर्षि दयानंद , स्वामी श्रद्धानंद और अन्य अनेकों आर्य सन्यासी विद्वानों के बलिदानों को इतिहास में समुचित स्थान देने का प्रयास नहीं किया । जिन लोगों ने ऐसा प्रयास किया , उनके प्रयास को आर्य समाज ने ही प्रचार – प्रसार देकर जनसामान्य तक पहुंचाने का प्रयास तो कतई नहीं किया।
कहने का अभिप्राय है कि जिस देश में अपने महापुरुषों के साथ होने वाले अन्याय , अत्याचार ,छल – छंद आदि को लोग मौन रहकर सहन कर जाते हैं और विदेशियों के द्वारा लिखे गए इतिहास वृत्तांत को सत्य मान लेते हैं , उस देश में मानो कि राजनीतिक , सामाजिक और मानसिक चेतना का अभाव होता है। यही कारण है कि उस देश के प्रत्येक महर्षि दयानंद के साथ और प्रत्येक बाबा रामदेव के साथ वही छल -छंद रचे जाएंगे जो उस देश के इतिहास का एक अटूट अंग बन चुके हैं। राष्ट्र भक्तों के साथ सदा अन्याय को प्रोत्साहित करने का काम स्वतंत्र भारत के इतिहास में कांग्रेस , कम्युनिस्टों और इन्हीं की विचारधारा में विश्वास रखने वाले सेकुलरों ने किया है।
जिन्हें हम हार समझे थे गला अपना सजाने को।
वही अब नाग बन बैठे हमारे काट खाने को ।।
यह सत्य है कि महर्षि दयानंद के मिशन को आगे बढ़ाने का जितना भागीरथ प्रयास आज के समय में स्वामी रामदेव ने किया है , उतना किसी अन्य ने नहीं किया । आज बाबा रामदेव के मिशन को धत्ता लगाने के लिए उतने ही बड़े स्तर पर सत्ता षड्यंत्र और विदेशी धर्माधीश , मठाधीश , बड़ी-बड़ी कंपनियों के धनाधीश विभिन्न प्रकार के षडयंत्रों में सम्मिलित हो रहे हैं , जितने कभी महर्षि दयानन्द के विरुद्ध हुए थे।
इसमें दो राय नहीं कि केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार के आने के पश्चात बाबा रामदेव और उनके मिशन के लिए खतरा कुछ कम हुआ । परंतु जिन लोगों को बाबा रामदेव से खतरा उत्पन्न हुआ , उनकी ओर से आक्रमण समाप्त नहीं हुए , अपितु सारे आक्रमण मौन रूप में गुरिल्ला युद्ध में परिवर्तित हो गये । जिनका परिणाम यह हुआ है कि आचार्य बालकृष्ण जैसे संस्कृति पुत्र को विष दिया गया है।
हमने सदा की भांति षड्यंत्र और खतरे को कम करके आंकने का प्रयास किया है ।यह अत्यंत दुर्भाग्य का विषय है कि इस घटना को गंभीरता से मीडिया के द्वारा भी नहीं लिया गया है । यदि यही घटना किसी संस्कृति नाशक फिल्मी हीरो के विरुद्ध हो गई होती तो अभी तक आसमान को सिर पर उठा लिया गया होता । क्योंकि इस देश का परिवेश ही ऐसा बनाया गया है कि संस्कृतिरक्षकों पर होने वाले हमले को सहिष्णुता के नाम पर सहन करो और संस्कृतिभक्षक पर होने वाले हमलों को असहिष्णुता कहकर प्रचारित करने का नाटक रचो ।
कबूतर बिल्ली को आती हुई देखकर आंखें बंद कर लेता है । वह यह सोच लेता है कि अब शायद तू बिल्ली को दिखाई नहीं दे रहा ? – हमने भी इतिहास में आने वाले संकटों को इसी ‘ कबूतरी धर्म ‘ से देखने का प्रयास किया है । आज मीडिया ‘ कबूतरी धर्म ‘ का निर्वाह कर रही है , सत्ता ‘कबूतरी धर्म ‘ का निर्वाह कर रही है , समाज ‘कबूतरी धर्म’ का निर्वाह कर रहा है । यह अलग बात है कि बिल्ली का झपट्टा इस बार सही नहीं लगा है । सचमुच समय आ गया है जब इस ‘ कबूतरी धर्म ‘ को त्याग देने की आवश्यकता है।
तू इधर उधर की बात ना कर
यह बता कि काफिला क्यों लुटा ?
मुझे रह जनों से नहीं गरज
तेरी रहबरी का सवाल है ।
यदि आर्य समाज को अपने महर्षि दयानंद की हत्या के कारणों का ज्ञान होता और वह उसे गंभीरता से लेकर इतिहास में सही ढंग से स्थापित कराने में सफल हो गया होता तो निश्चय ही आज बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के साथ होने वाले इस प्रकार के घटनाक्रमों को देखने का हमें अवसर ही न मिलता।
हमने इतिहास से कोई शिक्षा नहीं ली , इसीलिए इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है । इससे पहले कि इतिहास की कोई क्रूर परिणति हमें देखने को मिले हमें समय रहते सावधान होना चाहिए । हमें ‘ जीवित इतिहास ‘ के पृष्ठ को पलटने की कोई आवश्यकता नहीं है । जो महापुरुष संस्कृति रक्षक बनकर संस्कृति की अस्मिता के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर रहे हैं , उनके प्रयासों को हमें सही दिशा और सही गति देने में सहायक होना चाहिए । तभी हम वेद , वैदिक संस्कृति और भारतीय अस्मिता की रक्षा करने में सफल हो पाएंगे। यह अच्छी बात है की आचार्य बालकृष्ण जी सकुशल हमारे बीच में हैं , परंतु सब कुछ ठीक है और ठीक हो गया है ? – यह भ्रांति पालना मूर्खता होगी । षडयंत्र के बड़े-बड़े फनों को कुचलने की आवश्यकता है । फुंकारते नागों के बीच राष्ट्र साधना कर रहे तपस्वी राष्ट्रपुत्रों की साधना में राक्षस किसी प्रकार का व्यवधान न उत्पन्न करे , इसके लिए हम सबको ही ‘राम ‘ बनना पड़ेगा।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत