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बाबा का कमरा

अब बाबा नहीं है
कमरा बंद रहता है

कई साल हो गए
कमरा नहीं खुला
आज अचानक खुला
उसके पापा उसको
रुला जो गए

उस ने कमरा
खोल ही दिया
चला गया अंदर
रोने लगा सिसक सिसक कर

लगा जैसे कोई आया
उसको सहलाया
अब वह भी चुप्प
था अंधेरा घुप्प

वह बाहर आया
उसे सांत्वना मिली
अब वह नहीं रोएगा
कोई अब नहीं सताएगा

यही है उसका विश्वास
जीवन की आस

अब वह आएगा
रोज इस कमरे में

जब बाबा थे तो
रोज चुम्मी लेता था
तब बाबा उसको
सहलाते थे

सुबह स्कूल जाते समय
कमरे में जाता
स्कूल से आता तो
बाबा के कमरे में जाता

फिर मां के पास जाता
खाना खाता
फिर आ जाता
बाबा के कमरे में

वहां सुकून मिलता
फिर वह चला जाता ट्यूशन
आता तो दोस्तों में खेलता
या फिर साइकिल चलाता
रात में खा कर सो जाता
सुबह फिर बाबा का कमरा

अब बाबा
कभी नहीं आएंगे
लेकिन यह कमरा ही
मेरे लिए बाबा है ।

धर्म चंद्र पोद्दार
जमशेदपुर झारखंड
मो 99341 67977

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