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कविता

माँ पिता जी की 40वीं वैवाहिक वर्षगांठ

माँ पिता जी की
40वीं वैवाहिक वर्षगांठ
का समारोह था
किंतु
ज्येष्ठ पुत्र के मन में
भयंकर ऊहापोह था
कार्यक्रम के अंत में सब
युगल के लिए दो शब्द
बोल रहे थे
अपने भावों को
सीमित शब्दों में
तौल रहे थे
अब बड़े पुत्र की
बारी थी
सबको उम्मीदें,
उस से बड़ी भारी थी
ज्येष्ठ ने कहना शुरू किया
भावों में बहना शुरू किया
क्योंकि मैं सबसे बड़ा हूं
कर्तव्य की पायदान पर
सबसे उपर खड़ा हूं
खुद को परखना चाहता हूं
एक प्रस्ताव रखना चाहता हूं
क्यों न माँ बाबू जी के
जीते जी
उनका श्राद्ध मनाया जाए
जीते जी श्राद्ध ????
सबके चेहरों पर क्रोध
और विस्मय का भाव था
किंतु दूसरी तरफ
बड़े भाई का दबाव था
आत्मज जारी रहा..
क्यों न माँ बाबू जी के
जीते जी
उनका श्राद्ध मनाया जाए
हफ्ते में कम से कम एक बार
उन्हे स्वादिष्ट, लज़ीज़, मनपसंद
भोजन कराया जाए।
कम नमक या ज्यादा मीठा
उसकी चिंता किए बिना
उन्हे वो खिलाया जाए
जिस से उनकी आत्मा
तृप्त हो जाए ।
उनके उपरांत
विभिन्न पशु पक्षियों में
उन्हे ढूंढने की बजाय
जीते जी उन्हे
खास महसूस कराया जाए ।
घर के बच्चों को उनके रहते
उनका आदर करना
सिखाया जाए ।
बड़ा पुत्र जारी रहा…
उनके उपरांत
न जाने किस किस
के माध्यम से भेजने की बजाय
क्यों न हर महीने अभी से
उन्हे एक नई पोशाक में
सजाया जाए
और प्रतिदिन
उनकी आरती उतारकर
उन्हे हर घर का
जीता जागता
भगवान बनाया जाए।
क्यों न मां बाबू जी का
जीते जी
श्राद्ध मनाया जाए?
माहौल में अचानक
चुप्पी छा गई
किसी को कुछ समझ
नही आया
तभी पिता जी उठे
और उन्होंने पुत्र को
कस के गले लगाया
बोले , बेटा सही कहा तुमने
जीते जी सम्मान न मिले
तो मरने के बाद
कौन देखने आयेगा
जीते जी जिसे
दो रोटी नसीब नहीं
मरने के बाद
क्या हलवा पूरी खायेगा?
जीते जी जो माँ बाप को
वृद्धाश्रम छोड़कर आएगा
वो भला श्राद्ध करके
कैसे पुण्य कमाएगा ?

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