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असम में आया मुस्लिम महिलाओं का तारणहार!

पं जवाहर लाल नेहरू जो आजाद भारत के कथित पहले सेकुलर प्रधानमंत्री माने जाते हैं। जिन्होंने भारत में महिला सशक्तिकरण, महिलाओं को धार्मिक आजादी संबंधी और विभिन्न कुरीतियों को समाप्त करने हेतु सख्त रवैया अपनाया उन्होंने भी कभी मुस्लिम महिलाओं की दयनीय स्थिति को सुधारने का कोई प्रयास नहीं किया। जबकि वे स्वयं के सांस्कृतिक रूप से एक “मुस्लिम” होने का दावा करते रहे। (पढ़े डिस्कवरी ऑफ इंडिया)। लेकिन स्वयं को एक “दुर्घटनावश हिन्दू” (accidental Hindu) मानते हुए और तमाम बुद्धि जीवियों के विरोध के बावजूद उन्होंने हिंदुओं के तमाम धार्मिक अधिकारों और उनकी आजादी को सीमित करने वाला “हिंदू कोड बिल” अपने प्रभाव के बल पर पास करा लिया। लेकिन यदि बात मुस्लिमों की हो तो वे हमेशा अपनी उस सांस्कृतिक पहचान के साथ खड़े दिखाई दिए जिस पर उनको गर्व था। फिर चाहे वह कितनी भी असहिष्णु, भेदभावयुक्त, अमानवीय परंपरा वाली, पिछड़ेपन की पराकाष्ठा और कठोर क्यों न हो।

यही स्थिति कांग्रेस की आज तक दिखाई देती है। याद करिए शाह बानो केस (1985) में कैसे एक तलाकशुदा स्त्री को अपने भरण पोषण के मूलभूत अधिकारों से संसद में कानून बनाकर वंचित कर दिया गया था। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उसके भरण पोषण के लिए उसके पति को उत्तरदायी ठहराया था। तब से आज तक कॉंग्रेस ने कभी भी मुस्लिम महिलाओं की दयनीय स्थिति को सुधारने का कोई प्रयास नहीं किया।

कांग्रेस सरकार ने वर्ष 1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में अनुपयुक्त तरीके से बिना आम राय बनाए “पंथनिरपेक्ष” “समाजवादी” शब्द जोड़ तो दिए, लेकिन कभी भी “पंथनिरपेक्षता” का सही अर्थों में पालन करती नहीं दिखाई दी। यही कारण है देश में विशेषकर सीमावर्ती राज्यों में जो इस्लामी जिहादी समस्या दिखाई देती है, उसके पीछे कांग्रेस की “वैचारिक विकलांगता” रही है। फिर चाहे वह बांग्लादेशी घुसपैठ हो, मुस्लिम जनसंख्या विस्फोट हो, जिहाद को बढ़ावा देती इस्लामी शरिया बातों को मानना हो।

ऐसी ही एक बात है महिला को बच्चे पैदा करने की मशीन मानना। इसके अतिरिक्त उनके निकाह, तलाक, हलाला जैसी मजहबी मज़बूरी को सुधारने का कभी प्रयास नहीं किया गया। इनको बढ़ावा मिलता है इस्लामी शिक्षाओं और इस्लामी रीति से। अंग्रेजी शासन ने कभी सेकुलर होने का दावा नहीं किया इसलिए उन्होंने अपने समय में हिंदू और मुस्लिम के अलग-अलग कानून बनाए। ऐसा ही एक कानून 1935 में बनाया गया असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण एक्ट। जिसमें मुस्लिम विवाह रीति-रिवाजों को कानूनीजामा पहनाया गया। यही कानून अभी तक असम में मुस्लिम विवाह और तलाक के पंजीकरण का नियमन करता था। जो पिछले दरवाजे से इस्लामी घुसपैठ, धर्मांतरण, जिहादी कट्टरता, बाल विवाह, बहु विवाह जैसी कुरीतियों को बढ़ावा देता था। इतना ही नहीं निकाह कराने वाले काज़ी को इस कानून के तहत निकाह रजिस्टर करने का सरकारी अधिकार प्राप्त होता था। और इस तरह एक सेकुलर देश में एक मजहबी काज़ी भी कानून के तहत सरकारी मुलाजिम होता था। राज्य भर में अभी तक 94 काज़ी ऐसे सरकारी काज़ी मुलाजिम होते थे। जो अब इस नए कानून के बाद अपने पद पर बने नहीं रहेंगे।

अब 90 साल बाद राज्य के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने पहली बार मुस्लिम महिलाओं की दयनीय स्थिति और राज्य में इस्लामी जिहादी समस्या को ध्यान में रखकर असम अनिवार्य मुस्लिम निकाह और तलाक पंजीकरण विधेयक 2024 पेश किया है। इसका उद्देश्य मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के शब्दों में “बाल विवाह को रोकना और काज़ी सिस्टम को खत्म करना” है।

यहां प्रश्न यह है की आखिर हिमंत काज़ी सिस्टम को खत्म करना क्यों चाहते हैं? तो उत्तर उनके इन वक्तव्य से स्पष्ट हो जाता है। जिसमें उन्होंने कहा था कि “मैं असम से आता हूं और जनसंख्या में बदलाव यहां एक बहुत बड़ा मुद्दा है। मेरे राज्य में मुस्लिम आबादी अब 40 प्रतिशत है, जो 1951 में 12 प्रतिशत थी। यह मेरे लिए कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि जीवन और मृत्यु का मामला है”। यदि कोई मुख्यमंत्री किसी मुद्दे को जीवन-मृत्यु का मानता हो तो इससे उस मुद्दे की गंभीरता को समझा जा सकता है। यह भी किसी से छुपा नहीं है कि किस प्रकार असम से जुड़ी पतली सीमा रेखा जिसे जिहादी “चिकन नेक” कहते हैं को देश से काटने की साजिश लंबे समय से चली आ रही है। असम के मन में यही डर बना हुआ भी है। जिसे मुस्लिम लगातार अपनी जनसंख्या बढ़ा कर और डरावना बना करे हैं। हिमंत बिस्वा सरमा जनसंख्या वृद्धि से होने वाले भौगोलिक, संस्कृतिक और धार्मिक खतरों को अच्छे से देख और समझ रहे हैं। इसके पीछे के मूलभूत कारणों को भी अच्छे से समझ रहे हैं। यही कारण है उनके द्वारा अपने राज्य असम में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि का कारण लड़कियों के जल्दी निकाह और उसके कारण टीन ऐज प्रेग्नेंसी को रोकने और उनके शारीरिक व मानसिक विकास को ध्यान में रखते हुए असम मुस्लिम मैरिज एंड डिवोर्स रजिस्ट्रेशन एक्ट 1935 को समाप्त कर अब असम कंपल्सरी रजिस्ट्रेशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एंड डिवोर्स बिल 2024 लाया गया है। इस बिल में तीन अहम शर्तें हैं- 1. बाल विवाह का रजिस्ट्रेशन नहीं हो सकेगा, 2. रजिस्ट्रेशन काजियों की बजाए सरकार करेगी, और दोनों पक्षों की रजामंदी के बगैर शादी नहीं हो सकेगी।

अब शादी पंजीकृत होने के लिए सात शर्तें पूरी होनी चाहिए। इन शर्तों में अहम हैं- शादी से पहले महिला की उम्र 18 और पुरुष की 21 साल होनी चाहिए, शादी में दोनों पक्षों की रजामंदी हो और कम से कम एक पक्ष शादी और तलाक रजिस्ट्रेशन वाले जिले का निवासी हो। इससे भगा कर लाई गई लड़कियों का निकाह, जबरन निकाह व मतांतरण पर रोक लगेगी।

  • निकाह के रजिस्ट्रेशन के लिए 30 दिन पहले नोटिस देना होगा, साथ ही सारे दस्तावेज भी साथ लगे हों।
  • निकाह पर आपत्ति जताने के लिए 30 दिन का पीरियड होगा, जिसमें ये चेक किया जाएगा कि क्या निकाह सारी शर्तें पूरी कर रही है। अगर रजिस्ट्रार इससे मना कर दे तो डिस्ट्रिक्ट रजिस्ट्रार और रजिस्ट्रार जनरल ऑफ मैरिज के पास अपील की जा सकती है।

  • पंजीकरण करने वाला अधिकारी जांच करता है कि दोनों पार्टियों में कोई नाबालिग तो नहीं। ऐसा पाए जाने कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

  • अगर अधिकारी किसी शर्त को पूरा न करने पर भी शादी के रजिस्ट्रेशन को मंजूरी दे तो उसपर एक साल की कैद और 50 हजार का जुर्माना हो सकता है। यानी अब निकाह कराने वाले अधिकारी की जिम्मेदारी भी तय कर दी गई है। जबकि पूर्व में काज़ी जबरन निकाह करा कर जिम्मेदारी से साफ़ बच जाते थे। ध्यातव्य है कि पिछले साल असम में चार हजार से ज्यादा लोगों पर कानूनी कार्रवाई हुई, जिन्होंने नाबालिग से शादी की थी। ये शादियां काज़ीयों की देखरेख में हुई थीं। हिमंत ने तर्क दिया कि राज्य शादियों को रजिस्टर कराने के लिए काजियों पर भरोसा नहीं कर सकता। वे निजी संस्थाएं हैं, उनकी अपनी सोच है।

हिमंत बिस्वा सरमा ने ठीक कहा है, क्योंकि यदि काज़ी सिस्टम से मुस्लिम सामाज में सुधार होना होता तो अब तक बहुत बड़े सुधार हो चुके होते। लेकिन 90 सालों तक काज़ी सिस्टम बने रहने के बावजूद मुस्लिम समाज अभी भी पिछड़ेपन के गर्त में पड़ा हुआ है। यद्यपि राज्य में स्वाभाविक रूप से मुस्लिम समाज द्वारा इसका विरोध हो रहा है किन्तु समाज सुधार के लिए इस विरोध को सहना ही होगा।

यदि ऐसे ही अन्य बड़े बदलाव मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा अपने राज्य में करने में सफल होते हैं तो वे राज्य के लिए बड़े कल्याणकारी मुख्यमंत्री सिद्ध होंगे और आने वाले सालों में राज्य की समृद्धि और रोजगार, ह्यूमन हैप्पीनेस इंडेक्स में बहुत सुधार होगा।

युवराज पल्लव
धामपुर, बिजनौर
8791166480

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