जी -20 देशों के सम्मेलन का इंडोनेशिया के शहर बाली में समापन होने के साथ ही अब इस वैश्विक संगठन की अध्यक्षता भारत को सौंप दी गई है। अभी तक इसकी अध्यक्षता इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो कर रहे थे। रुस – यूक्रेन युद्ध के चलते विश्व की बदलती हुई परिस्थितियों पर इस सम्मेलन में भारत ने अपनी विशेष भूमिका निभाते हुए सारे विश्व को यहां से संदेश दिया कि यह युद्ध समय का नहीं है बल्कि विचार – विमर्श और कूटनीति के माध्यम से समस्या का समाधान करने का है ।
भारत के इस मत की सभी देशों ने प्रशंसा की है और इस पर। अपनी सहमति भी व्यक्त की है। इस प्रकार विश्व मंचों पर भारत की बढ़ती धमक इस बात का संकेत है कि इस समय भारत की बातों को सारा विश्व बड़े गौर से सुन रहा है।
इस सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन तो नहीं आए पर उनके देश का प्रतिनिधित्व वहां के विदेश मंत्री सरगेई लावारोव ने किया है। अमेरिका व अन्य पश्चिमी यूरोपियन देश इस सम्मेलन के माध्यम से रूस को अलग-थलग करने का प्रयास कर रहे थे, पर वह अपने इस प्रयास में सफल नहीं हो सके हैं। इसमें भारत की भूमिका को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। वास्तव में विश्व राजनीति को इस समय असफलताओं और एक दूसरे को नीचा दिखाने के उस धुंधलके से बाहर निकालने की आवश्यकता है जिसके कारण वर्तमान विश्व अनेक समस्याओं से जूझ रहा है और उधर देखने का किसी को भी समय नहीं है। कई बार ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं जिनसे विश्व युद्ध अब आया कि अब आया का डर लोगों को सताने लगता है। विश्व में अनेक देश ऐसे हैं जिन्हें अपनी सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता है। यदि किसी भी प्रकार के विनाश के लिए परमाणु शक्ति संपन्न देश आपस में गुत्थमगुत्था हो गए तो विश्व के अनेक देश ऐसे होंगे जिनका कोई दोष ना होकर भी युद्ध की विभीषिकाओं में उनका विनाश होना भी निश्चित है।
जी – 20 जैसे संगठनों का प्रयोग ऐसे विश्व मंचों के रूप में किया जाना चाहिए जिनके माध्यम से मानवता को बचाने और निर्दोष देशों की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए संसार के बड़े देश अपना चिंतन प्रस्तुत करें। आर्थिक सहभागिता से भी महत्वपूर्ण बात यही है कि ऐसे मंच मानवता के भविष्य को लेकर किसी ठोस योजना पर काम करते हुए दिखाई दें। कहना नहीं होगा कि इस दिशा में भारत से अलग कोई भी ऐसा देश नहीं है जो विश्व शांति की कामना मन से करता हो और उसके लिए एक सुस्पष्ट चिंतन भी प्रस्तुत करने की क्षमता रखता हो। वैसे तो विश्व शांति के प्रति भारत प्रारंभ से ही गंभीर रहा है परंतु वर्तमान में भारत अपने उस चिंतन को भी प्रस्तुत करने में सफलता प्राप्त करता जा रहा है जो विश्व को एक परिवार के रूप में स्थापित करने में सक्षम हो सकता है।
विश्व के देशों के नेता चाहे अपनी बातों को कितना ही घुमा फिराकर क्यों न कह लें पर उनके चिंतन में इस्लाम और ईसाइयत के प्रति सहानुभूति तो प्रकट हो ही जाती है। यदि किसी ईसाई देश का शासनाध्यक्ष या प्रतिनिधि किसी विश्व मंच पर बोल रहा होता है तो उसे दुनिया यहीं तक सीमित दिखाई देती है। इसी प्रकार यदि कोई इस्लामिक देश का प्रतिनिधि किसी विश्व मंच पर भाषण दे रहा हो तो उसके चिंतन में भी इस्लामिक देशों के प्रति सहानुभूति अवश्य दिखाई दे जाती है। यदि किसी के बोलने या आचरण करने में ही पक्षपात दिखाई देता हो तो उससे न्याय की अपेक्षा नहीं की जा सकती। यही कारण है कि विश्व शांति इस समय विश्व राजनीति के इसी दोगले पन का शिकार हुई दिखाई देती है।
ऐसे में जब भारत को जी – 20 का मुखिया बना दिया गया है तो उसकी जिम्मेदारियां अन्य देशों की अपेक्षा बहुत अधिक बढ़ जाती हैं । इस समय भारत को मजबूती से अपना वैश्विक चिंतन और मानस प्रस्तुत करने का अच्छा अवसर मिला है । अनेक देश संसार में इस समय ऐसे हैं जो किसी सक्षम नेतृत्व के साथ-साथ विश्वसनीय नेता की भी खोज में है। नेताओं की भाषा की दोगली चालों में फंसा हुआ विश्व समाज इस समय किसी पर विश्वास करने को तैयार नहीं है। यही वह सोच या मानसिकता या अवस्था है जिसके चलते सारा विश्व इस समय विश्वसनीयता के संकट से गुजर रहा है। भारत को अपनी इस भूमिका में विश्व नेता बनकर दिखाना है।
वर्तमान प्रधानमंत्री श्री मोदी अवसर को अपने अनुकूल बनाने की कला में निपुण माने जाते हैं। ऐसे में भारत के लिए मिला हुआ यह अवसर भारत की विश्व शांति के प्रति अपनी गंभीर जिम्मेदारी को प्रकट करने वाला होना चाहिए। इसमें दो मत नहीं हैं कि इससे पहले भी श्रीमती इंदिरा गांधी के समय में भारत को विश्व नेतृत्व करने का अवसर प्राप्त हुआ था। यद्यपि उस समय भारत अपने आपको विश्व नेता के रूप में स्थापित नहीं कर सका था।
इसका एक कारण यह भी था कि भारत उस समय अपने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को विश्व मंच पर सही अर्थों और संदर्भों में प्रस्तुत करने में संकोच करता था। इसके अतिरिक्त भारत अपने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को वैश्विक राष्ट्रवाद अथवा अंतरराष्ट्रवाद अथवा वैश्विक व्यवस्था के रूप में स्थापित करने से भी दूर भागता था। वह उस समय सभी समस्याओं का समाधान पश्चिमी देशों के द्वारा स्थापित की गई परंपराओं और चीजों में खोजने का बेतुका प्रयास करता था। आज भारत अपने आपको समझ भी रहा है और दूसरों को समझा भी रहा है। आज के भारत को अपने भारतीय सनातन सांस्कृतिक मूल्यों को विश्व को समझाने में किसी प्रकार की हिचक या झिझक नहीं है। ऐसे में भारत के अनेक देशों को भारत से यह स्वाभाविक अपेक्षा है कि वह इस बार कुछ विशेष और अच्छा करके दिखाएगा।
जी-20 देशों के समापन के पश्चात जिस प्रपत्र को तैयार किया गया है उसकी भाषा को देखना भी बहुत आवश्यक है। इस प्रपत्र में कहा गया है कि देशों को इस समय शांतिपूर्वक ढंग से बातचीत करके कूटनीति के माध्यम से अपनी समस्याओं का समाधान खोजना चाहिए। यह समय युद्ध का नहीं है। ज्ञात रहे कि ये वही शब्द हैं जो भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से अपनी मुलाकात में कहे थे। इससे पता चलता है कि भारत के इन शब्दों को संसार की वर्तमान राजनीति ने कितना महत्व दिया है ? साथ ही यह भी कि इस प्रकार की सोच और राजनीतिक शुचिता को विश्व समाज किस सीमा तक चाहता है ?
भारत ने सम्मेलन में पिछले दो-तीन वर्ष में चले कोरोना संकट और जलवायु परिवर्तन की ओर भी विश्व का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि विश्व की अर्थव्यवस्था के लिए कोरोना का यह संकट बहुत अधिक विनाशकारी सिद्ध हुआ। इससे विभिन्न देशों के बीच विभिन्न वस्तुओं की आपूर्ति श्रृंखला टूट गई । जिसके कारण उपभोक्ता वस्तुओं की कमी अनुभव होने लगी । अतः कोरोना के बाद नई विश्व व्यवस्था की आवश्यकता अनुभव हो रही है।
वास्तव में भारत को इस समय अपनी प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को वैश्विक चिकित्सा प्रणाली के रूप में स्थापित करने पर भी बल देना चाहिए । जिस प्रकार योग के माध्यम से संसार के अनेक लोगों ने स्वास्थ लाभ प्राप्त किया है उसी प्रकार वह आयुर्वेद से स्वास्थ लाभ लेकर स्वस्थ जीवन जीने की स्थिति में आ सकता है। इसके लिए भारत को बड़े पैमाने पर संघर्ष करने की आवश्यकता है। इसके बारे में भारत को समझना चाहिए कि कुछ कंपनियां इसके विरुद्ध तूफान खड़ा कर सकती हैं,परंतु अंतिम जीत भारत की होगी। क्योंकि भारत की इस प्रकार की सोच में मानवता के प्रति समर्पण का भाव दिखाई देगा। अभी भारत ने अपने मौलिक चिंतन के साथ खड़ा होने का संकेत मात्र दिया है ,उसके पश्चात ही विश्व की बड़ी जनसंख्या भारत की ओर आशा भरी नजरों से देखने लगी है। अनेक देश उसे अपना स्वाभाविक हित चिंतक मान रहे हैं। जब भारत अपने मूल से जुड़कर उसी की तरह सोचेगा और बोलेगा तो निश्चित रूप से सारा संसार उसकी बात को सुनेगा। यद्यपि कुछ स्वार्थी शक्तियां उसका विरोध कर सकती हैं पर उसे इस प्रकार की शक्तियों के किसी विरोध से डरना नहीं चाहिए।
भारत को जी-20 जैसे देशों के नेता के रुप में यह बात समझ लेनी चाहिए कि वह अपने आप को भारत के रूप में ही प्रस्तुत करे। जी हां संपूर्ण जा से भरे भरा हुआ भारत संपूर्ण योग से जब संसार की समस्याओं का समाधान अपने वैदिक चिंतन से करना आरंभ करेगा तो सारा संसार सीधा होता चला जाएगा। यह एक कड़वा सच है कि वैदिक चिंतन से भटका हुआ विश्व समाज आज शीर्षासन किए हुए है। इसे सीधा करने का ढंग वैदिक चिंतन के माध्यम से संसार को भारत ही दे सकता है। वर्तमान भारतीय नेतृत्व से भारत के लोगों की यह महती अपेक्षा है कि वह अपने वैदिक चिंतन को प्रस्तुत कर समाज और संसार को नया संदेश दे। जी -20 के माध्यम से इस अभियान का शुभारंभ हो सकता है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत

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