अहमद पटेल कांग्रेस के क्या हैं यह तो किसी कांग्रेसी से ही पूछिये तो पता चलेगा. वैसे तो तो न वे तो सरकार में कुछ हैं और न ही पार्टी में. लेकिन वे ऐसा कुछ जरूर हैं जिसके कारण न तो पार्टी उनके बिना चलती हैं और न ही सरकार को उनकी मर्जी के खिलाफ जाने की हिम्मत होती है. आखिरकार वे सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार हैं. लेकिन अब लगता है अहमदभाई का दायरा बड़ा हो रहा है और उनके समर्थकों की संख्या भाजपा में भी बढऩे लगी है.
वैसे तो आप ऐसे लोगों को भाजपा के दगाबाज एजंट भी कह सकते हैं जो रहते भाजपा में हैं लेकिन भला कांग्रेस का करते हैं. इन्हीं एजंटों में एक बड़ावाला एजंट है. इस दगाबाज भाजपाई के कारण कम से कम अहमदभाई को बड़ा फायदा मिल रहा है. यह दगाबाज भाजपाई न होता तो शायद उत्तराखण्ड में कांग्रेस की सरकार न बनती और इसी दगाबाज भाजपाई की वजह से अब एक बार फिर येदियुरप्पा का मामला बिगड़ता जा रहा है.
असल में किस्सा यह है कि पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी दूसरी पारी का आश्वासन मिलने के बाद जमकर काम करना चाहते हैं. भले ही उन्हें मोदी और येद्दि का समर्थन न मिल रहा हो लेकिन वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बतौर पूरी पार्टी चलाना चाहते हैं. लेकिन दिल्ली में बैठे नेता हैं कि गडकरी को जीने नहीं दे रहे हैं. जब उत्तराखण्ड में कांग्रेस के कुछ बागी विधायकों ने नितिन गडकरी से संपर्क किया तब गडकरी ने मारे उत्साह के उन विधायकों को बड़े विश्वास के साथ बड़े वाले नेता जी के पास भेज दिया. लेकिन बड़े वाले नेताजी निकले बड़ेवाले धोखेबाज. उन्होंने तत्काल इसकी सूचना अहमद पटेल को दे दिया और अहमद भाई के सक्रिय होने की देर थी कि उत्तराखण्ड में भाजपा की सरकार बनने से पहले उसका गर्भपात हो गया.
इन दिनों भाजपा को यदुरप्पा का जो कांग्रेस प्रेम परेशान किये हुए है वह भी इन्हीं बड़ेवाले नेताजी की देन है. इन्हीं नेताजी की टिप पर सोनिया गांधी कर्नाटक गई थीं और लिंगायतों के मठ में बैठक की थी. इन्हीं नेता की बदौलत बरास्ता अहमद भाई येदियुरप्पा को सोनिया गांधी का आशिर्वाद मिल रहा है जो भाजपा को परेशान कर रहा है.
भाजपा के पास ऐसे दगाबाज नेताओं की फौज है शायद इसीलिए अहमद भाई की मौज है. हालांकि खुद अहमद भाई दिल्ली के पत्रकारों को एसएमएस करके बता रहे हैं कि उनका येदियुरप्पा प्रकरण से कुछ लेना देना नहीं है. लेकिन यकीन करे कौन?

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