राजनीति का खेल घिनौना, लाशों पर भी सिकें रोटियां।
कोई मीत नही है इसमें, चूसें खून, खाएं बोटियां।
कुरसी के स्वारथी लड़ा, देते हैं भाई-भाई को।
बाप किसी दल में है बेटा, गीत किसी दल के गाता।
राजनीति के कारण, रिश्तों, में भी जहर घुला जाता।
जहर उगलना, आग लगाना, राजनीति का धंधा है।
कुरसी के लालच में नेता, अंधे हैं, मन गंदा है।
कुरसी ने इंसानों को, हैवान बनाकर छोड़ दिया।
राजनीति ने घोर भष्टता, का जनता को कोढ़ दिया।
गाफिल कहें सुनो ऐ भैसा, ओछी गंदी राजनीति है।
जूते घूंसे, गाली गोली, नफरत इसमें, नही प्रीति है।
देश की वाट लगाएंगे
दादागीरी बदमाशी के, नित हथकंडे जो अपनाते।
लिप्त रहें खोटे कामों में, वही लोग नेता बन जाते।
चरचागीरी औ धन बल से, कोई पद व टिकट ले आते।
ऊपर वाले को भी देखो, ऐसे ही नेता मन भाते।
शायद स्वर्ग में कृष्ण कन्हैया, बकरी, भेड़ भैंस चराते।
भ्रष्ट निकम्मे लेाग जीतकर, गर कोई पद पाएंगे।
भ्रष्टाचार घोटाले करके, देश की वाट लगाएंगे।

 

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