माता-पिता और संतान

नीतिकारों के ये ऐसे आशीष बचन हैं जो हर समुदाय अपने अपने अनुयायियों को देता है। यथा-

माता पिता की सेवा करनी चाहिए। 

बड़ों का कहना मानना चाहिए।

माता पिता की सेवा से आयु विद्या, यश और बल में वृद्घि होती है। यही कारण है कि कुछ लोगों ने धर्म की इन बातों  के मजहब में भी घुली-मिली होने के कारण धर्म और मजहब को एक ही मान लिया।

ऐसे बहुत से लोग हैं जो यह कहते हैं जो हर मजहब नैतिक उपदेश तो एक जैसे ही देता है, इसलिए सब धर्मों के रास्ते तो अलग अलग हो सकते हैं किंतु लक्ष्य तो सबका एक ही है। अर्थात साधनों की भिन्नता के उपरांत भी साध्य तो एक ही है।

धर्म और मजहब को एक करके देखने की इस तालमेल भरी व्याख्या के कारण लोगों का मन तो कथित विद्वानों और व्याख्याकारों ने बहलाया किंतु आत्ममिक तृप्ति नहीं कर पाये। 

मन की तृप्ति के उपाय

हमें देखना होगा कि मजहब यदि धर्म ही होता तो समाज में पायी जाने वाली विभिन्नता जीवन व्यवस्थाएं मान्यताएं बहुसंख्यक, अल्पसंख्यक का रोना धोना निर्बल पर सबल का अत्याचार और अनाचार आदि सभी समाप्त हो गया होता। क्योंकि मजहब और धर्म एक न्यूनतम एक सांझा कार्यक्रम पर कार्य करते करते एकाकार होकर मात्र उन्हीं बिंदुओं तक सिमटकर रह जाते जिनसे न केवल मानवता का अपितु प्राणी मात्र का भी भला होता इस प्रकार मजहब पर धर्म होबी हो जाता और मजहब (संप्रदाय) अपनी आभा को गंवा बैठता।

माता पिता के प्रति सम्मान का समान भाव सभी मजहबों ने समान रूप से माना है। किंतु इसके उपरांत भी सभी की जीवन जीने की मान्यताएं तो भिन्न हैं। जब तक जीवन जीने की अवस्था में भिन्नता है तब तक मानवता का पूर्ण विकास होना संसार में संभव नहीं है।

ईसाईयत की मान्यताएं

ईसाईयत ने अपने अनुयायियों को जीवन जीने की कला और ढंग सिखाया है उसके विषय में आज के ईसाई जगत की वर्तमान दशा को देख लेना मात्र ही पर्याप्त है। 

सेक्स की खुली छूट और भौतिकवाद की खुली लूट : इन दो बातों में ही ईसाईयत का जीवन व्यवहार सिमट कर रह गया है। पश्चिम की चकाचौंध भौतिक विज्ञान में उसके द्वारा की गयी उन्नति का परिणाम है। यह चकाचौंध किसी विज्ञान की तो परिचायक है किंतु 

इसमें ज्ञान नहीं है।

ज्ञान के अभाव में ईसाईयत का वास्तविक दृश्य छूट और लूट में हमारे सामने स्पष्टï दृष्टिïगोचर हो रहा है यहां ज्ञान से हमारा अभिप्राय आध्यात्मिक ज्ञान से है।

ईसाईयत सेक्स में इतना आगे बढ़ गयी कि बहन, भाई, मां-बेटा और बाप-बेटी तक के पवित्र संबंधों को भी इसने कलंकित कर दिया है। समाचार पत्रों में ऐसे समाचार आये हैं जो हमारे इस कथन की पुष्टिï करते हैं। जहां तक भौतिकवाद का पश्चिम समाज पर प्रभाव पडऩे का प्रश्न है तो उसके समाज को उनकी भागदौड़ को आपा-धापी, खींचतान व पैसे के लिए हत्या आदि सारी गतिविधियां को देखकर लगता है कि जिसे ये लोग सभ्य समाज कहते हैं वह सभ्य न होकर असभ्य और पाश्विक हो गया है। पैसे ने इन्हें पागल कर दिया है। 

भौतिकतावाद के दुष्परिणाम: परिणाम सामने हैं समाचार पत्र बता रहे हैं, पत्रिकाएं बता रही हैं सर्वेक्षण एजेंसियां बता रही हैं, कि भौतिकवाद की अंतिम स्थिति वहां आ चुकी है। अंतिम स्थिति वह स्थिति है जिसमें पागल हुए व्यक्ति का मन सांसारिक संबंधों से भर जाता है। पश्चिम जगत ने पहले भारतीय समाज के विपरीत संयुक्त परिवार की प्रथा को तोड़ा। फिर पति पत्नी बच्चे से कटकर और घटकर बच्चे हॉस्टल में और पति पत्नी ऑफिस में या बैडरूम में या क्लवों में होने की प्रथा का अनुकरणा किया।

अंत में स्थिति यह आ गयी है कि वहां विवाह की आवश्यकता ही अनुभव नहीं की जाा रही है। कुंआरी मां बनने का शौक लड़कियों में लग गया है। चौंकाने वाले समाचार ये भी हैं कि अमरीका, कनाडा, ब्रिटेन जैसे देशों में लडकियां अब मां बनना ही नहीं चाह रही हैं आखिर क्यों?

पहले हॉस्टल के भीतर पलने बढऩे वाले बच्चे का मन माता-पिता से भरा माता पिता का मन फिर उस संतान से भरा जिसने उसे वृद्घा अवस्था में उठाकर दूर पटक दिया।

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