पाक के हिंदुओं की दयानीय दशा

चंद्रमोहन

पाकिस्तान से लगातार हिंदू परिवार भारत में प्रवेश कर रहे हैं। कई रेल के रास्ते आए तो कई पैदल वाघा अटारी सीमा पार कर यहां पहुंचे हैं। जो टे्रन से आए वह इतना सामाना लेकर आए कि साफ है कि वह यहां बसने आए हैं। उनके गृहमंत्री रहमान मलिक को बदनामी का डर है। हैरनी है कि उन्हें उस वक्त बदनामी का डर नही सताता जब उनके देश में हिंदू लड़कियों का अपहरण किया जाता है, उनसे बलात्कार किया जाता है और इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया जाता है। 7 अगस्त को सिंध के जैकबाबाद में 14 वर्षीय हिंदू लड़की मनीशा कुमारी का अपहरण कर लिया गया। उसी के बाद पलायन की यह ताजा लहर शुरू हो गयी है। वहां से आए हिंदू बताते हैं कि पाकिस्तान में वह सुरक्षित नही है और बंदूक की नोंक पर कट्टरवादी जबरन लड़कियों का अपहरण कर रहे हैं। इंसान सब कुछ बर्दाश्त कर लेता है यह बर्दाश्त नही कर सकता। 2010 में खुद पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने कहा था कि उस देश में हर महीने कम से कम 25 हिंदू लड़कियों का अपहरण किया जाता है। अब हालत और बुरी हो चुकी है। पाकिस्तान का मीडिया भी कह रहा है कि जबरन धर्म परिवर्तन, अपहरण, वसूली, हिंदू लडकियों का अपहरण जैसी घटनाएं आए दिन हो रही हैं और सबसे अधिक यह सिंध तथा ब्लूचिस्तान में हो रहा है जहां आसिफ जरदारी की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की सरकार है। विभाजन के समय पाकिस्तान में 13 प्रतिशत अल्पसंख्यक थे। जिन्ना ने तब कहा था कि आप आजाद हैं आप अपने मंदिर जाने के लिए आजाद हैं, आप अपनी मस्जिद या किसी धार्मिक जगह जाने के लिए आजाद….। लेकिन यह आजादी कागजों में रह गयी है। उनकी स्कूली किताबों में हिंदुओं के खिलाफ प्रचार किया जाता है। उन्हें शैतान मक्कार तथा गुंडे तक कहा जाता है पाकिस्तान की सरकार ने यह किताबें बदलने का कोई प्रयास नही किया। आज पाकिस्तान में अल्पसंख्यक केवल 1-2 प्रतिशत रह गये हैं। सवाल है कि बाकी कहां गये जो बचे उनका भी उत्पीडऩ हो रहा है। सच्चाई यह है कि पाकिस्तान में हम हिंदुओं की नस्ली सफाई देख रहे हैं ठीक जैसे हिटलर ने यहूदियों की थी या उन्हें खत्म कर दिया जाता है या उनका धर्म परिवर्तन करवाया जाता है या उन्हें भारत जाने के लिए मजबूर किया जाता है और दोनों सरकारें खड़ी तमाशा देखती हैं भारत सरकार न उनका मामला पाकिस्तान से उठाती है और न ही अपने यहां उन्हें ठीक तरीके से शरण देने को तैयार है। आज की दुनिया में किसी समुदाय का उत्पीडऩ संभव नही। केवल पाकिस्तान में यह संभव है अगर आप हिंदू हो क्योंकि कोई भी आवाज उठाने के लिए तैयार नही। उन्हें अपने भाग्य पर छोड़ दिया गया हे। एक टीवी चैनल ने बाकायदा लाइव कार्यक्रम में एक हिंदू को इस्लाम कबूलते दिखाया है। पाकिस्तान की सरकार ने ऐसे घिनौने कार्यक्रम को दिखाने पर कोई कार्रवाई नही की। दुख इस बात का भी है कि उनकी सिविल सोसाइटी जो कई मामलों में बहुत मुखर है इस मामले में खामोश है। इस साल मार्च में रिंकल कुमारी का मीरपुर से अपहरण किया गया तो आशा कुमारी का जैकबाबाद से। इन मामलों में उनके सुप्रीम कोर्ट ने भी दखल देने से इंकार कर दिया और चीखती चिल्लाती इन लड़कियों को अपहरणकर्ताओं के हवाले कर दिया गया अर्थात कानून भी बेबस है।
जिस 14 वर्ष की हिंदू लड़की कासिंध के जैकबाबाद से अपहरण किया गया उसके पिता रेवल मल का कहना है कि उसे जबरदस्ती मुसलमान बना कर एक मुसलमान से निकाह कर दिया गया। अब नाबालिग मनीशा माहविश बन गयी है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ जरदारी ने अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना पर गंभीर होते हुए तीन सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल बनाया है जो स्थिति का जायजा लेगा। लेकिन जायजा क्या लेना स्थिति तो सामने ही है और आज से नही विभाजन के समय से ही वहां रह रहे हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है। उनकी महिलाएं सुरक्षित नही उनके घर तथा दुकानें सुरक्षित नही। अपहरण और फिरौती सामान्य है। वहां तो अब कोई महिला बिंदी लगा कर बाहर नही निकल सकती। कई बुर्का डाल बाजार खरीदारी के लिए जाती है। अपने ही घर में वह बेघर हो गये इसलिए वह भारत भाग रहे हैं लेकिन अफसोस है कि भारत ने पाकिस्तानी हिंदुओं को सहारा नही दिया। पाकिस्तान के साथ विश्वास बहाली की मुहिम को तेज करते हुए भारत सरकार यह भी पूछने को तैयार नही कि हिंदुओं का उत्पीडऩ क्यों हो रहा है़?
जिन्हें दक्षिण अफ्रीका में अश्वेतों के मानवाधिकारों की चिंता रही, जिन्हें आज तिब्बतियों की चिंता है वही भारत अपने पड़ोस में हिंदुओं को दी जा रही शारीरिक मानसिक तथा सांस्कृतिक यातनाओं के बारे में खामोश है। पिछले संसद अधिवेशन में विदेशमंत्री एसएम कृष्णा ने पाकिस्तान यातनाओं के बारे में खामोश है। पिछले संसद अधिवेशन में विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने पाकिस्तान को यह याद करवाया है कि वह अपने अल्पसंख्यकों के प्रति अपना संवैधानिक कत्र्तव्य निभाए। बस इतना सा ही। कोई निंदा नही कोई आलोचना नही। केवल भाजपा में तरूण विजय तथा अविनाश राय खन्ना जैसे सांसद मामला उठाते रहते हैं, पर सत्तारूढ़ दल बिल्कुल खामोश है शायद हिंदुओं के उत्पीडऩ के बारे में आवाज उठाने पर उनका सैक्यूलरिज्म खतरे में पड़ जाता है।
भारत सरकार को तत्काल दो बातें करनी चाहिए। सबसे पहले पाकिस्तान से मामला उठाना चाहिए। सरकार यह कह कर कि हम दूसरे देश के मामले में दखल नही दे सकते, बहाना बनाकर चुप नही रह सकती। हमने हाल ही में देखा है कि अमरीका में विसकोन्सिन के गुरूद्वारा साहिब में चली गोली के बाद भारत सरकार कितनी सक्रिय रही है। लोगों के जज्बात बराक ओबामा तक खुद प्रधानमंत्री ने फोन कर पहुंचाए। राजदूत निरूपमा राव को वहां भोजा गया।सारे देश ने इस सक्रियता की सराहना की। ऐसी सक्रियता पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं के बारे में क्यों नही दिखाई जा सकती? प्रधानमंत्री को खुद टेलीफोन उठा कर जरदारी से बात करनी चाहिए और भारत की आपत्ति दर्ज करवानी चाहिए। वहां स्थित भारतीय दूतावास को हिन्दुओ के पक्ष में सक्रिय करना चाहिए। एक संसदीय प्रतिनिधिमंडल वहां भेजा जाना चाहिए जो वहां जाकर पीडि़त हिन्दुओ से मुलाकात करे और वस्तुस्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करे। वह तो नागरिकता की मांग कर रहे हैं। तत्काल यह देना तो शायद संभव न हो पर समझ लेना चाहिए कि यह लोग अब वापस पाकिस्तान नही जाएंगे। हालत तो यह है कि 1947 में जो 3500 परिवार जम्मू आए थे उन्हें अब तक भारतीय नागरिकता नही दी गयी। सख्त नियमों का बहाना बनाया जा रहा है पर इसी देश में करोड़ों बंगलादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं। बहुतों को तो वोट का अधिकार भी मिला हुआ है लेकिन जब विस्थापित हिंदुओं का सवाल उठता है तो नियम आड़े आ जाते हैं। यह केवल भारत में ही हो सकता है कि कश्मीर से निकाले गये लाखों हिंदू अभी भी वापस नही जा सके। उनकी वापसी पर सईद अली शाह गिलानी का वीटो है। जो देश प्राचीन समय से दूसरे देशों और दूसरे धर्मों के उत्पीडि़तों को आश्रय देता रहा है वह अपने हिंदुओं के मामले में बेबस लाचार और कमजोर है। क्योंकि वह हिंदू है!
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