ज्ञानी की कोई जाति नहीं होती : स्वामी चक्रपाणि

वशिष्ठ स्मृति में कहा गया है कि आचारहीन को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते। भविष्य पुराण में भक्त की पवित्रता का उल्लेख करते हुए कहा गया कि कुल, रूप और धन के बल से कोई सच्चा भक्त नहीं हो सकता। भक्ति, ज्ञान और बाह्य प्रतिष्ठा से दूर आंतरिक पवित्रता से आती है, वही भक्त है जो कण-कण में ईश्वर देखता है और सबसे प्रेम करता है। एक ऐसा ही प्रसंग महाराष्ट्र का है। चोखा नामक भक्त महार जाति का था। वह मंगल वेढ़ा नामक गाँव में रहता था। मृत पशुओं को उठाना और उसकी चर्म उतार कर बेचना उसका कार्य था। एक गन्दे कार्य को करने के पश्चात भी वह अत्यन्त सदाचारी और धर्मभीरू था। मन-वचन और कर्म से कभी किसी को तनिक भी कष्ट न हो जाये वह सदा इसका ध्यान रखता था। पशु का चर्म उतारते समय भी ईश्वर का नाम लेता रहता। गाँव के लोग उसे भक्त कहने लगे लेकिन उसकी जाति को छोटा मानते हुए सम्मान नहीं दिया करते थे। एक बार संत नामदेव उसके गाँव मे आये। शिव मंदिर के सामने कीर्तन हुआ। पूरा गाँव एकत्र हुआ। जब कीर्तन समाप्त हो गया तो गाँव का प्रत्येक व्यक्ति उनसे आग्रह करने लगा कि आप अपने शिष्यों सहित हमारे घर आकर भोजन करें। संत नामदेव ने उत्तर दिया कि वे उस व्यक्ति के घर भोजन करेंगे जो ईश्वर के सर्वाधिक निकट होगा। हर व्यक्ति ने अपने ईश भक्ति के प्रमाण देने आरम्भ कर दिये। चोखा महार भी दूर खड़ा था। संत नामदेव ने चोखा महार की ओर संकेत किया कि आपके गाँव में केवल एक भक्त है और वह है चोखा महार। लोग आश्चर्य चकित थे कि संत नामदेव को क्या हो गया? यह तो कभी पूजा या यज्ञ भी नहीं करता। कीर्तन के समय पर भी उपस्थित नहीं होता था। लोगों ने इसका कारण पूछा तो उन्होनें उत्तर देते हुए कहा कि भक्ति के लिए शब्द नहीं आत्मा की पवित्रता चाहिए। चोखा महार भक्त अत्यन्त धार्मिक है। भले ही वह गंदा कार्य करता हो लेकिन उसका मन गंगा की भांति पवित्र है। संत नामदेव चोखा महार के घर गये और भोजन किया। प्रातः गाँव वालों ने यह जानना चाहा कि यह प्रमाणित कैसे हो कि चोखा ही वास्तविक भक्त है। इस पर संत नामदेव ने कहा कि ग्रामवासी और चोखा मेरे साथ विठ्ठलजी के मंदिर चलें। ईश्वर जिसे स्वयं प्रमाण दे देंगे, वही वास्तविक भक्त माना जायेगा। गाँव वाले तैयार हो गये। सब नामदेव के साथ मंदिर पहुंचे। सभी गाँव वाले ईश आराधना में खड़े हो गये। लेकिन चोखा भक्त मंदिर के मुख्य द्वार पर ही रूक गया। वह किसी प्रकार कर कोई भजन भी नहीं गा रहा था। अचानक एक घटना घटी। विठ्ठलजी की मूर्ति की माला स्वयं ही उतर कर हवा में तैरती चोखा भक्त के गले में जा गिरी। ग्रामवासी इस आश्चर्यजनक घटना को देख रहे थे। संत नामदेव ने कहा कि देखा आप लोगों ने चोखा भक्त एक पवित्र आत्मा है। उसने अपने जीवन में किसी के प्रति कभी कटुता नहीं रखी। वह अहंकार रहित विनम्र है। इसलिए ईश्वर के सर्वाधिक निकट है। गाँव वालों को अपनी गलती का अनुभव हुआ। आज भी विठ्ठल तीर्थ मंदिर के सामने चोखा महार की समाधि है। प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह की एकादशी को वहाँ मेला लगता है और धार्मिक कार्यक्रम होते हैं।

 

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